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रिम्स के डेंटल इंस्टिट्यूट में करोड़ों का घोटाला, CAG रिपोर्ट से हुआ खुलासा

रांची- 08 अगस्त। रिम्स डेंटल इंस्टिट्यूट में डेंटल उपकरण खरीदने के नाम पर नियम की अनदेखी जमकर वित्तीय अनियमितता की गई है। रिम्स शासी परिषद से पारित बजट से कई गुणा अधिक की राशि को खर्च कर बेसिक डेंटल, एडवांस डेंटल चेयर, मोबाइल डेंटल वैन और एक्सरे मशीन की खरीद हुई। विभागीय मंत्री द्वारा आपत्ति जताए जाने और अन्य अनुशासनात्मक कार्रवाई के आदेश देने के बावजूद रिम्स के तत्कालीन निदेशक ने विभागीय मंत्री के आदेश की अवहेलना करते हुए यह खरीद की।

राज्य के सबसे बड़े मेडिकल संस्थान रिम्स के डेंटल इंस्टिट्यूट के निर्माण के बाद उपकरण खरीद में घोटाले की ओर इशारा करने वाली यह रिपोर्ट सीएजी की है। सोमवार को झारखंड के महालेखाकार अनूप फ्रांसिस डुंगडुंग ने संवाददाता सम्मेलन कर चार अगस्त 2022 को विधानसभा में प्रस्तुत किये गए सीएजी की रिपोर्ट को मीडिया के समक्ष रखा।

सीएजी की जांच रिपोर्ट खुलासा हुआ है कि कैसे राज्य के रिम्स डेंटल इंस्टिट्यूट में बीडीएस की पढ़ाई शुरू होने से पहले डेंटल काउंसिल ऑफ इंडिया के मानक के अनुसार उपकरण खरीद के लिए 2016 में निविदा निकाली गई। इसके बाद एजेंसी को टेंडर फाइनल हुआ उसने कुछ वजह बताकर सप्लाई करने से इंकार कर दिया। नियम के अनुसार उस एजेंसी को ब्लैक लिस्टेड करना चाहिए था। लेकिन पेनाल्टी और ब्लैक लिस्टेड की जगह दूसरी बार टेंडर में उसे मौका दिया गया। सीएजी की रिपोर्ट घपले की ओर इसलिए भी इशारा करती है क्योंकि दो आपूर्तिकर्ता कंपनियों में से एक डमी पाई गई और वह जानबूझकर निविदा में ज्यादा रेट डालती थी ताकि दूसरी एजेंसी को ऑर्डर मिल जाये। रिम्स डेंटल इंस्टिट्यूट में सितंबर 2016 से फरवरी 2018 के बीच 110 बीडीसी ( बेसिक डेंटल चेयर),15 एडीसी (एडवांस डेंटल चेयर), एक मोबाइल डेंटल वैन और 10 आरवीजी (रेडिओविजियोग्राफी प्रणाली) की खरीद में करोड़ों रुपये का घोटाला हुआ। वहीं बिना ऑपेरशन थिएटर शुरू हुए उसकी साफ सफाई के लिए 17 लाख के कीटनाशक की खरीद हुई, जो रखे रखे एक्सपायर हो गया। 1.94 करोड़ के उपकरण ओटी में बेकार पड़े थे, वहीं विलंबित आपूर्ति की वजह से आपूर्तिकर्ता को 2.37 करोड़ रुपये का दंड भी रिम्स प्रबंधन ने नहीं लगाया। झारखंड के महालेखाकार अनूप फ्रांसिस डुंगडुंग ने बताया कि राज्य में ग्रामीण विद्युतीकरण की कई योजनाएं चल रही हैं। उसके लेखा परीक्षण से कई बातें सामने आई हैं। महालेखाकार ने बताया कि झारखंड बिजली वितरण निगम लिमिटेड के पास ग्रामीण विद्युतीकरण योजनाओं को लेकर कोई डेटाबेस नहीं है। उन्होंने कहा कि फील्ड सर्वेक्षण से यह तथ्य सामने आया है कि टर्न के संवेदकों( टीकेसी) ने पाया कि डीपीआर में 260 विद्युतीकृत और 678 अविद्यमान ग्रामों को शामिल किया गया था, जो गांव अस्तित्व में नहीं थे। वहां के लिए योजनाएं स्वीकृत थी। समय पर बिलिंग नहीं होने, प्रोजेक्ट के समय पर पूरा नहीं होने से राज्य को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा।

34 हजार करोड़ से अधिक की राशि का झारखंड में सरकारी विभागों ने नहीं दिया यूसी

उन्होंने बताया कि राज्य के सरकारी विभागों ने व्यय की गयी राशि का उपयोगिता प्रमाण पत्र (यूसी) जमा करने में दिलचस्पी नहीं दिखायी है। राज्य में 31 मार्च, 2021 तक 88,047.48 करोड़ राशि में से सभी राशियों का यूसी विभिन्न विभागों के पास 2020-21 तक बकाया था। डुंगडूंग ने बताया कि 88,047.48 करोड़ में से 34,017 करोड़ रुपये का यूसी उपलब्ध नहीं हो सका था। इसी अवधि तक आहरित ए.सी बिल के विरूद्ध भारी मात्रा में 6,018.98 करोड़ के डीसी बिल (18,272 करोड़) जमा नहीं किये गये। 2020-21 के दौरान राज्य का राजस्व व्यय का कुल व्यय का 83.0 प्रतिशत था। इसका 42.98 प्रतिशत वेतन और मजदूरी, ब्याज भुगतान और पेंशन पर खर्च किया गया।

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