नई दिल्ली- 15 जनवरी। दिल्ली हाई कोर्ट ने फिल्म ‘आंख मिचौली’ पर दिव्यांग लोगों का मजाक बनाने का आरोप लगाते हुए फिल्म पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी है। कार्यकारी चीफ जस्टिस मनमोहन की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि हमारे देश में हर फिल्म को प्रदर्शित होने से पहले उसे सेंसर बोर्ड से गुजरना होता है और आपत्तिजनक दृश्य हटा दिए जाते हैं।
हाई कोर्ट ने कहा कि एक फिल्मकार की रचनात्मक स्वतंत्रता का सम्मान किए जाने की जरूरत है। हाई कोर्ट ने कहा कि देश में सेंसर बोर्ड है, जहां से किसी भी फिल्म को रिलीज होने से पहले गुजरना होता है। वैसे भी जब सेंसर बोर्ड फिल्म को पास कर चुका है तो कोर्ट के दखल की गुंजाइश कम ही बचती है। ऐसे में उसे ज़्यादा सेंसरशिप की ज़रूरत नहीं होती है। हाई कोर्ट ने कहा कि हर विषय के दो पहलू होते हैं। आपको फिल्म देखते हुए भावुक होने से बचना चाहिए।
दरअसल, 2023 में रिलीज हुई फिल्म ‘आंख-मिचौली’ में अल्जाइमर पीड़ित पिता के लिए भुलक्कड़ बाप, मूक-बधिर के लिए साउंड प्रूफ सिस्टम,हकलाने वाले शख्स के लिए अटकी हुई कैसेट जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया है। इसको आधार बनाकर दिव्यांग वकील निपुण मल्होत्रा ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर फिल्म की निर्माता कंपनी सोनी पिक्चर को निर्देश देने की मांग की थी कि वह दिव्यांग लोगों द्वारा झेली जाने वाली परेशानियों के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए शॉर्ट मूवी बनाए न कि उनका मजाक बनाने वाली फिल्में।