भारत

आरक्षण मेरिट के खिलाफ नहीं, यह सामाजिक न्याय के असर को बढ़ाता हैः SC

नई दिल्ली- 20 जनवरी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आरक्षण मेरिट के खिलाफ नहीं है बल्कि सामाजिक न्याय के वितरणात्मक प्रभाव को बढ़ाता है। पिछले 7 जनवरी को नीट पीजी दाखिले में 27 फीसदी ओबीसी और दस फीसदी ईडब्ल्यूएस आरक्षण को हरी झंडी देने वाले सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर विस्तृत आदेश जारी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणी की है।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि मेरिट की परिभाषा प्रतियोगी परीक्षाओं में प्रदर्शन तक सीमित नहीं रखी जा सकती है। कोर्ट ने कहा कि संविधान की धारा 15(4), और 15(5) धारा 15(1) के अपवाद नहीं हैं। धारा 15(1) के तहत मौलिक समानता के सिद्धांतों को दोबारा प्रतिस्थापित किया गया है। कोर्ट ने कहा कि मेरिट को एक खुली प्रतियोगी परीक्षा में प्रदर्शन की संकीर्ण परिभाषा तक सीमित नहीं किया जा सकता है। लेकिन वे किसी व्यक्ति की उत्कृष्टता, क्षमता और संभावना को प्रतिबिंबित नहीं करते हैं। कोर्ट ने कहा कि परीक्षाओं में सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक लाभ प्रतिबिंबित नहीं होते हैं, जो कुछ वर्गों को प्राप्त हैं और इन परीक्षाओं में उनकी सफलता में योगदान देते हैं।

7 जनवरी को अपने फैसले में कोर्ट ने कहा था कि ईडब्ल्यूएस की सीमा 8 लाख रुपये सालाना रखने से जुड़े विवाद पर मार्च के तीसरे हफ्ते में विचार होगा। इस साल के लिए यही आय सीमा मान्य रहेगी। अगर कोई बदलाव होता है, तो वह अगले सत्र से लागू होगा।

सुनवाई के दौरान फेडरेशन ऑफ रेज़िडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन ने कहा था कि हर साल पीजी में 45 हज़ार नए दाखिले होते हैं। इस साल काउंसिलिंग न होने से जूनियर डॉक्टरों पर काम का बोझ बढ़ गया है। कोर्ट ने इस चिंता पर सहमति जताई। केंद्र की तरफ से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि 2019 में ही इस तरह के आरक्षण का फैसला लिया गया था। संघ लोक सेवा आयोग समेत कई जगहों पर यह लागू हुआ है। इसका उद्देश्य कमज़ोर वर्ग का उत्थान है।

Join WhatsApp Channel Join Now
Subscribe and Follow on YouTube Subscribe
Follow on Facebook Follow
Follow on Instagram Follow
Follow on X-twitter Follow
Follow on Pinterest Follow
Download from Google Play Store Download

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button