रांची- 05 अक्टूबर। मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने कहा कि जातिगत जनगणना को लेकर 2021 से ही प्रयास किया जा रहा है। राज्यपाल को विधानसभा से पारित कर आरक्षण से सम्बन्धित विधेयक भेज रखा है। सरकार का स्पष्ट मानना है कि जो जिस समूह में जितनी संख्या में हैं, उतना अधिकार उनको मिले। ये बातें मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने कही। मुख्यमंत्री गुरुवार को प्रोजेक्ट भवन में संवाददाताओं के सवाल का जवाब दे रहे थे।
दो वर्ष पूर्व लिखा था पत्र—
सभी दलों की सहमति से आज से दो वर्ष पूर्व जाति आधारित जनगणना के लिए माननीय प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन मांग कर चुके हैं। दिल्ली में झारखण्ड के सर्वदलीय शिष्टमंडल के सदस्यों ने जाति आधारित जनगणना कराने की मांग पत्र गृह मंत्री को सितम्बर 2021 में सौंपा था।
मुख्यमंत्री ने पत्र के माध्यम से कहा था कि संविधान में सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के विकास के लिए विशेष सुविधा एवं आरक्षण की व्यवस्था की है। आजादी के बाद से आज तक की कराई गई जनगणना में जातिगत आंकड़े नहीं रहने से विशेषकर पिछड़े वर्ग के लोगों को विशेष सुविधाएं पहुंचाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। वर्ष 2021 में प्रस्तावित जनगणना में युगों-युगों से उत्पीड़ित, उपहासित, उपेक्षित और वंचित पिछड़े एवं अति पिछड़े वर्गों की जातीय जनगणना नहीं कराने की सरकार द्वारा संसद में लिखित सूचना दी गयी जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है।
पिछड़े-अति पिछड़े वर्ग युगों से अपेक्षित प्रगति नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे में यदि अब जातिगत जनगणना नहीं करायी जाएगी तो पिछड़ी ,अति पिछड़ी जातियों की शैक्षणिक, सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक स्थिति का ना तो सही आकलन हो सकेगा, ना ही उनकी बेहतरी व उत्थान संबंधित समुचित नीति निर्धारण हो पाएगा और ना ही उनकी संख्या के अनुपात में बजट का आवंटन हो पाएगा।
उल्लेखनीय है कि आज से 90 वर्ष पूर्व जातिगत जनगणना वर्ष 1931 में की गई थी एवं उसी के आधार पर मंडल कमिशन ने पिछड़े वर्गों को आरक्षण उपलब्ध कराने की अनुशंसा की थी।
पत्र में लिखा था कि भारत में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़े वर्ग के लोगों ने सदियों से आर्थिक एवं सामाजिक पिछड़ेपन का दंश झेला है। आजादी के बाद विभिन्न वर्गों का विकास अलग-अलग गति से हुआ है। जिसके कारण अमीरों एवं गरीबों के बीच की खाई और बढ़ी है। भारत में आर्थिक विषमता का जाति से बहुत मजबूत संबंध है एवं सामान्यतया जो सामाजिक रूप से पिछड़े श्रेणी में आते है, वे आर्थिक तौर पर भी पिछड़े हुए हैं। सबका साथ सबका विकास सबका विश्वास के नारों को अमलीजामा पहनाने की जमीनी पहल करना समय की मांग है।