थैलेसीमिया में व्यक्ति के शरीर में लाल रक्त कण अपनी सामान्य आयु 120 दिन की जगह 15-20 दिन में ही नष्ट हो जाते हैं, जिससे लाल में रक्त कणों की संख्या कम हो जाती है। इस तरह शरीर में रक्त की कमी हो न जाती है, जिसका परिणाम एनीमिया के रूप में सामने आता है। मानव शरीर में हीमोग्लोबिन बनाने वाले जीन्स के जोड़े होते हैं, शिशु को हर प्रकार जीन का एक भाग मां से और एक भाग पिता से मिलता है। अगर बच्चे को हीमोग्लोबिन के दोनों जीन्स ठीक मिलते हैं, तो बच्चा पूरी तरह स्वस्थ के होता है. यदि उसे जीन्स के जोड़े का में एक हिस्सा ठीक और एक हिस्सा ते खराब मिलता है, तो वह थैलेसीमिया कैरियर /माइनर, लेकिन स्वस्थ होता के है, वहीं, अगर शिशु को दोनों जीन्स खराब मिलें, तो बच्चा थैलेसीमिया मेजर रोग से ग्रस्त होता है।
लगभग 6 माह की उम्र में थैलेसीमिया मेजर बच्चा पीला पड़ना शुरू हो जाता है, थैले उसकी तिल्ली बढ़ना शुरू हो जाती है। रोगी के शरीर में हीमोग्लोबिन पूरा नहीं बन पाता,शरीर में रक्त की कमी से हो जाती है और हर 3-4 सप्ताह बाद खून चढ़वाना पड़ता है।

“थैलेसीमिया को केवल किसी दवा, इंजेक्शन या खान-पान में बदलाव से ठीक नहीं किया जा सकता। शादी से पहले लड़का-लड़की की जन्मकुंडली या गुण-दोष मिलाने की जगह थैलेसीमिया स्टेटस का पता लगाना बेहद जरूरी है”
50 प्रतिशत बच्चों के थैलेसीमिया माइनर होने या थैलेसीमिया कैरियर होने और मां-बाप की तरह स्वस्थ होने की संभावना है। 25 प्रतिशत बच्चों में थैलेसीमिया का प्रभाव बिल्कुल न हो,थैलेसीमिया मेजर से पीड़ित बच्चों को हर 21 दिन बाद कम से कम एक यूनिट खून की जरूरत होती है।
हम सभी माता -पिता की यही कामना होती है कि हमारा बच्चा स्वस्थ्य रहें,जीवन में आगे बढ़े; लेकिन बच्चे को अगर कोई स्वास्थ्य संबंधी समस्या या जन्मजात विकार हो जाता है,तो इसका दोष मां को ही दिया जाता है। जबकि यह वास्तविकता नहीं है। कई मामलों में माता-पिता दोनों की लापरवाही या अनजाने में की गयी गलती का परिणाम थैलेसीमिया ऐसा ही आनुवंशिक रक्त विकार है। इसमें बच्चे के शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं का उत्पादन सही तरीके से नहीं हो पाता है और इन कोशिकाओं की आयु भी बहुत कम हो जाती है।
थैलेसीमिया से ग्रसीत बच्चों के शरीर में लाल रक्त कण अपनी सामान्य में ही नष्ट हो जाते हैं। जिससे लाल रक्त कणों की संख्या कम हो जाती है। इस तरह शरीर में रक्त की कमी हो जाती है। जिसका परिणाम एनीमिया के में हीमोग्लोबिन बनाने वाले जीन्स के जोड़े होते हैं। शिशु को हर प्रकार के जीन का एक भाग मां से और एक भाग पिता से मिलता है। अगर बच्चे को हीमोग्लोबिन के दोनों जीन्स ठीक मिलते हैं, तो बच्चा पूरी तरह स्वस्थ रहते है परंतु अगर माता-पिता दोनों को ही माइल्ड थैलेसीमिया (कम घातक) है, तो बच्चे को थैलेसीमिया होने की आशंका होती है। ऐसे में बच्चा प्लान करने से पहले या शादी से पहले ही अपने जरूरी मेडिकल टेस्ट करा लेने चाहिए।
“थैलेसीमिया एक ऐसा रोग है- जो जन्म से ही बच्चे को अपनी गिरफ्त में ले लेता है। यह दो प्रकार का होता है-माइनर और मेजर. यह माता-पिता के थैलेसीमिया कैरियर होने की वजह से गर्भस्थ शिशु तक पहुंचता है। आमतौर पर उन्हें न तो अपने थैलेसीमिया स्टेटस के बारे में पता होता है और न ही इसका पता लगाने के लिए कोई मेडिकल टेस्ट करवाते हैं। उन्हें यह भी जानकारी नहीं होती कि उनकी वजह से आने वाला बच्चा थैलेसीमिया पीड़ित हो सकता है। ऐसे में अगर शादी से पहले या गर्भावस्था के चौथे महीने से पूर्व चेकअप करा लिया जाये तो थैलेसीमिया जैसे वंशानुगत रोग को बढ़ने से रोका जा सकता है।“
बचाव के लिए जरूरी कदम—
थैलेसेमिया को केवल किसी दवा,इन्जेक्शन या खान-पान म् न बदलाव से ठीक नहीं किया जा सकता है। शादी से पहले थैलेसीमिया स्टैटस का पता लगाना जरूरी है।
Ø गर्भावस्था में जैसे ही पता चलता चलते ही है कि महिला थैलेसीमिया माइनर है,तो उनके पार्टनर की टेस्टिंग की जांच करवानी जरूरी है। अगर पति भी थैलेसीमिया माइनर हो तो उन्हें सीवीएस टेस्ट करवाना चाहिए;
Ø अगर माता -पिता दोनों ही माइल्ड थैलेसीमिया है,तो बच्चें को थलेसीमिया होने की आशंका होती है। ऐसे में बच्चा प्लान करें से पहले या शादी से पहले ही अपने जरूरी मेडिकल टेस्ट करा लेना चाहिए;
Ø शादी से पहले एचबीए-2 या एचबीएचबीएलसी टेस्ट करवा लेना चाहिए और अपने थैलेसीमिया स्टेटस के बारे में पता होना चाहिए;
Ø अगर दो थैलेसीमिया कैरियर या माइनर मरीज शादी कर भी लें, तो शादी के बाद दोनों की स्टेटस मालूम कर लेना चाहिए;
Ø अगर पता चलता है, तो अपनी जांचें खासकर थैलेसीमिया टेस्ट जरूर करवाना चाहिए। इससे आने वाले बच्चे के भविष्य के लिए बहुत कुछ किया जा सकता है।
Ø गर्भावस्था में महिलाओं का कम्प्लीट ब्लड काउन्ट करना चाहिय। इससे 90 % से ज्यादा थलेसीमिए करियर महिलाओं का पता लगाया जा सकता है।
Ø जैसे ही पता चलता है की बच्चा थैलेसीमिया मेजर ,उसी समय पूरे परिवार की मेडिकल टेस्ट करनी चाहिय।
Ø अगर पता चलता है,तो अपनी जांचें खासकर थैलेसीमिया टेस्ट जरूर करवाना चाहिए तथा अगली परीगनेंसी का पता चलते ही 8 -10 सप्ताह से सी वी एस टेस्ट और जीन टेस्ट करके भ्रूण की जांच करवानी जरूरी है। इससे पेरेंट्स को यह बताया जा सकता है कि उनका बच्चा मेजर थैलेसीमिया पीड़ित होगा या नहिया। अगर बच्चा थलेसीमिया माइनर हॉट ओ पेरेंट्स को घबराने की जरूरत नहीं हैं। अगर बच्चा मेजर होगा तो गर्भपात किया जाना उचित रहेगा जो कानूनी तौर पर मान्य है।
उपचार—
थैलेसीमिया पीड़ित बच्चे को भविष्य में बेहतर जिंदगी जीने के लिए उसे रेगुलर ब्लड ट्रांसफ्यूजन और रेगुलर आयरन चिलेशन की जरूरत होती है। नियमित रूप से उसकी जांच करानी भी जरूरी है और किसी भी तरह की समस्या आने पर उस समस्या का भी ठीक उपचार किया जाना चाहिए।
बोन मैरो ट्रांसप्लांट—
आमतौर पर चिलेशन थेरेपी के जरिये बच्चों के शरीर से अतिरिक्त आयरन निकालने की दवाइयां दी जाती है,लेकिन थैलेसीमिया को जड़ से खत्म करने में बोन मैरो ट्रांसप्लांट ही उपयुक्त है. डेढ़ से सात साल की उम्र से पहले ट्रांसप्लांट होने पर रिजल्ट्स अच्छे मिलते हैं. हालांकि, 7 वर्ष से ज्यादा उम्र होने पर या वयस्क की स्थिति पर भी ट्रांसप्लांट किया जा सकता है। आज 08 मई को “विश्व थैलेसीमिया दिवस” है,जागरूकता से ही बचाव संभव है। आईए हम सब मिलकर ज्यादा से ज्यादा लोगों के बीच जागरूकता फैलाएं, विकलांगता मुक्त बिहार एवं भारत को बनाएं
डॉ शिवाजी कुमार
दिव्यांगता विशेषज्ञ
(डिसएबिलिटी अधिकार ऐक्टिविस्ट )
94310154999
