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रक्षा बंधन पर 1100 विद्वान ब्राह्मणों एवं वेदपाठी छात्रों ने किया पवित्र सरोवर के किनारे श्रावणी महास्नान

अजमेर- 30 अगस्त। धार्मिक नगरी पुष्कर में रक्षा बंधन के पावन पर्व पर बुधवार सुबह पवित्र सरोवर के घाट वेदमंत्रों की ध्वनि गूंज उठी। अवसर था सालभर में केवल एक बार रक्षा बंधन के पर्व पर होने वाले श्रावणी महास्नान का। आज के दिन आयोजित होने वाले इस विशेष स्नान का स्थानीय तीर्थ पुरोहित एवं विद्वान ब्राह्मण पूरे सालभर इंतजार करते हैं । यही वजह रही की सरोवर के चौड़ी पेड़ी घाट, वराह घाट,रामघाट और गऊघाट पर पुष्कर के 1100 से ज्यादा विद्वान पुरोहितों और वेदपाठी बालकों ने इस महास्नान में हिस्सा लिया ।

श्री ब्रह्म सावित्री वेद विद्या पीठ के आचार्य पंडित ब्रजेश तिवारी के आचार्यत्व में चौड़ी पेड़ी घाट पर आयोजित किया गया यह महास्नान लगभग दो घंटे तक चला। श्रावणी महास्नान के दौरान सबसे पहले संकल्प करवाया जाता है । इसमें तीर्थ के किनारे बैठकर बीते सालभर के दौरान मन से, वचन से, कर्म से और हमारे शरीर से जाने अनजाने में हो जाने वाले पापों के लिए क्षमा मांगी जाती है। साथ ही अलग अलग वेदमंत्रों के माध्यम से गौमाता के खुर वाली मिट्टी, गौ माता के गौबर, चंदन, हल्दी, गेहूं, भस्म, सिक्के, कुशा, तुलसी पत्र, केला सहित अन्य वस्तुओं से तीन तीन बार स्नान करवाया जाता है । धार्मिक मान्यता है की दस प्रकार की सामग्री से तीन तीन बार स्नान करने के पश्चात जब ब्राह्मण तीर्थ के जल में स्नान करता है तब तत्काल ही सालभर में उसके द्वारा किए गए सारे पाप कर्म नष्ट हो जाते है ।

वेद विद्या पीठ के आचार्य ब्रजेश तिवारी ने बताया कि शास्त्रों में बताया गया है कि प्रत्येक जाति के मनुष्य को रक्षा बंधन के दिन होने वाले श्रावणी महास्नान में हिस्सा लेना चाहिए । इतना ही नहीं वेद शास्त्रों में इस स्नान को ब्राम्हणों के लिए करना तो बेहद अनिवार्य बताया गया है । जो भी ब्राह्मण पूजा पाठ और कर्मकांड इत्यादि कर्म करवाकर अपनी जीविकोपार्जन करते हैं उनके लिए इसमें शामिल होना अनिवार्य बताया गया है । खास बात यह है कि इस स्नान को करने से ना सिर्फ व्यक्ति को पापों से तुरंत मुक्ति मिलती है बल्कि उस प्राणी को भगवान की और तीर्थ की विशेष कृपा भी प्राप्त होती है जिसके पश्चात आने वाला भविष्य सुखमय बीतता है ।

आज संपन्न हुए श्रावणी स्नान के पश्चात आचार्य तिवारी द्वारा वैदिक मंत्रोच्चार के साथ देव तर्पण, ऋषि तर्पण और पूर्वजों की आत्मिक शांति के लिए पितृ तर्पण भी करवाए गए ताकि देवताओं, ऋषि मुनियों के साथ सभी को अपने पूर्वजों की भी कृपा प्राप्त हो सके ।

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Author: lakshyatak

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