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देश की आधुनिक चिकित्सा पद्धति का कमाल, प्रीमेच्योर बच्ची को चिकित्सकों ने दिया नया जीवन
जन्म के समय वजन मात्र 400 ग्राम, अब साढ़े चार किलो वजन

पुणे- 01 फरवरी। पुणे के चिकित्सालय में एक गर्भवती ने छह महीने गर्भ में रही प्रीमेच्योर बच्ची शिवन्या को जन्म दिया तो उसका वजन मात्र 400 ग्राम था, यानी दूध के पाउच के वजन के बराबर। बच्चे को देख डॉक्टर हैरान हुए लेकिन हिम्मत नहीं हारी। इसे उन्होंने चुनौती के रूप में लिया और बच्चे की जान बचाने के लिए प्रयास शुरू किए। काफी मेहनत के बाद बच्ची सरवाइव कर गई। यह एक रिकॉर्ड से कम नहीं है जो डॉक्टरों ने देश में सबसे कम उम्र की और सबसे हल्की छोटी बच्ची को पूर्ण स्वरूप आने पर उसके परिजनों को स्वस्थ रूप में सौंपा। इस समय बच्ची का वजन साढ़े चार किलो का है और स्वस्थ है।

महानगर के वाकड़ क्षेत्र की उज्ज्वला पंवार ने गत वर्ष इस बच्ची को जन्म दिया। उसे 94 दिन अस्पताल में रखने के बाद छुट्टी दी गई तब उसका वजन 2 किलो 123 ग्राम हुआ तब उसे घर भेजा गया। चिकित्सकों के अनुसार ऐसे शिशुओं में जीवित रहने की उम्मीद मात्र 0.05 फीसदी ही रहती है। गर्भावस्था के सामान्य 37 से 40 सप्ताह के बाद पैदा होने वाले बच्चों का वजन न्यूनतम दो किलो 500 ग्राम होता है।

आधुनिक भारतीय चिकित्सा का है प्रमाण—

शिवन्या के पिता से बातचीत करने पर बताया कि अब वह अन्य स्वस्थ बच्चों की तरह है और उसका वजन साढ़े चार किलोग्राम है। विशेषज्ञों ने बताया शिवन्या का अच्छा स्वास्थ्य आधुनिक चिकित्सा पद्धति का नतीजा है। देश में कम वजन के साथ जन्म रहने के बाद भी जीवित रहने का यह एक रिकॉर्ड है। डॉक्टर ने बताया जब हम गर्भावस्था का समय और जन्म के वजन को जोड़ते हैं तो शिवन्या सबसे नन्ही बच्ची है। देश में इससे पहले इस तरह के अत्यंत अपरिपक्व के जीवित रहने का कोई मामला दर्ज नहीं किया गया है।

यह रहा छह महीने में जन्म लेने का कारण—

पुणे के नियोनेटोलॉजिस्ट डॉक्टर सचिन शाह बताते हैं कि बच्ची का समय से पूर्व जन्म लेना, उसकी मां में जन्मजात असामान्यता का परिणाम था। जिसे डबल यूट्रस कहा जाता है। यह तब होता है जब एक महिला के गर्भ में दो अलग-अलग पाउच होते हैं और दोनों में एक पाउच दूसरे से छोटा होता है। एक भ्रूण के रूप में शिवन्या छोटे में पली-बढ़ी जिससे उसका जन्म सिर्फ 24 सप्ताह में हुआ।

विशेषज्ञों के अनुसार माइक्रो प्रीमाइस या समय से पहले पैदा हुए बच्चे विशेष रूप से इनका वजन 750 ग्राम से कम होता है। वह बेहद नाजुक होते हैं और उनकी देखभाल मां के गर्भ जैसे वातावरण और सावधानी से किया जाता है। जबकि यह बच्ची 400 ग्राम की थी और डॉक्टरों के लिए बच्ची को बचाना बहुत चुनौतीपूर्ण कार्य था।

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Author: lakshyatak

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