[the_ad id='16714']

धार्मिक स्थलों से सम्बंधित विवाद समाज का अमन-चैन छीन लेते हैंः मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड

नई दिल्ली- 14 जुलाई। उपासना स्थल अधिनियम 1991 के समर्थन में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में आज एक याचिका दाखिल की है। यह जानकारी देते हुए बोर्ड के महासचिव मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने कहा कि इस एक्ट में अयोध्या की बाबरी मस्जिद को छोड़ कर देश के सभी धर्मस्थलों की यथास्थिति 15 अगस्त 1947 के समय पर जो थी, उसको बरकरार रखने की बात की गई है।

बोर्ड महासचिव मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने बताया कि बोर्ड ने आज सुप्रीम कोर्ट मे एक याचिका दाखिल की है, जिसमें कहा गया है की 1991 के धर्मस्थल कानून का पालन करना सरकार और न्यायपालिका की जिम्मेदारी है। उपासना स्थल अधिनियम-1991 के तहत हर धर्मस्थल का मूल कैरेक्टर वही रहेगा, जो 15 अगस्त 1947 में था। यानी उस दिन जो जगह मस्जिद या मंदिर थी वो आगे भी मस्जिद या मंदिर ही रहेगी।

मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने कहा है कि बोर्ड ने अपनी याचिका में सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि उपासना स्थल अधिनियम 1991 को समाप्त किए जाने वाली जनहित याचिका के साथ उनकी इस याचिका को भी सुनवाई के लिए शामिल किया जाए। उनका कहना है कि इस सम्बंध में जो पीआईएल दायर की गई है, उसमें पर्दे के पीछे पीआईएल दाखिल करने वालों के राजनीतिक मकसद और एजेंडा शामिल है। इस तरह के विवाद दरअसल समाज के ताने-बाने को प्रभावित करते हैं। समाज को धर्म के नाम पर बांट देते हैं। इसका जीता-जागता सबूत बाबरी मस्जिद की शहादत के बाद देश भर में जो सांप्रदायिक दंगे हुए थे वह सामने है। उनका कहना है कि 1991 के वरशिप एक्ट को लाने का एकमात्र मकसद यह था कि भविष्य में इस तरह के तथाकथित दावों पर रोक लगाई जा सके। उनका कहना है कि धार्मिक स्थलों से संबंधित विवाद बहुत ही ज्यादा पेचीदा होते हैं, जो कानून के शासन को चैलेंज करते हैं बल्कि समाज के अमन सकून को भी छिन्न भिन्न कर देते हैं। बोर्ड का यह आवेदन भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय की याचिका के जवाब में आया है। अश्विनी उपाध्याय ने इस कानून को रद्द करने की मांग सुप्रीम कोर्ट से की है।

lakshyatak
Author: lakshyatak

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!