नई दिल्ली- 08 अगस्त। सुप्रीम कोर्ट में आज बिलकिस बानो केस के दोषियों की समय से पहले रिहाई का याचिकाकर्ता की ओर से विरोध किया गया। जस्टिस बीवी नागरत्ना की अध्यक्षता वाली बेंच के समक्ष बिलकिस बानो की ओर से पेश वकील शोभा गुप्ता ने कहा कि दोषियों की रिहाई पर गुजरात सरकार ने गलत तरीके से फैसला किया। इस मामले में महाराष्ट्र राज्य की बात नहीं सुनी गई और केंद्र को भी पक्षकार नहीं बनाया गया।
शोभा गुप्ता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश केवल दोषी राधेश्याम की अर्जी के संबंध में था, जबकि गुजरात सरकार ने सभी 11 दोषियों को सजा में छूट दे दी। पीड़ित होने के नाते बिलकिस बानो को भी रिहाई होने के फैसले के बारे में पता ही नहीं था। बिलकिस की ओर से कहा गया कि यह जल्दबाजी में लिया गया मामला है। रिहाई के प्रस्ताव पर एडीजीपी की ओर से भी आपत्ति जताई गई थी।
बिलकिस की ओर से कहा गया कि नियमों के तहत उन्हें दोषी ठहराने वाले जज से राय लेनी होती है, जिसमें महाराष्ट्र के दोषी ठहराने वाले जज द्वारा कहा गया कि दोषियों को छूट नहीं दी जानी चाहिए। शोभा गुप्ता ने कहा कि 13 मई 2022 को गुजरात सरकार के निर्णय में इस तथ्य का कोई उल्लेख नहीं है और राज्य सरकार ने भी जज की राय से अलग राय होने का कोई कारण भी नहीं बताया। शोभा गुप्ता ने कहा कि यह छूट के लिए उपयुक्त मामला नहीं है, भले ही आजीवन कारावास की सजा को 14 साल के रूप में देखा जाए।
इससे पहले, 7 अगस्त को सुनवाई के दौरान शोभा गुप्ता ने कहा था कि यह मामला अन्य मामलों से अलग है। उनके मामले में दोषी किसी भी राहत या नरमी के हकदार नहीं है। बिलकिस बानो के साथ जो हुआ वह कोई वो आम अपराध नहीं था। उस सदमे से वह अब तक उबर नहीं पाई है। इसके बावजूद दोषियों को समय से पहले रिहा कर दिया जाना याचिकाकर्ता के लिए दोहरे सदमे जैसा है।
दिसंबर, 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों की रिहाई से जुड़े मामले में दायर बिलकिस की पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी थी। बिल्किस बानो की पुनर्विचार याचिका में मांग की गई थी कि 13 मई, 2022 के आदेश पर दोबारा विचार किया जाए। 13 मई 2022 के आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि गैंगरेप के दोषियों की रिहाई में 1992 में बने नियम लागू होंगे। इसी आधार पर 11 दोषियों की रिहाई हुई है।