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मिथिलांचल की पहचान मखाना मजदूरों के अभाव में हो रहा विलुप्त

मधुबनी- 22 जनवरी। मिथिलांचल की पहचान मखाना खेती धीरे धीरे में मजदूरों के अभाव में विलुप्त होता जा रहा है। मजदूरों के पलायन के कारण मखाना खेती घाटे का सौदा बन चुका है। मजदूरों के अभाव में लोग मखाना खेती से मूंह मोड़ चुके हैं। मछुआरे का भी झुकाव अब मछली पालन की ओर हो गया है। अगर हम मधुबनी जिले के सिर्फ लदनियां प्रखंड क्षेत्र की बाते करें ,तो यहां करीब पांच छह वर्ष पूर्व बड़े पैमाने में मखना खेती होती थी। करीब 45-50 सरकारी जलकर में मखाना खेती होती थी। इसके अतिरिक्त दो दर्जन से अधिक निजी पोखरा में मखना खेती होती थी। यही स्थिति पुरे मधुबनी जिले की है। करीब एक दशक से अचानक मखाना की खेती में भारी कमी आ गयी। इसका कारण यह भी रहा कि मखाना किसानों के सामने मजदूरों को मूंह मांगी मजदूरी और व्यवसायी के हाथों औने पौने भाव में मखाना बेचना मजबूरी बन गया। पोखरा से मखाना निकालने के लिए मजदूरों को मुंह मांगी मजदूरी मांगना एवं औने पौने भाव में व्यवसायी के हाथों मखाना को बेचना है। इसलिए अब सरकारी जलकर में भी मछुआरों ने मखाना खेती से मूंह मोड़ चुके हैं। आये दिन मखाना खेती के लिए किसी भी पोखर में एक वर्ष ही मखना बोआई की जाती है, जो अक्टूबर माह में किया जाता है। मखना बोआई के 11 महीने के बाद पोखरा से सितंबर माह से मखना निकाली जाती है। जिले के लदनियां प्रखंड क्षेत्र में कुल सरकारी जलकरों की संख्या-229 है, जो दो श्रेणी में विभाजित है। जुलाई श्रेणी में जलकरों की संख्या-126 है तथा अक्टूबर श्रेणी में 103 जलकरों को रखा गया है। मछुआरों ने मखाना की खेती घाटे का सौदा मानकर मखाना खेती से मूंह मोड़कर करीब दस वर्षों से मछली पालन करने लगे हैं। केन्द्र एवं राज्य सरकार मखाना को लेकर योजनाऐं चलाने की बात तो करती है, परंतू वह सिर्फ घोषणा बन ही रह जाती है। अगर केन्द्र एवं राज्य सरकार मखाना की खेती पर थोड़ा भी ध्यान देती, तो फिर सब से अधिक मखाना की पैदवार देने वाला मधुबनी सहित मिथिलांचल अपने पुरे कारोबार की बेक हो जाता और मजदुरी के अभाव में मिथिलांचल के किसान महानगरों में भटक रहे हैं वह फिर अपने मिथिलांच में वापस आकर मखाना के रोजगार से जुड़ जाते!

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