नई दिल्ली- 18 सितम्बर। दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि अपना जीवनसाथी चुनने के अधिकार को धर्म और विश्वास प्रभावित नहीं कर सकते हैं। जस्टिस सौरभ बनर्जी ने कहा कि शादी करने का अधिकार मनुष्य की आजादी का हिस्सा है।
कोर्ट ने कहा कि किसी को अपना जीवनसाथी चुनने के लिए कोई सरकार, समाज या उनके माता-पिता या दूसरे संबंधित लोग दबाव नहीं बना सकते हैं। अगर दो वयस्क सहमति से शादी करना चाहते हैं तो उन्हें कोई नहीं रोक सकता। कोर्ट ने ये टिप्पणी एक जोड़े को सुरक्षा का आदेश देते हुए की।
दरअसल, दो धर्मों के युवक-युवतियों ने अपने माता-पिता की मर्जी के बिना 31 जुलाई को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी की। शादी के बाद युवती के घरवाले धमकी देने लगे। धमकी से तंग आकर जोड़े ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। कोर्ट ने कहा कि युवती के माता-पिता उन्हें धमकी नहीं दे सकते।
