[the_ad id='16714']

बिहार का सियासी इतिहास और नीतीश कुमार

आकिल हुसैन के कलम से

बिहार की सियासत में लालु प्रसाद यादव के बाद नीतीश कुमार ही एक बड़ा चेहरा बन गए हैं। जिन्हो ने कभी भी दबाव में रहकर सियसत नही की। जब भी उन्हे दबाव महसुस हुआ, वे अपने सहयोगी का साथ छोड़ देते हैं। वह चाहे एनडीए हो या फिर महागठबंध। जिससे नीतीष कुमार बिहार ही नही, बल्कि देष स्तर पर चर्चित रहे हैं। अगर बिहार के सियासी इतिहास की बात करें, तो वर्ष 1951 से बिहार में विधानसभा चुनाव की शुरुआत हुई थी। जहां अभीतक बिहार में वर्ष 2020 तक 17 बार विधानसभा चुनाव हो चुके हैं।

वर्ष 2005 में ऐसा पहली बार बिहार की सियासत में हुआ था, जब बिहार में एक ही वर्ष के अंदर दो बार विधानसभा चुनाव कराने पड़े थे। वर्ष 2003 में जनता दल के शरद यादव गुट, लोक शक्ति पार्टी और जॉर्ज फर्नांडिस और नीतीश कुमार की समता पार्टी ने मिलकर जनता दल (यूनाइटेड) का गठन किया था। तब लालू प्रसाद यादव के करीबी रहे नीतीश कुमार ने उन्हें विधानसभा चुनावों में बड़ी चुनौती दी। फरवरी 2005 में हुए चुनावों में राबड़ी देवी के नेतृत्व में राजद ने 215 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिसमें से उसे 75 सीटें मिल पायी। वहीं, जदयू ने 138 सीटों पर चुनाव लड़ 55 सीटें जीतीं और भाजपा 103 में से 37 सीटें लेकर आयी। कभी बिहार में एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस को चुनाव में 84 में से सिर्फ 10 सीट ही जीत पायी थी। इन चुनावों में 122 सीटों का स्पष्ट बहुमत ना मिल पाने के कारण कोई भी सरकार नहीं बन पायी। बहुमत साफ नही होने पर वर्ष 2000 में वजूद में आयी लोजपा पार्टी के सुप्रीमो रामविलास पासवान अपने 29 सीट के साथ बिहार में मुस्लिम मुख्यमंत्री बनाने की बात करने पर उन्हे बहुमत देने की बात करने लगे। जिसके बाद सरकार नही बनतो देख बिहार में कुछ महीनों के लिए राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। कुछ महीनों के राष्ट्रपति शासन बाद अक्टूबर-नवंबर में फिर से विधानसभा चुनाव हुए। जिस चुनाव में जदयू एवं भाजपा गठबंधन को बहुमत हासिल हुई। फरवरी में जहां राजद के सत्ता में फिर से वापसी के कयास लगाए जा रहे थे। वहीं आठ महीने के अंतराल पर हुए दोबारा चुनाव में बिहार की राजनीतिक परिस्थिति पूरी तरह बदल गयी। इस चुनाव में जनता ने राजनीतिक बदलाव को लेकर स्प्ष्ट संकेत दिए। सत्ता का जो समीकरण फरवरी में उलझा हुआ था, वह अक्टूबर में पूरी तरह स्पष्ट हो गया। फरवरी में हुए चुनाव में राजद को जहां 75 सीटें मिली थीं, वहीं अक्टूबर में यह घटकर 54 हो गई। जदयू को 55 की जगह 88 एवं भाजपा को 37 के स्थान पर 55 सीटें मिली। इसी प्रकार कांग्रेस को 10 के स्थान पर 9 एवं लोजपा 29 की जगह मात्र 10 सीटें प्राप्त हुई। जिसके बाद पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री की कमान नीतीश कुमार ने संभाली।

वर्ष 2010 में विधानसभा की 243 सीटों के लिए छह चरणों में हुए चुनावों में नीतीश कुमार की जदयू सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। इन चुनावों में एनडीए गठबंधन में जदयू एवं भाजपा ने मिलकर चुनाव लड़ा था। तथा उनके सामने राजद और लोक जनशक्ति पार्टी का गठबंधन था। इन चुनावों में जनता दल यूनाइटेड ने 141 में से 115 सीटें एवं बीजेपी ने 102 में से 91 सीटें जीती थी। वहीं, राजद ने 168 सीटों पर चुनाव लड़कर 22 सीट जीती थी। जबकि लोजपा 75 सीटों में से महज 3 सीट ही जीत पायी थी। हांलाकि, कांग्रेस ने पूरी 243 सीटों पर चुनाव लड़ा था। परंतू उसे सिर्फ 4 सीट पर ही जीत हासिल हो सकी। इसके बाद से कांग्रेस ने महागठबंधन में ही चुनाव लड़ा है। इन चुनाव में बिहार की बड़ी पार्टी माने जाने वाली राजद का प्रदर्शन बहुत खराब रहा था, जो फरवरी 2005 के चुनावों की 75 सीटों के मुकाबले सिमटकर 22 सीटों पर आ गई थी। तथा वर्ष 2010 में एनडीए की सरकार बनी और नीतीश कुमार फिर से मुख्यमंत्री बनाए गए।

वर्ष 2015 के अक्टूबर-नवंबर के चुनाव की बात करें तो विधानसभा चुनाव पांच चरणों में पूरा हुआ था। इस चुनावों में सत्ताधारी जनता दल यूनाइटेड (जदयू), राष्ट्रीय जनता दल (राजद), कांग्रेस, जनता दल, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी,इंडियन नेशनल लोक दल और समाजवादी जनता पार्टी (राष्ट्रीय) ने महागठबंधन बनाकर चुनाव लड़ा था। वहीं, भारतीय जनता पार्टी ने लोक जनशक्ति पार्टी, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी एवं हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के साथ चुनावी मैदान में कदम रखा था। वर्ष 2015 के चुनाव में कुल-243 सीटों पर हुआ था। जिसमें सरकार बनाने के लिए 122 सीटों की जरूरत थी। इन चुनावों में लालू प्रसाद यादव की राजद एवं नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जेडीयू ने 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ा था। कांग्रेस ने 41 एवं भाजपा ने 157 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। चुनाव के नतीजे आने पर राजद 80 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। इसके बाद जदयू को 71 सीटें एवं भाजपा को 53 सीटें मिली थी। इन चुनाव में कांग्रेस को 27 सीटें मिली। इन चुनाव में महागठबंधन की सरकार बनी। तथा नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया गया। हालांकि वर्ष 2017 में भ्रष्टाचार के मद्दे पर जेडीयू महागठबंधन से अलग हो गई और नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ मिलकर नई एनडीए सरकार बनायी।

वर्ष 2020 के अक्टूबर-नवंबर हुए विधानसभा चुनाव में कुल-243 सीट में से एनडीए ने 125 सीटे जीत जीती। जबकि महागठबंधन को 110 सीटें हासिल हुई हैं। जिसमें भाजपा 74,जदयु 43,हम 4 एवं वीआईपी को 4 सीट मिली थी। जबकि राजद को 75,कांग्रेस को 19,माले 12, भाकपा 2 एवं माकपा को 2 सीट मिली। इसी तरह ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम को 5 सीट प्राप्त हुई। जिसमें सबसे बड़ी गठबंधन एनडीए ने नीतीश कुमार के नेतृत्व में सरकार बनायी। अगर हम बिहार के सियासी इतिहास की बात करे, तो वर्ष 2000 में एकीकृत बिहार में हुए चुनाव से पहले बिहार में काफी उथल-पुथल हुई थी। लालू यादव ने राबड़ी देवी को अपनी जगह बिहार का मुख्यमंत्री बनाया था। तथा वर्ष 1997 में लगभग तीन हफ्तों का राष्ट्रपति शासन भी लगा था। इसके बाद मार्च 2000 में विधानसभा चुनाव हुए। ये वो समय जब बिहार से अलग करके झारखंड राज्य नहीं बनाया गया था।

वर्ष 2000 के नवंबर में झारखंड का गठन हुआ था। तब बिहार में 324 सीटें हुआ करती थी और जीतने के लिए 162 सीटों की जरूरत होती थी। इन चुनावों में राजद ने 293 सीटों पर चुनाव लड़ा था। तथा उसे 124 सीटें मिली थी। वहीं, भाजपा को 168 में से 67 सीटें हासिल हुई थी। इसके अलावा समता पार्टी को 120 में से 34 एवं कांग्रेस को 324 में से 23 सीटें हासिल हुई थी। वर्ष 2000 के चुनाव में राबड़ी देवी मुख्यमंत्री बनी थी। वर्ष 1995 के विधानसभा चुनाव की बात करें, तो वर्ष 1995 का चुनाव वो चुनाव थे, जब ना तो बिहार में आरजेडी थी और ना जेडीयू। हालांकि, 1994 में नीतीश कुमार जरूर समता पार्टी बनाकर लालू यादव से अलग हो गए थे। तब लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व में जनता दल ने 264 सीटों पर बिहार चुनाव लड़ा और वो 167 सीटें जीतने में सफल हुई। भाजपा ने 315 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए, लेकिन सिर्फ 41 सीटे ही जीत पायी। कांग्रेस 320 सीटों पर चुनाव लड़कर 29 सीटें ही जीत पाई। उस समय भी बिहार में 324 सीटों के लिए चुनाव लड़ा गया था। तब झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) भी बिहार से ही चुनाव लड़ती थी। जेएमएम ने चुनावों में 63 में से 10 सीटे जीती थी और समता पार्टी को 310 में से 7 सीटे मिली थी। इन चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी के साथ लालू प्रसाद यादव बिहार के मुख्यमंत्री बने। परंतू वर्ष 1997 में चारा घोटाले में फंसने के कारण लालू यादव को बिहार के मुख्यमंत्री के पद से हटना पड़ा। तथा उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को बिहार का मुख्यमंत्री बनाया। उनके इस फैसले की काफी आलोचना हुई और पार्टी में फूट भी पड़ गई। वर्ष 1997 में ही राष्ट्रीय जनता दल का भी गठन हुआ। वर्ष 1990 विधानसभा चुनाव वर्ष 1988 में कई दलों के विलय से बने जनता दल ने पहली बार बिहार चुनाव लड़ा था। जनता पार्टी 276 सीटों पर चुनाव लड़कर 122 सीटें जीते और सबसे बड़ी पार्टी बनकर खड़ी हुई। हालांकि, बहुमत का आँकड़ा 162 सीटें था। वही, कांग्रेस को 323 सीटों में से 71 सीटें और भाजपा को 237 सीटों में से 39 सीटों हासिल हुई। कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया ने 109 सीटों पर चुनाव लड़कर 23 सीटें जीती थी। जेएमएम 82 में से 19 सीटें जीत पाई थी। तब बिहार में लालू यादव के नेतृत्व में जनता दल की सरकार बनी थी। इन चुनावों के बाद ही बिहार में एक ही कार्यकाल में कई मुख्यमंत्री बनने का दौर खत्म हुआ। वर्ष 1985 विधानसभा चुनावों में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। उसे 323 में से 196 सीटें मिली थी, जो बहुमत से कहीं ज्यादा थी। इन्हीं चुनावों के बाद बिहार में एक ही कार्यकाल में चार मुख्यमंत्री बने थे। इन चुनावों में लोक दल को 261 में से 46 एवं भाजपा को 234 में से 16 सीटें मिली थी। उस समय जनता पार्टी भी चुनावी मैदान में थी, जो बाद में जनता दल में शामिल हो गई। जनता पार्टी को 229 में से 13 सीटें मिली थी। इन चुनावों में 1985 से 1988 तक बिंदेश्वरी दुबे बिहार के मुख्यमंत्री रहे। उनके बाद लगभग एक साल भागवत झा आजाद, फिर कुछ महीनों के लिए सत्येंद्र नारायण सिन्हा और जगन्नाथ मिश्र बिहार के मुख्यमंत्री बने थे। 1980 का विधानसभा चुनाव इन चुनावों में कांग्रेस (इंदिरा) को 311 में से 169 सीटें मिली थी। तथा कांग्रेस (यू) को 185 में से 14 सीटें मिली थी। तब भाजपा ने 246 में से 21 सीटें जीती थी और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया ने 135 में से 23 सीटें हासिल की थी। जनता पार्टी (एससी) को तब 254 में से 42 सीटें मिली थी। इस कार्यकाल में भी लगभग चार महीने राष्ट्रपति शासन लागू रहा है। उसके बाद करीब तीन वर्ष के लिए जगन्नाथ मिश्र और एक वर्ष के लिए चंद्रशेखर सिंह बिहार के मुख्यमंत्री बने थे। वर्ष 1977 में हुए विधानसभा चुनाव में जनता पार्टी ने बिहार की 311 सीटों पर चुनाव लड़ा और 214 सीटों पर जीत हासिल की। कांग्रेस को इस चुनाव में 286 में से 57 सीटें ही मिली थी। वहीं, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया ने 73 में से 21 सीटें हासिल हुई। बिहार में जनता पार्टी की सरकार बनी। पहले लगभग दो महीने राष्ट्रपति शासन लागू रहा। उसके बाद लगभग एक साल के लिए 1979 तक कर्पूरी ठाकुर और फिर 1980 तक रामसुंदर दास बिहार के मुख्यमंत्री बने। वर्ष 1972 हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत हुई थी और उसे 259 में से 167 सीटें मिली थी। वहीं, कांग्रेस (ओ) 272 में से 30 सीटें ही मिल पाई थी। इसके अलावा भारतीय जन संघ को 270 में से 25 सीटें हासिल हुई थी। तब संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (एसएसपी) को 256 सीटों पर चुनाव लड़कर 33 सीटें मिली थी। इस कार्यकाल में भी लगभग दो महीने राष्ट्रपति शासन लगा रहा और उसके बाद एक या दो साल के लिए केदार पांडे, अब्दुल गफूर और जगन्नाथ मिश्र बिहार के मुख्यमंत्री रहे। वर्ष 1969 में हुए विधानसभा चुनाव में भी इंडियन नेशनल कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। हालांकि, उसे पूर्ण बहुमत नहीं मिला था। उस समय बिहार में 318 सीटों के लिए विधानसभा चुनाव हुआ था और जीत के लिए 160 सीटों की जरूरत थी। कांग्रेस को 318 में से 118 सीटें मिली और भारतीय जनसंघ को 303 में से 34 सीटें हासिल हुई। इस चुनाव में एसएसपी को 191 में से 52 एवं कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया को 162 में से 25 सीटें मिली है। इस कार्यकाल में भी राष्ट्रपति शासन के बाद दारोगा प्रसाद राय,कर्पूरी ठाकुर और भोला पासवान शास्त्री कुछ-कुछ समय के लिए मुख्यमंत्री बने। वर्ष 1967 के विधानसभा चुनाव कांग्रेस को 318 में से 128, एसएसपी को 199 में से 68 और जन क्रांति दल को 60 में से 13 सीटें मिली थी। इन तीनों से थोड़े-थोड़े समय तक कुल चार मुख्यमंत्री रहे थे। इन चुनावों में भारतीय जनसंघ ने 271 में से 26 सीटें हासिल की थी। आजादी के बाद पहली बार हुए 1951 के चुनाव में कई पार्टियों ने भाग लिया, लेकिन कांग्रेस ही उस समय सबसे बड़ी पार्टी थी। इन चुनाव में कांग्रेस को 322 में से 239 सीटें मिली थी। वर्ष 1957 के चुनाव में भी कांग्रेस ही सबसे बड़ी पार्टी बनी। उसे 312 में से 210 सीटें मिली थी। 1962 के चुनाव में कांग्रेस को 318 में से 185 सीटों के साथ बहुमत हासिल हुआ था। उसके बाद स्वतंत्र पार्टी को सबसे ज्यादा 259 में से 50 सीटें मिली थी। श्री कृष्ण सिन्हा बिहार के पहले मुख्यमंत्री बने थे।

अगर हम बिहार के सियासत की बात करें, तो लालु प्रसाद यादव के आज की सियासत में नीतीश कुमार बिहार में सबसे बड़े सियासी चेहरा बन गए हैं। वर्ष 2005 से लेकर अभी तक के सियासत का मुख्य केन्द्र नीतीश कुमार बने हुए हैं। वैसे वर्ष 2005 के बाद से बिहार में जिस तरह से विकास के कार्य हुए हैं, उसे न सिर्फ बिहार की जनता नीतीश कुमार के विकसित कार्य खुष है, बल्कि देश की जनता के साथ-साथ राजनेता भी नीतीश कुमार की छवि एवं विकसित कार्य से काफी प्रभावित हैं। अब तो ऐसा लगने लगा है कि जिस तरह से नीतीश कुमार नये महागठबंधन में गए हैं। उसके बाद से हर कोई की निगाहें नीतीश कुमार के केन्द्रीय राजनीति पर केन्द्रित हो गई है। कहीं वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर नीतीश कुमार ने इतना बड़ा फैसला चुनाव से पुर्व लिया है। कहीं न कहीं नीतीश कुमार का यह फैसला केन्द्र की राजनीति के लिए दुरगामी साबित हो सकता है!

lakshyatak
Author: lakshyatak

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!