मधुबनी-18 जुलाई। मिथिला अपनी अप्रतिम पर्वकृत्योहार व पुनीत परंपरा के लिए प्रसिद्ध है। इसी कड़ी में सोमवार 18 जुलाई को मौना(नाग) पंचमी है। इस अवसर पर सुहाग की रक्षा व घरों में सर्पभय से मुक्ति के लिए नागकृनागिन की पूजा की जाती है। नागकृनागिन को दूधकृलावा चढ़ाकर परिवार के लिए मंगलकामना की जाती है। मौना पंचमी दिन से अगले 16 दिनों तक नाग देवता की पूजा की जाएगी। हालांकि, मिथिलांचल में पर्वकृत्योहारों की वैदिक काल से ही परंपरा रही है। परंतू मौना पंचमी दिन से ही नवविवाहित बालाओं का प्रमुख पर्व मधुश्रावणी की शुरुआत होती है, जो इस बार 14 दिनों तक चलेगी। इसके अलावे नागपंचमी पर भोलेनाथ का रूद्राभिषेक करने की भी परंपरा है।
घर में होता मिट्टी व लावा का छिड़काव—
संस्कृत साहित्य के विद्वान डॉ रामसेवक झा एवं पंडित रमण जी झा बताते हैं कि मौना पंचमी के मौके पर नाग देवता की पूजा के बाद शाम में धान का लावा व मिट्टी को मिलाकर इसे अभिमंत्रित कर घर व दरवाजे के विभिन्न कोने में छिड़काव किया जाता है। ऐसी मान्यताएं है कि इससे घर में लोगों को सर्प का किसी तरह का भय नहीं होता है।
31 जुलाई को मधुश्रावणी व 2 अगस्त को नाग पंचमी—
संस्कृत साहित्य के विद्वान डॉ रामसेवक झा तथा रमण जी झा झा के अनुसार, सावन शुक्लपक्ष तृतीया को मधुश्रावणी एवं शुक्लपक्ष पंचमी को नाग पंचमी सनातन काल से ही मनाने की परंपरा है। इस वर्ष 31 जुलाई को मधुश्रावणी तथा 2 अगस्त को नाग पंचमी है। जबकि मौना पंचमी प्रतिवर्ष श्रावण कृष्णपक्ष पंचमी को मनाया जाता है। मौना पंचमी के दिन से ही मिथिलांचल में मधुश्रावणी पूजा की शुरुआत होती है। श्रावण शुक्लपक्ष तृतीया तक अर्थात 14 दिन तक चलने वाले मधुश्रावणी पूजा का मिथिला में काफी महत्व है। इस मौके पर मिथिला में बहुत धूमधाम रहती है। चातुर्मास के दौरान सर्पभय अधिक रहने से लोग नागदेवता को प्रसन्न करने के लिए उनकी विशेष पूजाकृअर्चना करते हैं।
गोबर व मिट्टी से बने नाग की होती पूजा—
इस मौके पर महिलाएं घरकृआंगन को साफ कर मिट्टी व गोबर से नाग की आकृति बनाती है। इसके बाद विधिकृविधान पूर्वक नाग देवता की पूजा करती है। नवविवाहिता मैना के एक पत्ते पर सिंदूर व चंदन से तथा दूसरे पत्ते पर सिंदूर व पीठार से नाग की आकृति बनाकर पूजा करती है। पंडित रमण जी झा बताते हैं कि अगले 14 दिन तक हर दिन सुबह नवविवाहिता फूल लोढ़कर विषहारा की पूजा करेगी व दूध लावा चढ़ाएगी। इसके अलावे चनाई, भगवान गौरीकृशंकर व अन्य देवताओं की पूजा करती है। पूजन के बाद दूध, दही व चावल से बने घोरजाउर का भोग लगाती है।
मिट्टी का बनाया जाता है थुमहा—
मौना पंचमी के दिन सुबह में घर के सभी सदस्य खाली पेट नीम का पत्ता व नींबू खाते हैं। इसके बाद पारंपरिक विधिकृविधान के साथ आंगन में महिलायें मिट्टी का थुमहा बनाती है। फिर उस थुमहा पर सिंदूर व पीठार लगाकर पूजा की जाती है। अलबत्ता जो भी हो मिथिलांचल में यह पर्व अनुपम छटा का प्रतीक बना हुआ है।
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