नई दिल्ली- 06 सितंबर। सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में जातिगत सर्वे मामले पर सुनवाई टाल दी है। मामले की अगली सुनवाई तीन अक्टूबर को होगी। आज भी कोर्ट ने सर्वे के आंकड़े जारी करने पर अंतरिम रोक का आदेश नहीं दिया। कोर्ट ने कहा कि मामले में विस्तार से सुनवाई की जरूरत है।
28 अगस्त को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब दाखिल करते हुए कहा कि संविधान के मुताबिक जनगणना केंद्रीय सूची के अंर्तगत आता है। सरकार ने ये भी कहा है कि केंद्र सरकार खुद एससी, एसटी और सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े लोगों के उत्थान की कोशिश में लगी है। केंद्र सरकार ने कहा है कि जनगणना एक विधायी प्रक्रिया है, जो जनगणना अधिनियम 1948 के तहत है और केंद्रीय अनुसूची के 7वें शेड्यूल के 69वें क्रम के तहत इसके आयोजन का अधिकार केंद्र सरकार के पास है। केंद्र ने कहा है कि अधिनियम 1984 की धारा-3 के तहत यह अधिकार केंद्र को मिला है। इसके लिए केंद्र सरकार की ओर से अधिसूचना जारी कर यह बताया जाता है कि देश में जनगणना करायी जा रही है और उसके आधार भी स्पष्ट किए जाते हैं।
18 अगस्त को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसा नहीं लगता है कि सर्वे से किसी की निजता का हनन हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पहले याचिकाकर्ता इस बात पर दलील दें कि मामला सुनवाई योग्य है। सुनवाई के दौरान बिहार सरकार ने कहा था कि हमने जाति आधारित जनगणना पूरी कर ली है। याचिकाकर्ताओं ने इस सर्वे का आंकड़ा सार्वजनिक करने पर रोक लगाने की मांग की। इस पर कोर्ट ने कहा था कि हम अभी रोक नहीं लगाएंगे। जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा था कि दो-तीन कानूनी पहलू हैं। हम नोटिस जारी करने से पहले दोनों पक्ष की दलील सुनेंगे, फिर निर्णय करेंगे। हालांकि कोर्ट ने कहा कि निजी आंकड़े कभी सार्वजनिक नहीं होते। आंकड़ों का विश्लेषण ही जारी किया जाता है। इस पर बिहार सरकार ने कहा था कि आंकड़े दो तरह के हैं। एक व्यक्तिगत आंकड़ा जो सार्वजनिक नहीं किया जा सकता, क्योंकि निजता का सवाल है जबकि दूसरा आंकड़ों का विश्लेषण, जिसका एनालिसिस किया जा सकता है, जिससे बड़ी पिक्चर सामने आती है।
सात अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दाखिल सभी याचिकाओं को एक साथ सुनेगा। याचिकाकर्ता अखिलेश कुमार समेत दूसरे याचिकाकर्ताओं ने पटना हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर किया है।
उल्लेखनीय है कि पटना हाई कोर्ट ने दो अगस्त को बिहार सरकार की ओर से जाति आधारित सर्वे कराने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया था। दरअसल, पटना हाई कोर्ट का आदेश आने के बाद बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में केविएट याचिका दायर की है। बिहार सरकार का कहना है कि अगर पटना हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाती है तो उसका पक्ष सुने बिना कोई भी याचिका दायर नहीं की जाए।