मिथिला के मधुबनी जिले में मधुश्रावणी की धूम है। बताया जा रहा है कि मधुश्रावणी में नई दुल्हन अपने पति की लंबी उम्र के लिए कई त्याग करती है। यह मिथिलांचल के लोकपर्व में सुहाग का अनोखा पर्व मधुश्रावणी व्रत श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि सोमवार से शुरू हुआ है। यह पर्व 18 जुलाई से 31 जुलाई तक चलेगा। इस पर्व में मिथिला की नवविवाहिता अपने पति की दीर्घायु के लिए माता गौरी और भोलेनाथ की पूजा करती हैं। पूरे 14 दिनों तक चलने वाला इस व्रत में बिना नमक का भोजन ग्रहण किया जाता है। इस पूजा में पुरोहित की भूमिका में भी महिलाएं ही रहती हैं। इस अनुष्ठान के पहला और अंतिम दिन वृहद विधि विधान से पूजा होती है। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि इस दौरान माता पार्वती की पूजा का विशेष महत्व होता है। इसके साथ ही इस पर्व की अनोखी परंपरा भी मिथिला में देखने को मिलती है। नवविवाहिता जो पहले सावन में पति के लिए व्रत रखती हैं वे उनकी अग्निपरीक्षा भी लेती हैं। मिथिलांचल की ये अनोखी परंपरा प्यार का पता लगाने के लिए की जाती है। शादी के पहले सावन में इस अग्निपरीक्षा में पत्नी का घुटना जलाया जाता है। पति अपनी पत्नी के घुटने पर पूजा घर में रखे गए दीपक की जलती बाती प्रेम के साथ दागता है। इसमें दोनों का करुण सार भी देखने को मिलता है। सजी-धजी दुल्हन के रूप में विवाहिता उफ्फ तक नहीं करती। कहा जाता है कि इस परीक्षा में विवाहिता के घुटने में जितना बड़ा फफोला पड़ता है,पति-पत्नी में प्यार उतना ही गहरा होता है। पहली बार मधुश्रावणी व्रत रख रहीं विवाहिता की अग्निपरीक्षा की परंपरा नई नहीं है। मिथिला में ये काफी प्राचीन है। मान्यता के अनुसार पूजा के अंतिम यानि 13वें दिन सावन शुक्ल तृतीया तिथि को नया जोड़ा पूजा करता है और फिर पति पत्नी की आंखों को पान के पत्ते से बंद कराता है। इसके बाद दीपक की जलती हुई रुई या कपड़े की बाती से पत्नी के घुटनों पर दागता है। कहा जाता है कि छोटे से घुटने में हल्का सा स्पर्श मात्र से प्यार की गहराई का पता चल जाता है। माने ये उस तरह नहीं दागा जाता, लेकिन हल्के स्पर्श से बड़ा सा फफोला पड़ जाना पति-पत्नी के बीच असीम प्यार को दर्शाता है। वहीं, अन्य महिलाएं जो इस व्रत को करती हैं। वे पूजा के माध्यम से सुहागन अपनी सुहाग की रक्षा की कामना करती है। गीत भजन आदि गाकर और भक्ति पूर्वक पूजा कर मधुश्रावणी के पूजा के दौरान हर एक दिन अलग-अलग कथाएं कही जाती हैं। इन लोककथा में सबसे प्रमुख राजा श्रीकर और उनकी बेटी की कथा है। मधुश्रावणी पूजा के दौरान ऐसी मान्यताएं हैं। नवविवाहित आपने मायके चली जाती हैं और वहीं इस पर्व को मनाती हैं। मैनी के पत्ते, बांस का पत्ता अर्पण आदि देकर पूजन स्थल को सजाया जाता है। मिट्टी से नाग नागिन की आकृति बनाकर सुंदर रंगों से सजाती है।हाथी की भी आकृति बनती है। पूजा के अंतिम दिन इसे जल में प्रवाहित कर दिया जाता है। मान्यता है कि इस पूजन से वैवाहिक जीवन में स्नेह और सुहाग बना रहता है। पति-पत्नी के बीच प्रेम को दर्शाता है। पंडित अनुसार श्रावण शुक्ल तृतीया 31 अगस्त यानी मधुस्वामी व्रत के अंतिम दिन टेमी दागने की भी अनोखी परंपरा है। इसमें पति अपने पत्नी की आंखों को पान के पत्ते से ढ़क देता है और महिलाए दीए की लौ से नवविवाहिता के घुटने को दागती हैं। जिसे टेमी दागना भी कहते हैं। मान्यता है कि यह पति-पत्नी के प्रेमभाव को दर्शाता है।
आकिल हुसैन।