प्रयागराज-12 सितम्बर। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि केवल अपराध की सजा के आधार पर किसी सरकारी सेवक को बर्खास्त नहीं किया जा सकता। ऐसा करने के लिए विभागीय जांच कार्यवाही किया जाना जरूरी है।
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के तमाम फैसलों के हवाले से कहा कि संविधान के अनुच्छेद 311(2) के तहत किसी सरकारी सेवक को बिना जांच कार्यवाही के बर्खास्त या सेवा से हटाया या रैंक घटिया नहीं किया जा सकता।
इसी के साथ कानपुर देहात के उच्च प्राथमिक विद्यालय रसूलपुर के सहायक अध्यापक को दहेज हत्या में मिली उम्र कैद की सजा पर बीएसए द्वारा बर्खास्त करने के आदेश को अवैध करार देते हुए रद कर दिया और अनुच्छेद 311(2) के उपबंधो के अनुसार नये सिरे से दो माह में आदेश पारित करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि याची की सेवा बहाली व सेवा परिलाभ नये आदेश पर निर्भर करेगा।
यह आदेश न्यायमूर्ति मंजीव शुक्ल ने मनोज कुमार कटियार की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। मालूम हो कि याची की नियुक्ति 1999 मे प्राइमरी स्कूल सराय में सहायक अध्यापक पद पर की गई और 2017 मे पदोन्नति दी गई। वर्ष 2009 मे दहेज हत्या का केस दर्ज हुआ। सत्र अदालत ने याची को भी दोषी करार दिया और उम्र कैद की सजा सुनाई। इसके बाद जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी कानपुर देहात ने याची को बर्खास्त कर दिया। जिसे याचिका में चुनौती दी गई थी।
याचिका पर अधिवक्ता धनंजय कुमार मिश्र ने बहस की। इनका कहना था कि अनुच्छेद 311(2) के तहत बीएसए का बर्खास्तगी आदेश अवैध है, रद्द किया जाय। क्योंकि बिना जांच व नैसर्गिक न्याय का पालन किए यह आदेश दिया गया है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की नजीरे पेश की। जिसमें साफ कहा है कि सरकारी सेवक को बिना जांच कार्यवाही बर्खास्त नहीं किया जा सकता। जिस पर कोर्ट ने याची की बर्खास्तगी रद्द कर दी है।