बिहार

बिहार की बदहाल शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त कर शिक्षा का माहौल बनाया और बड़े पैमाने पर शिक्षकों की बहाली की: नीतीश कुमार

पटना- 02 नवंबर। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सोशल मीडिया के माध्यम से कहा है कि वर्ष 2005 से पहले बिहार में शिक्षा का हाल बहुत बुरा था। छात्र-छात्राएं स्कूल नहीं जा पाते थे। सरकारी स्कूलों के भवन जर्जर हो चुके थे। राज्य में प्राथमिक विद्यालयों की संख्या बहुत कम थी। शिक्षा के लिए बुनियादी ढांचे का घोर अभाव था। स्कूलों में बच्चों को बैठने के लिए बेंच-डेस्क उपलब्ध नहीं थे। सरकारी विद्यालयों में शिक्षकों की काफी कमी थी। 1990 से 2005 के बीच राज्य में शिक्षकों की नियुक्ति नाम मात्र की हुई थी। प्रदेश में छात्र-शिक्षक अनुपात बेहद खराब था। उस वक्त राज्य में 65 बच्चों पर मात्र एक शिक्षक होता थे। लगभग 12.5 प्रतिशत बच्चे ऐसे थे, जो स्कूलों से पूरी तरह से बाहर थे, यानि शिक्षा से कटे हुए थे। इसमें सबसे ज्यादा बच्चे समाज के वंचित तबके महादलित और अल्पसंख्यक समुदाय के थे, जो स्कूल नहीं जा पाते थे। उस समय जो थोड़े-बहुत शिक्षक थे भी, तो उन्हें समय पर वेतन नहीं मिल पाता था। बहुत कम संख्या में बच्चियां स्कूल जा पाती थीं। पांचवीं कक्षा के बाद बच्चियां आगे की पढ़ाई नहीं कर पाती थीं। राज्य में शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह से चौपट हो चुकी थी। सत्ता में बैठे लोगों ने शिक्षा को भद्दा मजाक बनाकर रख दिया था। 10वीं के बाद आगे की पढ़ाई के लिए राज्य में अच्छे कॉलेज और शैक्षणिक संस्थान नहीं के बराबर थे।

उच्च और तकनीकी शिक्षा के लिए अच्छे संस्थानों का घोर अभाव था। सत्र इतनी देर से चलता था कि छात्रों को स्नातक की पढ़ाई पूरी करने में पांच वर्ष तक लग जाते थे। उच्च और तकनीकी शिक्षा पाने के लिए राज्य के युवा देश के दूसरे राज्यों में जाने को मजबूर थे। उस समय सत्ता में बैठे लोगों ने राज्य में नये स्कूलों के निर्माण के बजाय ‘चरवाहा विद्यालय’ खोलकर शिक्षा के प्रति अपने कर्तव्यों एवं दायित्वों की इतिश्री समझ ली थी।

24 नवंबर 2005 को राज्य में नयी सरकार के गठन के बाद हमलोगों ने प्राथमिकता के आधार क्रमवार शिक्षा-व्यवस्था में सुधार का काम शुरू किया। इसके लिए सबसे पहले हमलोगों ने शिक्षा के बजट में साल दर साल लगातार बढ़ोत्तरी की। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि राज्य में वर्ष 2005 में शिक्षा का कुल बजट मात्र 4366 करोड़ रुपये था। अब 2025-26 में शिक्षा विभाग का बजट 60,964.87 करोड़ हो गया है, जो राज्य के कुल बजट का लगभग 22 प्रतिशत है।

राज्य भर में युद्ध स्तर पर नये स्कूल भवनों के निर्माण कार्य के साथ ही पुराने स्कूल भवनों के जीर्णोद्धार का कार्य शुरू कराया। वर्ष 2005 में राज्य में जहां कुल 53 हजार 993 विद्यालय थे, वर्ष 2025 में यह संख्या बढ़कर 75 हजार 812 हो गयी है। फिलहाल प्रदेश में 97.61 प्रतिशत टोले सरकारी विद्यालयों के आच्छादित हो चुके हैं। सभी पंचायतों में उच्च विद्यालय की स्थापना और 12वीं तक की पढ़ाई शुरू की गई, ताकि छात्राओं को पढ़ाई के लिए दूर नहीं जाना पड़े और उन्हें शिक्षा प्राप्त करने में सुविधा मिल सके। इस बीच शिक्षकों की संख्या भी लगातार बढ़ाई गई है। वर्ष 2024 में बिहार लोक सेवा आयोग के जरिए 2 लाख 38 हजार 744 शिक्षक नियुक्त किए गये एवं वर्ष 2025 में 36,947 प्रधान शिक्षकों के साथ ही 5,971 प्रधानाध्यापकों की नियुक्ति की गई। साथ ही वर्ष 2006 में स्थानीय निकायों के माध्यम से नियोजित 3,68,000 शिक्षकों को भी सक्षमता परीक्षा के जरिए नियमित किया जा रहा है। इस तरह से अब राज्य में सरकारी शिक्षकों की संख्या लगभग 6 लाख हो गई है। राज्य में इतनी बड़ी संख्या में शिक्षक नियुक्ति की चर्चा आज देशभर में की जा रही है। स्कूलों में बेंच-डेस्क का इंतजाम किया गया। अब विद्यालयों में हाईटेक शिक्षा व्यवस्था के लिए ‘उन्नयन बिहार योजना’ लागू की गयी। आज राज्य में 10+2 तक के अधिकांश विद्यालयों में कंप्यूटर लैब, ई-लाइब्रेरी और प्रयोगशाला आदि की व्यवस्था की गई है। इसके साथ ही ग्रामीण इलाकों में रहकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्र-छात्राओं के लिए प्रखंड एवं पंचायत स्तर पर अत्याधुनिक पुस्तकालय खोले गये हैं, जहां छात्रों को कॉपी-किताब और अन्य पठन-पाठन सामग्रियों के साथ ही हाईस्पीड इंटरनेट की सुविधा भी मुहैया करायी जा रही है। पहले विद्यालयों में लड़कियों की संख्या काफी कम थी। वर्ष 2006-07 में हमारी सरकार ने छात्र-छात्राओं के लिए पोशाक योजना की शुरुआत की। वहीं वर्ष 2008 में 9वीं वर्ग की छात्राओं के लिए साइकिल योजना शुरू की गयी, जिसकी सराहना दुनिया के कई देशों में हुई और दूसरे राज्यों ने भी साइकिल योजना को अपनाया। बाद में वर्ष 2010 से साइकिल योजना का लाभ लड़कों को भी दिया जाने लगा। इसके फलस्वरूप आज मैट्रिक एवं इंटरमीडिएट में छात्राओं की संख्या छात्रों से भी अधिक हो गई है।

हमलोगों ने पहले एक सर्वे कराया, जिसमें पता चला कि जो 12.5 प्रतिशत बच्चे स्कूल नहीं जा पाते हैं, उसमें सबसे अधिक समाज के निचले तबकों, महादलित वर्ग और मुस्लिम समुदाय के बच्चे शामिल हैं। इन बच्चों को स्कूल लाने के लिए विशेष प्रयास किये गये। महादलित परिवार के बच्चों को स्कूल तक पहुंचाने के लिए टोला सेवक तथा मुस्लिम समुदाय के बच्चे-बच्चियों को स्कूल लाने के लिए टोला सेवक (तालिमी मरकज) की नियुक्ति की गयी, जिन्हें अब शिक्षा सेवक कहा जाता है, जो इन बच्चों को स्कूल तक पहुंचाने में मदद करते हैं। हमारी सरकार के इन प्रयासों के कारण आज लगभग शत प्रतिशत बच्चे विद्यालयों में पढ़ाई करने पहुंच रहे हैं।
शिक्षा-व्यवस्था में व्यापक सुधार करते हुए हमारी सरकार ने राज्य में एकेडमिक कैलेंडर लागू किया। अब बिल्कुल समय पर मैट्रिक एवं इंटरमीडिएट की परीक्षाएं हो रही हैं तथा समय से परीक्षा परिणाम भी आ रहे हैं। इसके साथ ही हमलोगों ने राज्य में उच्च एवं तकनीकी पर भी विशेष ध्यान दिया। वर्ष 2005 में राज्य में जहां मात्र 10 राजकीय विश्वविद्यालय थे आज उसकी संख्या बढ़कर 21 हो गई है, जबकि 4 केंद्रीय विश्वविद्यालय और 8 नये निजी विश्वविद्यालयों की स्थापना हुई है। हमलोगों ने राज्य के सभी प्रखंड मुख्यालयों में चरणबद्ध तरीके से डिग्री कॉलेज की स्थापना का भी निर्णय लिया है, जिस पर तेजी से काम चल रहा है। इसके अलावा राज्य सरकार के प्रयास एवं सहयोग से प्रदेश में कई राष्ट्रीय स्तर के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना भी की गई है। इसमें चाणक्य राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय,चंद्रगुप्त प्रबंधन संस्थान, पटना के बिहटा में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT), पटना में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS), राष्ट्रीय फैशन प्रौद्योगिकी संस्थान (NIFT), बोधगया में भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM), भागलपुर में भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान (IIIT) प्रमुख हैं। उच्च शिक्षण संस्थानों में व्याख्याताओं की बहाली के लिए हमलोगों ने वर्ष 2017 में बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग का गठन किया।

वर्ष 2005 से पहले राज्य में इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेजों की बहुत कम थी। आज सभी 38 जिलों में इंजीनियरिंग कॉलेज संचालित हो रहे हैं। पॉलिटेक्निक संस्थानों की संख्या 13 से बढ़कर 46 हो गयी है तथा आईटीआई की संख्या 23 से बढ़कर 152 हो गई है। मेडिकल की शिक्षा के लिए पटना में एम्स और आई॰जी॰आई॰एम॰एस॰ के अलावा राज्य में सरकारी चिकित्सा महाविद्यालयों की संख्या 12 है। इसके अतिरिक्त दरभंगा एम्स को मिलाकर राज्य में कुल 21 नये सरकारी चिकित्सा महाविद्यालय निर्माणाधीन हैं, जिसे जल्द ही पूरा कर लिया जायेगा। इस प्रकार राज्य में सरकारी चिकित्सा महाविद्यालयों की कुल संख्या 35 हो जायेगी। इसके अतिरिक्त प्रदेश में 9 निजी चिकित्सा महाविद्यालय भी खोले जा रहे हैं। वर्ष 2005 से पहले बिहार के बच्चे इंजीनियरिंग एवं मेडिकल की पढ़ाई के लिए राज्य के बाहर जाया करते थे क्योंकि उस समय प्रदेश के सरकारी अभियंत्रण महाविद्यालयों में मात्र 460 सीटें थीं। अब सीटों की संख्या बढ़कर 14469 हो गई है। ऐसे में यहां के छात्रों को उच्च, तकनीकी और मेडिकल शिक्षा के लिए अब मजबूरी में बाहर जाने की आवश्यकता नहीं होती है, बल्कि अन्य राज्यों से छात्र यहां आकर पढ़ाई कर रहे हैं।
शिक्षा के क्षेत्र में हमलोगों के इन्हीं प्रयासों के कारण आज राज्य की साक्षरता दर लगभग 80 प्रतिशत हो गई है तथा महिलाओं की साक्षरता दर जो वर्ष 2001 में मात्र 33.57 प्रतिशत थी, अब यह बढ़कर 73.91 प्रतिशत हो गई है।

राज्य में शिक्षा के क्षेत्र में यह आमूलचूल परिवर्तन सिर्फ आंकड़ों की बात नहीं, बल्कि यह शिक्षा के प्रति हमलोगों की प्राथमिकता, प्रतिबद्धता और सकारात्मक पहल की तस्वीर है। बिहार में शिक्षा अब वास्तव में हर बच्चे का अधिकार है। मुझे खुशी इस बात की है कि हमलोगों ने विगत 20 वर्षों में अपने राज्य और समाज को शिक्षित बनाने में काफी हद तक कामयाबी हासिल की है।

राज्य के बच्चे-बच्चियों और युवाओं को अच्छी शिक्षा देने के लिए हमलोगों ने जो काम किए हैं, उसे आपलोग याद रखिएगा। आगे भी हमलोग ही काम करेंगे। हमलोग जो कहते हैं, उसे पूरा करते हैं।

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