बिहार की जनता खेला करने वाले लोगों को झाड़ू मारकर बाहर कर दे: प्रशांत

सहरसा- 07 फरवरी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राजनीतिक निर्लज्जता के उदाहरण बन गए हैं। जो चुनाव हारने के बावजूद कोई ना कोई जुगाड़ कर अब कुर्सी पर बने हुए हैं।बिहार में फ्लोर टेस्ट से पहले ही सियासत में संकट के बादल मंडराने लगे हैं। एक तरफ कांग्रेस में टूट का डर है तो दूसरी तरफ बिहार के सत्ताधारी गठबंधन एनडीए में भी सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है।उक्त बातें बुधवार को सहरसा स्टेडियम मे आयोजित प्रेस वार्ता के दौरान जनसुराज अभियान के सूत्रधार प्रशांत किशोर ने कही।

प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार पर हमला करते हुए कहा कि बिहार में कोई भी खेला हो जाए आपको शायद जानकारी हो कि बिहार में 2012 के बाद ये नीतीश का सातवां राजनीतिक प्रयोग है। केंद्र में चाहे यूपीए की सरकार हो या प्रधानमंत्री मोदी जी की सरकार हो। बिहार में नीतीश कुमार चाहे महागठबंधन के साथ रहें या अकेले रहें या फिर बीजेपी के साथ रहें इससे बिहार में क्या बदल गया। क्या आज बिहार में बच्चों के पढ़ने की व्यवस्था अच्छी हुई। बिहार में क्या चीनी मिलें चालू हुई। बिहार के लोगों को रोजगार तो मिला नहीं।बिहार के लोग आज भी पलायन के लिए मजबूर हैं।

उन्होंने कहा कि बिहार की जनता ही इस प्रदेश को सही विकल्प चुनकर विकास के रास्ते पर ले जा सकते हैं। इसके लिए गांव-गांव घूम कर हम नए लोगों को तलाश कर रहे हैं।20 फरवरी से सहरसा में एक महीना रहकर सभी प्रखंड और पंचायत तक पदयात्रा निकालकर यहां की समस्याओं से रूबरू होंगे। उन्होंने कहा कि सभी वर्ग संप्रदाय जाति के लोगों ने एक नए सर्वेक्षण में 55% लोगों ने बिहार में नए विकल्प की आवश्यकता बताई है। पहले हम दल और नेताओं के लिए काम करते थे।अब वही काम जनता के बीच अलख जगा कर किया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि हमारी भूमिका एक कुम्हार की तरह है। जैसे कुमार अच्छी मिट्टी का चुनाव कर अच्छी मूर्ति बनाते हैं।उसी प्रकार हम भी अच्छे लोगों की तलाश कर एक नए राजनीतिक विकल्प तैयार किया जा रहा है। उन्हें ने कहा कि नीतीश सरकार की जब मैं मदद की उसे समय उनकी छवि सुशासन बाबू की थी। जिनके अंदर मानवता कूट-कूट कर भरी हुई थी।जिन्होंने रेल मंत्री रहते हुए मानवीयता के आधार पर नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए गैसल रेल दुर्घटना के कारण इस्तीफा दे दिया था लेकिन अब वे काफी बदल गये है। उन्होंने कहा बिहार में शराबबंदी सफल नहीं हुई है।

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Author: lakshyatak

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