भारतीय सेना के लिए अलग उपग्रह जीसैट-7B विकसित करेगा इसरो

नई दिल्ली- 29 मार्च। जमीन से लेकर आसमान और समुद्री सीमाओं के बाद अब भारत ने युद्ध की तैयारियों के लिहाज से अंतरिक्ष में भी खुद को मजबूत करना शुरू कर दिया है। अब भारतीय सेना के लिए अलग से 5 टन का नया संचार उपग्रह जीसैट-7 बी इसरो विकसित करेगा। इसके लिए बुधवार को रक्षा मंत्रालय ने न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (एनएसआईएल) के साथ 2963 करोड़ रुपये के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए हैं।

दरअसल, भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने सशस्त्र बलों की उपग्रह आधारित संचार और नेटवर्क केंद्रित ताकत बढ़ाने के लिए जीएसएटी-7 और जीएसएटी-7ए को पृथ्वी की कक्षा में रखा है। मल्टी बैंड जीसैट-7 को रुक्मिणी के नाम से जाना जाता है। इसका इस्तेमाल मुख्य रूप से भारतीय नौसेना करती है। यह पहला ऐसा सैन्य संचार उपग्रह है, जो समुद्री जहाजों और वायुयानों के बीच सटीक वास्तविक समय की जानकारी प्रसारित करता है। नई पीढ़ी के जीसैट-7ए की सहायता से भारतीय वायु सेना अपने हवाई बेड़े, एयरबेस, रडार स्टेशनों के साथ-साथ अवाक्स नेटवर्क को संचालित करती है। भारतीय सेना मौजूदा समय में भारतीय वायु सेना के संचार उपग्रह जीसैट-7ए पर निर्भर है।

अब भारतीय सेना के लिए इसरो अलग से 5 टन का नया उपग्रह जीसैट-7 बी विकसित करेगा, जिससे सेना की संचार क्षमताओं को बढ़ावा मिलेगा। रक्षा मंत्रालय ने आज न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (एनएसआईएल) के साथ 2963 करोड़ रुपये के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए हैं। यह उपग्रह सैनिकों और संरचनाओं के साथ-साथ हथियार और हवाई प्लेटफार्मों को दृष्टि संचार की रेखा से परे महत्वपूर्ण मिशन में काफी वृद्धि करेगा। जियोस्टेशनरी उपग्रह पांच टन श्रेणी में अपनी तरह का पहला होने के नाते इसे इसरो स्वदेशी रूप से विकसित करेगा। उपग्रह के कई पुर्जे और प्रणालियां स्वदेशी एमएसएमई और स्टार्ट-अप से हासिल की जाएंगी, जिससे निजी भारतीय अंतरिक्ष उद्योग को बढ़ावा मिलेगा। यह परियोजना साढ़े तीन साल की अवधि में लगभग तीन लाख मानव-दिवस का रोजगार सृजित करेगी।

भारतीय सेना फिलहाल निगरानी के लिहाज से अंतरिक्ष के कार्टोसैट और रिसैट श्रृंखला पर बहुत अधिक निर्भर हैं। इसरो ने इनमें से एक दर्जन से अधिक अंतरिक्ष यान को पृथ्वी की कक्षा में डाल दिया है। नौ लॉन्च किए गए कार्टोसैट उपग्रहों में नवीनतम तीसरी पीढ़ी का कार्टोसैट-3 अंतरिक्ष में भारत का सबसे शक्तिशाली इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल पर्यवेक्षक है। यह अत्यधिक फुर्तीला उपग्रह है जो उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाले पंचक्रोमाटिक पेलोड से लैस है। इसके जरिये 0.25 मीटर ग्राउंड रिज़ॉल्यूशन की तस्वीरें मिलती हैं, जो मौजूदा समय में भारतीय सेना के संचालित किसी भी रक्षा उपग्रह से बेहतर है।

रक्षा मंत्रालय ने आज ही भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) के साथ दो और अनुबंध पर हस्ताक्षर किए हैं। बीईएल के साथ पहला अनुबंध भारतीय सेना के लिए 1,982 करोड़ रुपये के ऑटोमेटेड एयर डिफेंस कंट्रोल एंड रिपोर्टिंग सिस्टम ‘प्रोजेक्ट आकाशतीर’ की खरीद से संबंधित है। ‘आकाशतीर’ भारतीय सेना के युद्ध क्षेत्रों पर निम्न स्तर के हवाई क्षेत्र की निगरानी करने में सक्षम होगा और ग्राउंड बेस्ड एयर डिफेंस वेपन सिस्टम को प्रभावी रूप से नियंत्रित करेगा। बीईएल के साथ दूसरा अनुबंध भारतीय नौसेना के लिए 412 करोड़ रुपये की कुल लागत पर सारंग इलेक्ट्रॉनिक सपोर्ट मेज़र (ईएसएम) सिस्टम के अधिग्रहण से संबंधित है। यह भारतीय नौसेना के हेलीकॉप्टरों के लिए अपग्रेडेड इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम है, जिसे समुद्रिका कार्यक्रम के तहत स्वदेशी रूप से डिजाइन और विकसित किया गया है।

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Author: lakshyatak

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