क्राइम

खेलते-खेलते बॉक्स में बंद हुए 2 मासूम भाई-बहन,दम घुटने से मौत

बाड़मेर- 07 अक्टूबर। गडरारोड थाना क्षेत्र के पनेला गांव में खेल-खेल में लोहे के बॉक्स में बंद हुए भाई-बहन की दम घुटने से मौत हो गई। दो घंटे तक दोनों बॉक्स खोलने की कोशिश करते रहे, लेकिन कामयाब नहीं हो सके। मां-बाप जब घर लौटे तो उन्होंने दोनों मासूमों को काफी देर तक ढूंढा, लेकिन वे कहीं नजर नहीं आए। बॉक्स खोलने पर दोनों उसमें बेसुध हालत में मिले। आनन-फानन में दोनों को हॉस्पिटल ले जाया गया, जहां डॉक्टर ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।

पड़ोस में रहने वाले रोशन ने बताया कि चौखाराम के पुत्र रविंद्र कुमार (11) पुत्री मोनिका (8) दोपहर दो बजे स्कूल से लौटे थे। बच्चों के माता-पिता खेत में काम करने के लिए गए हुए थे। इसके बाद रविंद्र और मोनिका घर में ही खेलने लगे। खेलते-खेलते दोनों मासूम बक्से में घुस गए। इसका ढक्कन अचानक बंद हो गया और दोनों अंदर ही फंस गए। शाम करीब छह बजे चोखाराम और उसकी पत्नी अपने बेटे हितेश के साथ घर पर पहुंचे तो बच्चे नहीं दिखे।आस-पास मालूम किया, लेकिन कुछ पता नहीं चला। उसके बाद दो दिन पहले लिए नए बॉक्स पर उनकी नजर पड़ी। उसका ढक्कन उठा कर देखा तो उनकी चीख निकल गई। दोनों बॉक्स में बेसुध पड़े थे। इसके बाद परिजन रविंद्र और मोनिका को गडरारोड हॉस्पिटल लेकर गए। वहां पर दोनों मासूम बच्चों को डॉक्टर ने मृत घोषित कर दिया।

पड़ोसी रोशन के मुताबिक बच्चे लगभग तीन घंटे बक्से के अंदर रहे। इस बक्से का ढक्कन बंद होने जाने से उनके चीखने या बक्से को खटखटाने की आवाज बाहर सुनाई नहीं दी। अभी पुलिस को सूचना नहीं दी गई है। गडरारोड थानाधिकारी सलीम मोहम्मद के मुताबिक परिजनों और ग्रामीणों की ओर से हमें सूचना नहीं दी गई। लेकिन, सोशल मीडिया के जरिए जानकारी मिलने पर हमने ग्रामीण व परिजनों से जानकारी जुटाई जा रही है। डॉ. अजमल हुसैन ने बताया कि शाम करीब सात बजे दोनों मासूम बच्चों के शव को हॉस्पिटल लेकर आए थे। दोनों के शव अकड़े हुए थे। बक्से में छेद नहीं होने पर एयर पास नहीं होती है। एक बार बक्से के अंदर फंसने और ढक्कन बंद होने के बाद 5-10 मिनट में दम घुट जाता है। अगर एयर पास होने की जगह होती तो उनकी जान बचाई जा सकती थी। मृतक मासूम बच्चों के पिता खेती करते हैं। उनके परिवार में दो बेटे और एक बेटी थी। शुक्रवार को रविंद्र कुमार व मोनिका स्कूल गई थी। वहीं, तीसरा बच्चा हितेश स्कूल नहीं गया था। वह माता-पिता के साथ खेत पर चला गया था।

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