हेमू जी का मानना था- “हम नहीं रहेंगे लेकिन भारत जरूर रहेगा”: डॉ. भागवत

भोपाल- 31 मार्च। राष्ट्रीय स्वयंसेवक के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि सिंधी समुदाय सब कुछ गंवाकर भी शरणार्थी नहीं बना, उसने पुरुषार्थी बनकर दिखा दिया। अमर शहीद हेमू कालानी के नाम के साथ सिंध का नाम जुड़ा है। सिंधी समुदाय द्वारा स्वतंत्रता आंदोलन में दिए गए महत्वपूर्ण योगदान का उल्लेख कम होता है। हेमू जी का मानना था कि हम तो चले जाएंगे, हम रहेंगे नहीं लेकिन भारत जरूर रहेगा। इसी आदर्श को लेकर संत कंवरराम जैसे देशभक्त भी बलिदान के लिए आगे आए।

सरसंघचालक डॉ. भागवत शुक्रवार को भोपाल के भेल दशहरा मैदान पर अमर बलिदानी हेमू कालानी जन्म-शताब्दी समारोह को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे। इस मौके पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद रहे। समारोह को उन्होंने भी संबोधित किया।

डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि शहीद हेमू कालानी ने बलूचिस्तान जाने वाली शस्त्रों से लदी उस रेल को पलटाने का प्रयास किया था जो, क्रांतिकारियों की हलचल को दबाने के लिए जा रही थी। शहीद हेमू अपने कार्य के परिणाम भी जानते थे। पकड़े जाने के बाद उन्होंने अपने मित्रों के नाम उजागर नहीं किए। उनका मानना था कि जीवन की सार्थकता बलिदान देने में है। तरूण आयु में किए गए उनके बलिदान की गूँज मुम्बई रेसीडेंसी से लेकर विश्व के देशों में हुई। उन्होंने हमें जीवन की राह दिखाकर जीवन दे दिया। शहीदों ने प्रामाणिकता के साथ अपने स्व को बचाने के लिए जीवन समर्पित किया। स्वराज का अर्थ नागरिकों को समझाया। शहीद हेमू कालानी की अटूट देश-भक्ति को ध्यान में रखकर संकुचित स्वार्थ को छोड़कर उनके जैसा होने का प्रयास और एक समाज, एक देश की भावना, हम सभी को आत्मसात करना है।

उन्होंने कहा कि सिंधी समुदाय ने भारत नहीं छोड़ा था, वे भारत से भारत में ही आए थे। सिंधु संस्कृति में वेदों के उच्चारण होते थे। हमने तो भारत बसा लिया, लेकिन वास्तव में राष्ट्र खंडित हो गया। आज भी उस विभाजन को कृत्रिम मानते हुए सिंध के साथ लोग मन से जुड़े हैं। सिंधु नदी के प्रदेश सिंध से भारत का जुड़ाव रहेगा। वहाँ के तीर्थों को कौन भूल सकता है।

डॉ. भागवत ने कहा कि आज भी अखंड भारत को सत्य और खंडित भारत को दु:स्वप्न माना जा सकता है। सिंधी समुदाय दोनों तरफ के भारत को जानता है। आदिकाल से सिंध की परम्पराओं को अपनाया गया। भारत ऐसा हो जो संपूर्ण विश्व को सुख-शांति देने का कार्य करें। तमाम उतार-चढ़ाव होंगे, लेकिन हम मिटेंगे नहीं। हम विश्व के नेतृत्व के लिए सक्षम हैं। सारे समाज के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना है। यह चिंतन आज की पीढ़ी को भी करना चाहिए कि हम कौन हैं और हमें क्या बनना है। विविधता में एकता को देखें और स्व के सच्चे अर्थ को समझ कर जीवन की दिशा तय करें।

सरसंघचालक डॉ. भागवत ने डॉ. हेडगेवार और अन्य विचारकों के माध्यम से संपूर्ण दुनिया को दिखाए गए कल्याण के मार्ग का भी उल्लेख किया। उन्होंने सिंधी समुदाय द्वारा सनातनी परम्परा में रहने और अपने रीति-रिवाजों को कायम रखकर अपनी खुदी को बनाने की आवश्यकता बताई। उन्होंने कहा कि ऐसे तत्वों को असफल करना है, जो लोगों को झगड़ों के लिए उकसाते हैं। जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सद्गुणों को उजागर करने की जरूरत है। उन्होंने इंदौर में रामनवमी पर हुई दुर्घटना का उल्लेख करते हुए कहा कि उन्हें गंगाजी के दर्शन के समय यह खबर मिली और तभी गंगाजी को प्रणाम कर दिवंगत लोगों को श्रद्धांजलि भी दी।

कार्यक्रम को महामंडलेश्वर हंसराम उदासीन और भारतीय सिंधु सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष लधाराम नागवानी ने भी संबोधित किया। समारोह के संयोजक भाजपा के प्रदेश महामंत्री भगवानदास सबनानी ने स्वागत उद्बोधन दिया। युवा कलाकारों ने शहीदों के बलिदान पर केन्द्रित नृत्य नाटिका प्रस्तुत की। मंच पर शदाणी दरबार रायपुर के प्रमुख युद्धिष्ठिर लालजी, अशोक सोहनी, साधु समाज के प्रियादास, सांसद शंकर लालवानी, विधायक अशोक रोहाणी, प्रख्यात गायक घनश्याम वासवानी, बालक मंडली कटनी के वरिष्ठ गायक कलाकार गोवर्धन उदासी, दिलीप उदासी,राष्ट्रीय सिंधी भाषा विकास परिषद के उपाध्यक्ष मोहन मंगनानी बैंगलुरु, निदेशक डॉ. रवि टेकचंदानी नई दिल्ली,अखिल भारतीय सिंधी बोली साहित्य सभा की महासचिव अंजलि तुलसियानी,मध्यप्रदेश सहित छत्तीसगढ़,कर्नाटक,महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान,उत्तरप्रदेश आदि से आए सिंधी पंचायतों के पदाधिकारी,भोपाल के विभिन्न संगठन के सदस्य और बड़ी संख्या में सिंधी समाज के नागरिक उपस्थित थे।

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Author: lakshyatak

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