काठमांडू- 04 मार्च। नेपाल में प्रधानमंत्री एवं सीपीएन (एमसी) के अध्यक्ष पुष्प कमल दहल प्रचंड 3 साल पहले काठमांडू में दिए एक बयान के कारण मुश्किल में पड़ गए हैं। प्रचंड ने एक सभा में नेपाल में संघर्ष के दौरान मारे गए लोगों में से केवल 5000 लोगों को मारने की जिम्मेदारी ली थी।
इस स्वीकारोक्ति को लेकर 3 साल पहले सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका दाखिल की गई थी। तब सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ने आदेश दिया था कि याचिका दर्ज नहीं की जा सकती है। उसके बाद याचिकाकर्ताओं ने फिर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की और सुनवाई करने की मांग की। शुक्रवार को कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करने का आदेश दिया।
वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. सुरेंद्र भंडारी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का स्वागत किया है । उन्होंने कहा कि लोगों की हत्या की जिम्मेदारी लेने का मुद्दा राजनीतिक अभिव्यक्ति नहीं हो सकती है । मानवाधिकार कार्यकर्ता चरण परसाई ने जोर देकर कहा कि जिन लोगों ने 5000 की हत्या करने की बात कबूल की है, उनके खिलाफ मुकदमा चलाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, प्रचंड को 3 साल पहले जांच के दायरे में लाना चाहिए था, लेकिन सत्ता की आड़ में इसे रोक दिया गया।
नेपाल में संक्रमणकालीन न्याय अभी पूरा नहीं हुआ है। व्यापक शांति समझौते को 17 साल हो गए हैं, हालांकि संघर्ष के मुद्दों को हल करने के लिए विभिन्न आयोगों का गठन किया गया है, लेकिन काम आगे नहीं बढ़ा है ।मानवाधिकार कार्यकर्ता परसाई ने कहा कि माओवादी हिंसा के दौरान पीड़ितों को न्याय नहीं मिलने के कारण संक्रमणकालीन न्याय पूरा नहीं हो पाया है।
विधिवेत्ता डॉ. भंडारी की दलील थी कि जब नेपाली समाज को करिश्माई नेता की तलाश थी तो उसने हिंसा के खिलाफ आवाज नहीं उठाई । उन्होंने कहा, नेपाल को एक सूत्र में पिरोने वाले पृथ्वी नारायण शाह के शासन के बाद साजिशकर्ता के सत्ता में आने के हालात बने और प्रचंड का उदय हुआ।
उल्लेखनीय है कि 15 जनवरी 2020 यानी माघी त्योहार के दिन प्रचंड ने विवादित बयान दिया था। प्रचंड के नेतृत्व में माओवादी सशस्त्र गतिविधियों के दौरान 17000 से अधिक लोग मारे गए थे। प्रचंड ने इस मामले पर बोलते हुए कहा था कि उनके नेतृत्व में हुए संघर्ष में 5000 लोग मारे गए थे।
माओवादियों के शांतिपूर्ण राजनीतिक में आने के बाद उनकी मांगों के अनुसार नेपाल गणतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के साथ संघवाद में चला गया है।