बिहार जातिगत गणना: आंकड़ों के प्रकाशन पर अंतरिम रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार

नई दिल्ली- 02 जनवरी। सुप्रीम कोर्ट ने जातिगत सर्वे के डाटा के प्रकाशन पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया है। जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि बिहार सरकार सर्वे के आधार पर आगे बढ़ सकती है। मामले की सुनवाई जनवरी के अंतिम सप्ताह में होगी।

कोर्ट ने कहा कि सर्वे की बजाय हमारी चिंता आंकड़ों को लेकर ज़्यादा है, क्योंकि सर्वे के आंकड़ों का वर्गीकरण करने के बाद इसे आम जनता को उपलब्ध कराया जाना चाहिए। कोर्ट ने ये टिप्पणी तब की, जब याचिकाकर्ता की ओर से कोर्ट को बताया गया कि सर्वे का आंकड़ा प्रकाशित हो चुका है। उस आधार पर ही आरक्षण 50 से बढ़ाकर करीब 70 प्रतिशत तक कर दिया गया है। इसलिए इसे पटना हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है।

सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि बिहार सरकार ने जातिगत सर्वे किया है। इसे जनगणना नहीं कहा जा सकता, क्योंकि केंद्र सरकार की तरफ से दाखिल किए गए हलफनामे में यह पहले ही स्पष्ट किया जा चुका है कि जनगणना या उस जैसी प्रकिया को अंजाम देने का अधिकार सिर्फ केन्द्र को ही है। सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर, 2023 को सुनवाई करते हुए कहा था कि हम किसी राज्य सरकार के किसी काम पर रोक नहीं लगा सकते हैं।

बिहार सरकार ने 2 अक्टूबर को जाति आधारित जनगणना के आंकड़े जारी कर दिए। इसके पहले 6 सितंबर को भी कोर्ट ने सर्वे के आंकड़े जारी करने पर अंतरिम रोक का आदेश देने से इनकार कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि मामले में विस्तार से सुनवाई की जरूरत है। केन्द्र सरकार ने 28 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब दाखिल करते हुए कहा था कि संविधान के मुताबिक जनगणना केंद्रीय सूची के अंतर्गत आता है। सरकार ने ये भी कहा कि केंद्र सरकार खुद एससी, एसटी और सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े लोगों के उत्थान की कोशिश में लगी है।

केंद्र सरकार ने कहा है कि जनगणना एक विधायी प्रक्रिया है, जो जनगणना अधिनियम 1948 के तहत है। केंद्रीय अनुसूची के 7वें शेड्यूल के 69वें क्रम के तहत इसके आयोजन का अधिकार केंद्र सरकार के पास है। केंद्र ने कहा है कि य़ह अधिनियम 1984 की धारा-3 के तहत यह अधिकार केंद्र को मिला है, जिसके लिए केंद्र सरकार की ओर से अधिसूचना जारी कर य़ह बताया जाता है कि देश में जनगणना करायी जा रही है और उसके आधार भी स्पष्ट किए जाते हैं।

पटना हाईकोर्ट ने 2 अगस्त को बिहार सरकार की ओर से जाति आधारित सर्वे कराने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया था। पटना हाई कोर्ट का आदेश आने के बाद बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कैविएट याचिका दायर की है। बिहार सरकार का कहना है कि अगर पटना हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाती है तो उसका भी पक्ष सुना जाए।

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Author: lakshyatak

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