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जानवरों से परेशान किसान पूस की रात में जिंदगी दांव पर लगाकर फसल की रखवाली कर रहे

औरैया- 14 जनवरी। मुंशी प्रेमचंद की कहानी पूस की रात के मुख्य पात्र हल्कू आज के किसान की हालत बयां करता है। जिस तरह हल्कू पूस की रात में एक चादर के सहारे खेत की रखवाली करता है, आग जलाकर तापता है। आग से मन व शरीर को सुकून देने वाली गर्माहट इतनी अच्छी लगती है कि वहीं सो जाता है।

जानवर उसकी लहलहाती फसल को बर्बाद कर देते हैं और वह सोया ही रह जाता है। समय बदल गया लेकिन हालात नहीं बदले। आज भी किसान के रूप में हल्कू पूस की रात खेतों पर ही काट रहे हैं। आजकल रुरुगंज क्षेत्र के खेतों में आलू की फसल लहलहा रही हैं। इसके साथ-साथ कई किसानों की सरसों और गेहूं की फसल भी बेहतर है, लेकिन पशुओं से फसल बर्बाद की चिंता सता रही है।

हड्डी गला देने वाली सर्दी में किसान रात-रात भर खेतों में रतजगा कर फसलों को बचाने की जद्दोजहद में लगा है। किसानों को अन्ना मवेशियों की समस्या से छुटकारा नहीं मिला है। पारा चार और पांच डिग्री के आसपास झूल रहा है। ओस की बूंद बर्फ की परत बन रही हैं। दिन-दिन भर धूप नहीं निकल रही है। इन हालात में भी किसान फसल बचाने को लेकर जान हथेली पर लेकर खेतों में रतजगा कर रहे हैं। यमुना की तलहटी क्षेत्र के किसान जसवंत सिंह का कहना है कि अगर रबी की फसल में नुकसान हुआ तो फिर पूरा साल एक-एक दाने को मोहताज होना पड़ेगा। ऐसे में अपना या अपने बच्चों का पेट कैसे भरेंगे।

केथोली गांव के किसान हरीश चंद्र दुबे ने बताया कि जानवरों का बड़ा झुण्ड है, जिसे एक तरफ से भगाया जाए तो दूसरी तरफ चला जाता है और सिलसिला चौबीस घंटे चलता रहता है। फसल बचाना बड़ी चुनौती बन गई है। किसानों ने कहा कि साहब तमाम गौशालाएं बनी हैं, लेकिन इन आवारा पशुओं को गौशाला में नहीं ले जाया जा रहा है। सर्द भरी रातों में खेतों पर ही अलाव जलाकर फसलों की रखवाली करनी पड़ रही है। कई बार तो जानवरों से सामना तक हो जाता है। लेकिन यह खेती ही हमारी आजीविका का सहारा है। इसे हम ऐसे बर्बाद नहीं होने देंगे। चाहे जान ही क्यों न चली जाए।

तारों से की बैरिकेडिंग के बाद भी नहीं रुक रहे आवारा पशु-

किसानों ने खेतों के चारों ओर लोहे के तारों से बैरिकेडिंग भी की है। मगर जब पशुओं का झुंड आता है तो वह तारों को तोड़ता हुआ खेतों में घुस जाता है। इसलिए किसानों को फसलों की रखवाली के लिए पहरेदारी करनी पड़ रही है। तारों के साथ किसानों ने इस बार लोहे की टीनशेड भी लगा दी है, ताकि आवारा पशु खेतों में न घुस सकें। फिर भी किसानों द्वारा की गई दीवार भी आवारा पशुओं के लिए कुछ नहीं है। वह चाहे जब इन दीवारों को तोड़कर खेतों में घुस जाते हैं और फसलों को बर्बाद कर देते हैं।

बारी-बारी से करते हैं खेतों की रखवाली-

किसानों ने बताया कि आवारा पशुओं से परेशान होकर इन सर्द भरी रातों में परिवार के लोग बारी-बारी से खेतों की रखवाली करते हैं। एक रात परिवार का एक सदस्य तो अगली रात दूसरा सदस्य खेत पर रहता है। कई बार इन आवारा पशुओं के झुंड किसानों के लिए आक्रामक भी बन जाते हैं। इधर रात भर खेत में अकेले रहने से सुरक्षा को भी खतरा रहता है। इसलिए आसपास के खेतों के किसान एक जगह एकत्र होकर एक ही स्थान पर अलाव जलाकर वहां खड़े होकर अपने अपने खेतों की रखवाली करते हैं।

मचान पर बनाया ठिकाना-

शुक्रवार की रात 11 बजे अजीतमल तहसील क्षेत्र निवासी किसान मुलायम सिंह यादव खेत के बीच बने मचान से टार्च की रोशनी जलाते हुए जोर-जोर से चिल्ला रहे थे। उधर से भगाओ, जल्दी दौड़ो, आवाज सुनकर उनके घर के अन्य सदस्य जानवरों की तरफ दौड़ते हैं।

बोले किसान—

जतन के बाद खेतों में घुस रहे जानवर-

किसान यदुनाथ सिंह टार्च और डंडा लेकर खड़े थे। कंटीले तारों से खेतों की घेराबंदी किए जाने के बावजूद जानवर उनके खेतों में घुसने की कोशिश कर रहे थे। वह गेहूं की फसल की सुरक्षा में खड़े थे। मोहरसिंह ने बताया कि लाख जतन करने के बावजूद आवारा जानवर खेतों में घुस आते हैं। तारों का बेड़ा फांद जाते हैं। इस कड़ाके की ठंड में भी रात में खेतों की रखवाली करनी पड़ती है, वरना कुछ नहीं बचेगा।

मवेशी कर रहे बड़ा नुकसान-

जुहीखा गांव निवासी किसान बीरेंद्र सिंह भी आवारा पशुओं के आतंक से परेशान हैं। कहते हैं कि अब खेती करना आसान नहीं रह गया है। प्रकृति की मार से बच भी गये तो फसल पशुओं की भेंट चढ़ जाती है। जरा सी लापरवाही हुई तो पशुओं का झुंड फसलों को चौपट कर देता है। उन्हीं के साथ खेत की रखवाली कर रहे सर्वेश दोहरे का कहना था कि गेहूं की फसल काफी अच्छी हुई है। इसलिए परिवार के सभी सदस्य खेत की रखवाली में जुटे हुए हैं।

कोहरे में काम नहीं कर रही टॉर्च की रोशनी-

रात के लगभग दस बजे के आस-पास खेतों पर अलाव ताप रहे किसान सुनील दुबे ने अपना दर्द बयां करते हुए कहा कि घने कोहरे के कारण टार्च की रोशनी भी दम तोड़ दे रही है। सपने में भी नहीं सोचा था कि इतनी कड़ाके की ठंड में वीरान मैदान में पूरी रात जागकर फसलों की रक्षा करनी पड़ेगी। पशुओं का झुंड कभी-कभी पलट पड़ता हैं तो उल्टे पांव भागना पड़ता है।

फसल की रक्षा को कड़ाके की ठंड में सरहद सी पहरेदारी-

हम खेतन की रखवाली नहीं करयें तो बच्चा खइये का, जै गइयां कछु छोड़ती नाई। किसान लल्लन निषाद का जो रात भर भीषण सर्दी में अपने खेत की रखवाली कर रहे हैं। उनका रोज का यह रुटीन है। कहते हैं कि बच्चों को पालना है तो खेत की रखवाली करनी ही पड़ेगी। वे बताते हैं कि उनका खेत कस्बा के किनारे हैं ,इसलिए आवारा जानवर अक्सर उसके खेत में घुस आते हैं।

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Author: lakshyatak

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