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देशभक्ति और एकता ही स्वतंत्रता का आधारः मोहन भागवत

माजुली (असम)- 29 दिसंबर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने शुक्रवार को कहा कि राष्ट्र की स्वतंत्रता का आधार देशभक्ति और आपसी एकता है। इसके बिना तो स्वतंत्रता ही खतरे में पड़ जाएगी। उन्होंने कहा कि हमें अपने राष्ट्र को युगानुकूल स्वत्व के आधार पर विकसित करना है। संघ के गठन के पीछे मुख्य उद्देश्य समाज को राष्ट्रभक्त, संगठित और ओजस्वी स्वाभिमान से परिपूर्ण बनाने की दिशा में जागृत करना है।

डॉ. भागवत असम के माजुली में गणवेशधारी स्वयंसेवकों के “लुइत सुबनसिरी समावेश” को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने स्वयंसेवकों से सवाल किया कि क्या भारत अपनी कड़ी मेहनत से स्वतंत्रता प्राप्त करने के बावजूद उसमें “स्व” या स्वत्व को बरकरार रखने में सक्षम था? डॉ. भागवत ने इस बात पर जोर दिया कि हमारा “स्व” हमारे समय के परिरक्षित पारंपरिक ज्ञान और दुनिया भर के सर्वोत्तम ज्ञान द्वारा समर्थित पीढ़ीगत आवश्यकताओं पर आधारित होना चाहिए। उन्होंने कहा कि विगत शताब्दियों में दुनिया को भौतिकवादी आकांक्षाओं पर आधारित दोषपूर्ण मानकों के कारण विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ा है। हमारा भारतीय मॉडल समाज को सभी पहलुओं में आत्मनिर्भर बनाने का अधिकार देता है।

उन्होंने कहा कि प्राचीन भारत अपने भौगोलिक स्थिति के कारण हिंदुकुश पर्वत से अराकान तक बाहरी आक्रमणों से सुरक्षित था; इसलिए हमारे पूर्वजों को आध्यात्मिक, कलात्मक और साथ ही भौतिक रूप से विकास के चरम तक पहुंचने के लिए पर्याप्त समय मिला। उन्होंने कहा कि रासायनिक उर्वरकों पर आधारित कृषि विकास की कोई आवश्यकता नहीं थी, जिसका दुष्प्रभाव अंततः लोगों पर पड़ता है। संघ प्रमुख डॉ. भागवत ने महापुरुष शंकरदेव और लाचित बरफुकन आदि जैसे हमारे गौरवशाली प्रतीकों द्वारा दिखाए गए महान मार्ग का अनुसरण करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि यह सार्वभौमिक सत्य है कि नियमित अभ्यास के माध्यम से महान गुण आदत बन जाते हैं। संघ शाखाओं की यही पद्धत्ति है। वैश्विक कल्याण के प्रति प्रतिबद्ध एक सशक्त राष्ट्र बनाने के लिए इस व्यक्तिगत अच्छी आदत को संगठित प्रयास में बदलने की आवश्यकता है। यह संगठित प्रयास एक बड़े परिवार की भाईचारे की भावना से जुड़ा होना चाहिए। महान भारतीय मूल्य हमें “दोनों हाथों से कमाना, लेकिन हजार हाथों से योगदान करना” सिखाता है।

डॉ. भागवत ने बताया कि पृथ्वी पर अन्य समाज धर्मनिरपेक्षता की बात तो जोर-शोर से करते हैं परंतु भारतवर्ष सदियों से इस पर अमल करता आ रहा है। संघ समाज में कोई अलग समूह बनाकर नहीं, बल्कि व्यक्तिगत स्वार्थी वृत्तियों को छोड़कर सभी को एक साथ लाकर पूरे समाज को संगठित करके विश्व कल्याण का साधन मात्र बनना चाहता है। डॉ. भागवत अपनी पहली दो दिवसीय माजुली यात्रा पूर्ण कर डिब्रूगढ़ के लिए प्रस्थान कर गए।

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Author: lakshyatak

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