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बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हमले क्रूरता की पराकाष्ठा: मदनी

नई दिल्ली- 30 दिसंबर। जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने बांग्लादेश की घटना पर अपनी कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि भीड़ द्वारा हिंसा में किसी को बेरहमी से मार देना केवल एक हत्या नहीं, बल्कि क्रूरता की पराकाष्ठा है, इसकी जितनी निंदा की जाए कम है। बांग्लादेश में जो कुछ हुआ बहुत बुरा हुआ, इस्लाम इसकी कदापि अनुमति नहीं देता। उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने ऐसा किया है उन्होंने इस्लामी शिक्षा का उल्लंघन ही नहीं यिया है बल्कि इस्लाम को बदनाम करने का काम किया है, इसलिए ऐसे लोगों को कड़ी से कड़ी सज़ा दी जानी चाहिए।

मौलाना मदनी ने कहा कि राजनिति को चमकाने और सत्ता प्राप्त करने के लिए कुछ लोग धर्म का गलत इस्तिमाल कर रहे हैं, इससे धार्मिक कट्टरता में खतरनाक हद तक बढ़ोतरी हो रहा है, इसकी वजह से अल्पसंख्यक जहां भी हैं खुद को असुरक्षित समझने लगे हैं। अभी क्रिसमिस के अवसर पर ईसाईयों के साथ अराजक तत्वों ने जो कुछ किया उसे कतई उचित नहीं ठहराया जा सकता। यह एक तरह से संविधान में नागरिकों को दी गई धार्मिक आजादी पर हमला है। दुख की बात यह है कि जगह-जगह चर्चों पर हमले हुए, ईसाई लोगों को अपना त्योहार मनाने से रोकने का प्रयास किया गया मगर इन घटनाओं की न तो सरकार ने निंदा की और न ही उनके मंत्रिमण्डल के किसी साथी ने इस पर कोई बयान दिया। इस दोहरे मापदंड को क्या नाम दिया जाए? उन्होंने स्पष्ट किया कि यह जो कुछ भी हो रहा है बांग्लादेश में हो, अपने देश में हो या फिर किसी अन्य देश में, इसके पीछे धार्मिक कट्टरता की ही मूल भूमिका है।

मौलाना मदनी ने कहा कि धार्मिक होना कदापि गलत नहीं है बल्कि हर व्यक्ति को अपने धर्म और इसकी शिक्षाओं का ईमानदारी से पालन करना चाहिए लेकिन जब इसमें कट्टरता आजाती है तो फिर लोग दूसरे धर्म को गलत समझने लगते हैं, टकराव की शुरूआत यहीं से होती है।

उन्होंने कहा कि बांग्लादेश में जो हुआ उसकी देश भर में निंदा हो रही है। टीवी चैनलों से लेकर सोशल मीडिया तक इस घटना पर लोग अपने दुख प्रकट कर रहे हैं। हम भी इस घटना की कड़ी निंदा करते हैं लेकिन इसका दूसरा दुखद पहलू यह है कि जब देश के अंदर इस प्रकार की घटनाएं होती हैं तो फिर यही लोग अपना मुंह बंद कर लेते हैं उन्होंने कहा कि जब तक हम अपना दोहरा चरित्र ठीक नहीं करते मुआमले ठीक नहीं हो सकते। अगर हम खुद को सभ्य और न्यायप्रिय कहते हैं तो फिर हमें अपने चरित्र से भी उसे साबित करना होगा।

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