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समस्या समाधान की खुद से करें कोशिश: त्यागी

विज्ञान कार्यशाला के दूसरे दिन बाल वैज्ञानिक ने भी लिया हिस्सा

मधुबनी-14 नवंबर। मैथिली भाषा वैज्ञानिक अनुप्रयोग की भाषा है। क्योंकि इस भाषा के वाक्य स्वर से खत्म होते हैं। विश्व में तीन ही ऐसी भाषा है जिसके वाक्य स्वर से खत्म होते हैं। मैथिली, इटालियन और आंशिक रुप से बंगाली। रीजनल सेकेन्डरी स्कूल में रविवार को आयोजित विज्ञान लोकप्रियकरण कार्यशाला के दूसरे दिन राष्ट्रीय स्तर के एफ लेवल के वैज्ञानिक डा. वीके त्यागी ने संबोधित करते हुए यह बात कही। उन्होंने कार्यशाला में भाग लेने वाले विज्ञान शिक्षक और 10 स्कूलों से पहुुंचे छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि हमें प्रकृति के बीच प्रयोगधर्मी होना होगा। उन्होंने सूचना को ज्ञान से परे बताते हुए कहा कि इनोवेशन आइडिया को जीवन में उपयोगी कैसे हो, इसके लिए काम करना होगा। सूचना को अनुप्रयोग के दृष्टिकोण से परखना होगा। भारत सरकार के विज्ञान प्रसार और साइंस फॉर सोसायटी के संयुक्त पहल पर आयोजित इस कार्यक्रम को खादी तथा ग्रामोद्योग संघ के द्वारा किया जा रहा है। निदेशक सह बाल विज्ञान कांग्रेस के राज्य संयोजक डा. आरएस पांडेय ने कहा कि प्रकृति की निकटता ही विज्ञान को जन जन से जोड़ने का काम करता है। उन्होंने कार्यशाला में किये जा रहे प्रयोगों को आत्मसात करने और इसतरह के प्रयोग अपने जीवन में हर दिन करने को प्रेरित किया। प्राचार्य सह जिला संयोजक मनोज कुमार झा ने कहा कि विज्ञान ही हर समय आपदा व विपदा में जीवन की रक्षा की है। कार्यक्रम का संचालन करते हुए कहा कि बच्चों में खोजपरक विचार काफी हैं। जरूरत हैं स्कूल के शिक्षक इसे समझे और विकसित बनाने में अपनी भूमिका निभायें। अरवल से आए बाल विज्ञान कांग्रेस के मनोज कुमार, ई प्रत्युष परिमल व बाल विज्ञानी रवि कुमार ने बताया कि प्रकृति से स्थापित सीधा संवाद ही मानव को सफल बनाता है। इसदौरान संस्था के सचिव जावेद आलम ने विभिन्न प्रयोगों के माध्यम से सजीव के जीवन चक्र की जानकारी दी। पौधे, सूक्ष्म जीव के जीवन में होने वाले बदलाव को जानने और समझने का मौका बच्चों को मिला। मौके पर राजीव कुमार, धर्मेन्द्र कुमार पांडेय, हनुमान झा, राजाराम झा,अमित शाही, पवन तिवारी व अन्य थे। वाटसन प्लस टू के विज्ञान शिक्षक विनय कुमार, पोल स्टार के मो. जलाल व अन्य ने भी बच्चों को कई महत्वपूर्ण जानकारी दी। इस दौरान आगत अतिथियों का मिथिला परंपरा के अनुसार स्वागत किया गया।

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Author: lakshyatak

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