नई दिल्ली- 20 सितंबर। दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली में 2020 में हुई हिंसा के आरोपित नूर मोहम्मद उर्फ नूरा को बरी करते हुए कहा कि जांच अधिकारी ने काफी सोच समझने के बाद आरोपी की पहचान की और अपने ही बयान का खंडन किया। एडिशनल सेशंस जज पुलस्त्य प्रमाचल ने नूरा को बरी करने का आदेश दिया।
कोर्ट ने कहा कि जांच अधिकारी जीवनानंद ने अपने बयान में कहा कि बीट कांस्टेबल संग्राम ने उन्हें 2 अप्रैल 2020 को पहली बार नूरा की संलिप्तता के बारे में बताया जबकि इस मामले की जांच 11 मार्च 2020 को ही जीवनानंद को सौंप दी गई थी और वे ये भी जानते थे कि संग्राम संबंधित क्षेत्र का बीट कांस्टेबल था।
कोर्ट ने इस तथ्य पर गौर या कि शिकायतकर्ता ने दंगाइयों में से एक के रूप में नूरा का नाम नहीं दिया था। नूरा पर भारतीय दंड संहिता की धारा 143, 147, 148, 392, 436 और 149 के तहत खजूरी खास थाने में एफआईआर दर्ज किया गया था। एफआईआर शिकायतकर्ता मोहम्मद हनीफ की ओर से 29 फरवरी 2020 को की गई थी। शिकायत के मुताबिक हनीफ की दर्जी की दुकान थी जिसे दंगाइयों की भीड़ ने 24 फरवरी 2020 की शाम को लूटा और आग लगा दिया। हनीफ ने पांच लाख रुपये के नुकसान की शिकायत की थी। जांच के दौरान नूरा की पहचान भीड़ के एक सदस्य के तौर पर हुई थी। उसके खिलाफ 30 जून 2020 को चार्जशीट दाखिल की गई थी। इस मामले में अभियोजन पक्ष ने 8 गवाहों को बयान दर्ज कराए थे।
सुनवाई के दौरान नूरा के वकील ने कोर्ट से कहा कि उसकी पहचान सबसे पहले 2 अप्रैल 2020 को हुई थी। 2 अप्रैल 2020 के पहले ऐसा कोई बयान दर्ज नहीं किया गया था जिसमें उसे आरोपित के रूप में पहचाना गया हो। उन्होंने कहा कि जांच अधिकारी ने जांच को 11 मार्च 2020 से शुरू कर दी थी लेकिन जब 2 अप्रैल 2020 को नूरा को गिरफ्तार किया गया उसके बाद ही फर्जी बयानों के आधार परे उसके खिलाफ नौ केस दर्ज किए गए।