बिहार में जारी जाति आधारित गणना पर तत्काल प्रभाव से पटना हाईकोर्ट ने लगायी रोक

पटना- 04 मई। बिहार में नीतीश सरकार की जाति आधारित गणना पर गुरुवार को पटना हाई कोर्ट ने रोक लगा दी है। चीफ जस्टिस विनोद चंद्रन की बेंच ने आदेश दिया है कि गणना को तत्काल प्रभाव से रोक दिया जाए। इसके पहले हाई कोर्ट में मामले को लेकर दो दिन तक सुनवाई हुई थी। इसके बाद चीफ जस्टिस विनोद चंद्रन की बेंच ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस फैसले के बाद नीतीश सरकार को बड़ा झटका लगा है।

दूसरी ओर जातीय गणना पर मुख्यमंत्री ने गुरुवार को कहा कि जाति आधारित गणना सर्वसम्मति से कराई जा रही है। हम लोगों ने केंद्र सरकार से इसकी अनुमति ली है। हम पहले चाहते थे कि पूरे देश में जाति आधारित जनगणना हो लेकिन जब केंद्र सरकार नहीं मानी तो हम लोगों ने जाति आधारित गणना सह आर्थिक सर्वे कराने का फैसला लिया।

बीते 24 अप्रैल को ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को पटना हाई कोर्ट जाने को कहा था। इसके बाद 2 और 3 मई को हाई कोर्ट में इस मामले में सुनवाई हुई थी। मामले में बीते सोमवार को पहली सुनवाई होनी थी लेकिन सरकार की ओर से किए गए काउंटर एफिडेविट रिकॉर्ड में नहीं होने के कारण हाई कोर्ट ने सुनवाई को मंगलवार के लिए टाल दिया।

मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अपराजिता सिंह और हाई कोर्ट के अधिवक्ता दीनू कुमार को जातीय गणना को असंवैधानिक करार देने के लिए हाई कोर्ट में दलीलें पेश करनी थीं। एडवोकेट जनरल (महाधिवक्ता) पीके शाही ने सरकार की ओर से अपना पक्ष रखा। कोर्ट ने एडवोकेट जनरल से पूछा कि जाति आधारित गणना कराने का उद्देश्य क्या है? इसको लेकर क्या कोई कानून बनाया गया है? जवाब में पीके शाही ने कहा कि दोनों सदन में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर जातीय गणना कराने का निर्णय लिया गया था। कैबिनेट ने उसी के मद्देनजर गणना कराने पर अपनी मुहर लगाई। यह राज्य सरकार का नीतिगत फैसला है। इसके लिए बजट में प्रावधान किया गया है।

याचिकाकर्ता के वकील दीनू कुमार ने कहा कि आखिर इस जाति आधारित गणना का उद्देश्य क्या है? इसमें 500 करोड़ रुपये खर्च करने की बात कही जा रही है लेकिन इसका परिणाम क्या होगा और किसे फायदा होगा। सरकार यह बताए कि समाज में जाति प्रथा को खत्म करने की बात लगातार कही जा रही है लेकिन जातीय गणना कराकर किसे फायदा पहुंचाया जा रहा है? इसका जवाब सरकार दे।

संविधान के अनुच्छेद-37 का हवाला देकर सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि राज्य सरकार का यह संवैधानिक दायित्व है कि वह अपने नागरिकों के बारे में जानकारी प्राप्त करे ताकि कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उन तक पहुंचाया जा सके। उन्होंने कहा कि जाति से कोई भी राज्य अछूता नहीं है। जातियों की जानकारी के लिए पहले भी मुंगेरीलाल कमीशन का गठन हुआ था। बिहार सरकार की ओर से गणना असंवैधानिक है।

सरकार के पास डेटा नहीं—

पीके शाही ने यह भी कहा कि सरकार के पास वंचित समाज और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों का कोई डाटा नहीं है। लिहाजा जातिगत आंकड़े जरूरी हैं। उन्होंने यह भी दलील दी है कि यह कास्ट सेंसस नहीं है। यह जातीय गणना सह आर्थिक सर्वेक्षण हैं। महाधिवक्ता से याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कहा कि आपका निर्णय राजनीति से प्रेरित है। राजनीतिक फायदे के लिए यह सब हो रहा है।

इसके जवाब में महाधिवक्ता ने कहा कि हर सरकार राजनीति के तहत कार्य करती है। वोट बैंक के लिए होती है। हर राज्य और केंद्र की सरकार वोट बैंक के लिए ही योजना बनाती है। किसी भी सरकार के कार्यों को वोट बैंक से दूर नहीं कहा जा सकता है। पटना हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस बेंच ने दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।

lakshyatak
Author: lakshyatak

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!