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मनुष्य को ठंड में बाॅडी को नियंत्रण रखना जरूरी, नही तो हो सकता है भारी नुकसान: डॉ. के.के. झा

मधुबनी- 07 जनवरी। प्रत्येक साल ठंड का मौसम आता है, परंतु इस वर्ष पिछले छह- सात दिनों से पड़ रही कड़ाके की ठंड ने पिछले करीब पन्द्रह वर्षों के सभी रिकॉर्ड को तोड़ दिया है। लगातार गिरते जा रहे तापमान से जन-जीवन अस्त-व्यस्त कर दिया है। लोगों को छह दिनों से सूर्य का दर्शन नहीं हुआ है, तो दूसरी ओर रात और दिन का तापमान लगातार कम होता जा रहा है। तेज पछुआ हवा ने तो जन-जीवन को पूरी तरह अस्त-व्यस्त कर दिया है। लोगों को ना आग के पास राहत मिल रही है और न ही घर के अंदर रजाई में, न तो कंबल के अंदर। जिससे परेशानी काफी बढ़ गई है। तथा लोग ठंड का शिकार हो रहे हैं। अस्पतालों में मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। मौसम विभाग ने 10 जनवरी तक कोल्ड डे की स्थिति बने रहने की संभावना जताई है। जिसके कारण लोगों को अलर्ट रहने की जरूरत है। गिरते तापमान में अगर सावधान नहीं रहे, तो यह अत्यंत ही खतरनाक साबित हो सकता है।

Dr. K.K. Jha

प्रसिद्ध फिजिशियन डॉ. कुष्ण कुमार झा ने लक्ष्य तक न्यूज से स्वास्थ्य के संबंध में विशेष बातचीत करते हुए लोगों को ठंड के मौसम में अलर्ट रहने की सलाह दी है।

डाक्टर के.के. झा ने बताया कि ठंड का प्रकोप अभी बहुत अधिक है। अत्यधिक ठंड के मौसम में बॉडी के तापमान को नियंत्रित रखना जरूरी है, ताकि शरीर के सभी अंग ठीक से काम करता रहे। मनुष्य के शरीर में सामान्य तापमान की रेंज 97.7 फॉरेन हाइट से 99.5 डिग्री फॉरेन हाइट तक रहता है। इससे शरीर का थेरमोरेगुलट्री सेंटर इस टेम्परेचर को मेन्टेन रहता है। जब व्यक्ति कोल्ड एनवायरनमेंट के सम्पर्क में आता है, तो व्यक्ति का ब्रेन मसल्स को सिग्नल भेजता है। इसके बाद मसल्स में कंट्रक्शन होता है, तो शिवरिंग (कंपन) होती है। खून की नली जो शरीर के बाहरी हिस्से में रहती उसका सिकुरण हो जाता है। ताकि शरीर से हीट लॉस कम से कम हो। तथा शरीर के वाइटल ऑर्गन को पर्याप्त ब्लड एवं हीट मिलता रहे। अगर बॉडी का यह थेरमोरेगुलट्री सिस्टम से बॉडी का हीट इंटरनल मेन्टेन नहीं हो रहा हो, व्यक्ति लगातार कोल्ड एनवायरनमेंट के एक्सपोजर में रहे तब हाइपो थेर्मिया का खतरा उत्पन्न होता है। जब बॉडी का कोर टेम्परेचर 95 डिग्री फॉरेनहाइट से कम हो तो उसे हाइपो थेर्मिया कहा जाता। इसे तीन कैटेगरी में डिवाइड किया गया है, माइल्ड,मॉडरेट और सीवियर। माइल्ड हाइपो थेर्मिया में हार्ट रेट बढ़ जाता है, सांस की गति बढ़ जाती है, शिवरिंग होती है, कभी-कभी आवाज में लड़खराहट भी होती है। मॉडरेट ह्यपोथेरमिया में हार्ट रेट कम हो जाता है, सांस की गति कम हो जाती है। शिवरिंग नहीं होती, मरीज शरीर से कपड़ा उतार देता है, जिसे पैराडोक्सियल अनड्रेसिंग (विरोधाभासी कपड़े उतारना) कहा जाता है। कभी-कभी कार्डियक एरिद्मिया भी ईसीजी में दिखता है। सीवियर ह्यपोथेरमिया में हार्ट रेट और सांस की गति कम हो जाती है, पेशाब आना कम हो जाता है, फेफड़े में पानी भरने लगते हैं और कार्डियक एरिद्मिया स्पष्ट हो जाता है। धीरे-धीरे मरीज बेहोश हो जाता और फिर मौत हो सकती है।

डाक्टर के.के. झा ने कहा कि ह्यपोथेरमिया इलाज में कुछ सावधानी रखनी चाहिए। मसाज नहीं करनी चाहिए। ऐसे में ड्राई हीट का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। गर्म कम्बल से लपेटना चाहिए, गर्म वातावरण में मरीज को रखना चाहिए, गर्म आईवी फ्लूड देना चाहिए, गर्म नरम ऑक्सीजन देना चाहिए।

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Author: lakshyatak

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