झांसी-15 दिसम्बर। बुन्देलखण्ड को राजनैतिक लोगों ने पिछड़ा,सूखा व भूखा सिद्ध करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। इसके इतर बुन्देलखण्ड की भूमि ऐसी है जहां पन्ना में हीरों की खानें मिलती हैं तो दूसरी ओर केन वेतवा व धसान जैसी नदियों की बालू पूरे देश की इमारतों का निर्माण करती है। एशिया की सबसे बड़ी गिट्टी की मंडी कही जाने वाले महोबा के कबरई का नाम भी जग जाहिर है। ललितपुर का पिंक ग्रेनाइट भी देश विदेश में प्रसिद्ध है। अब भूवैज्ञानिकों ने जनपद झांसी में क्वार्ट्ज रीफ की चट्टानों में अमेथिस्ट(नीलम का उपरत्न) को खोज निकाला है। यह खोज झांसी में पदस्थ प्रदेश स्तरीय एक कर्मठ व लगनशील भू वैज्ञानिक, उनकी टीम व कुछ अन्य भू वैज्ञानिकों ने की है।
मंडल में आने के बाद से मंडलायुक्त डॉ.अजय कुमार पांडे एवं अपर आयुक्त सुनील कुमार सिंह बुंदेलखंड की धरोहर को संरक्षित एवं विकास के लिए सतत कार्यरत हैं। इसके लिए उनके द्वारा खनन के क्षेत्र में बुंदेलखंड खनिज संपदा एवं साहित्य समिति का गठन किया गया है। क्षेत्र में खनिज भवन झांसी एवं भूतत्व एवं खनिकर्म निदेशालय लखनऊ उत्तर प्रदेश के भूवैज्ञानिक डॉ. गौतम कुमार दिनकर, बुन्देलखण्ड और हिमालय में शोध कर रहे डॉ. सुमित मिश्र एवं संदीप उपाध्याय के द्वारा दो दिन पूर्व भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के दौरान झांसी की क्वार्ट्ज रीफ की चट्टानों में अमेथिस्ट को खोजा गया है। अमेथिस्ट क्वार्ट्ज की शानदार बैंगनी रंग की किस्म है। अमेथिस्ट मुख्य रूप से रंग में चमक और पारदर्शिता में पारभासी होने के कारण रत्न के रूप में प्रयोग किया जाता है।
अमेथिस्ट क्रिस्टल चिकित्सा तंत्रिका तंत्र की शारीरिक बीमारियों को ठीक करने, बुरे सपने और अनिद्रा के इलाज के लिए भी जानी जाती है। यह बैंगनी क़िस्म का स्फटिक है जिसका अक्सर गहनों में इस्तेमाल किया जाता है। अमेथिस्ट को कटेला, बिल्लौर, जामुनिया पत्थर या बैंगनी उपरत्न भी कहते है। यह नीलम रत्न का एक उपरत्न है। इसकी खोज के बाद जिले में इसके अपार भंडार होने के भी कयाश लगाए जा रहे हैं। फिलहाल शोध जारी है।