जयपुर- 03 नवंबर। चिकित्सा के क्षेत्र में बदल रही तकनीक से अब इलेक्ट्रॉनिक्स फ्री कॉक्लियर इंप्लांट से बहरेपन का इलाज होना संभव हो गया है। यह तकनीक पहले से अधिक प्रभावी और आसान है।
यह जानकारी शुक्रवार को न्यूरो ओंटोलॉजिकल एंड इक्विलिब्रियोमेट्रिक सोसाइटी ऑफ इंडिया की तीन दिवसीय नेशनल कॉन्फ्रेंस नेस्कॉन-2023 में चिकित्सकों की चर्चा में सामने आई। इस दौरान 15 लाइव सर्जरी भी की गई। नेशनल कॉन्फ्रेंस नेस्कॉन-2023 के आगाज अवसर पर कॉक्लियर इंप्लांट सहित विभिन्न विषयों पर चर्चा की गई। राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस नेस्कॉन-2023 में देश दुनिया के 300 से अधिक चिकित्सक भाग ले रहें है। ये सभी चिकित्सक राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में नाक, कान,गले की बढ़ती बीमारियों व इसके इलाज में आई नवीनतम तकनीक को आपस में चर्चा साझा करेंगे।
नेस्कॉन-2023 के ऑर्गनाइजिंग सेक्रेटरी,सवाई मानसिंह चिकित्सालय जयपुर के कान नाक गला विभाग के वरिष्ठ आचार्य डॉ.पवन सिंघल ने बताया कि एसएमएस हॉस्पिटल में 15 लाइव सर्जरी की गई, जिसका लाइव टेलीकास्ट कॉन्फ्रेंस स्थल पर किया गया। अलग-अलग तकनीक से दो कॉक्लियर इंप्लांट सर्जरी डॉ. जेएम हंस और एनईएस प्रेसिडेंट डॉ. एनवीके मोहन ने की।
सीनियर ईएनटी सर्जन डॉ. सतीश जैन ने कॉक्लियर इंप्लांट के बाद इंफेक्शन होने पर की जाने वाली जटिल सर्जरी सबटोटल पीटर से टॉमी की।
गुजरात के डॉ. भाविक पारीक ने वेस्टिबुलर सेक्शन ऑपरेशन और लुधियाना के डॉ. राजीव कपिल ने बैलून डायलेशन सर्जरी परफॉर्म की।
ऑर्गनाइजिंग चेयरपर्सन डॉ. सुनील समदानी और डॉ. रेखा हर्षवर्धन ने कहा कि कॉन्फ्रेंस का उद्घाटन सत्र शनिवार को आयोजित होगा, जिसमें आरयूएचएस के वाइस चांसलर डॉ. सुधीर भंडारी बतौर मुख्य अतिथि शामिल होंगे।
नेशनल कॉन्फ्रेंस नेस्कॉन-2023 में चिकित्सकों की चर्चा में सामने आया कि बहरेपन के इलाज के लिए लगने वाले कॉक्लियर इंप्लांट में अब तक सर में भी चिप लगाई जाती थी। कई बार चिप फेल होने के कारण मरीज की दोबारा सर्जरी करनी पड़ती थी। इससे अब मरीज को दोबारा सर्जरी की जरूरत नहीं होती। अब इलेक्ट्रॉनिक फ्री कॉक्लियर इंप्लांट आ गए हैं जिसमें किसी तरह की चिप का इस्तेमाल नहीं होता।
डॉ. श्रीनिवास डोरासाला ने बताया कि अब नए मेड इन इंडिया कॉक्लियर इंप्लांट काफी एडवांस आ गए हैं। इसमें चिप की जगह सिर्फ रिसीवर लगा है जो बाहर की आवाज को दिमाग की नर्व तक पहुंचाता है। सिर्फ 20 मिनट में यह इंप्लांट लगा दिया जाता है। चिप वाले इंप्लांट में कई मरीजों में यह समस्या आती थी कि चिप के फेल होने पर मरीज की दोबारा सर्जरी करके नया इंप्लांट लगाना पड़ता था। इस इलेक्ट्रॉनिक्स फ्री कॉक्लियर इंप्लांट में ऐसी समस्या बिल्कुल खत्म हो गई है।