नई दिल्ली- 06 जून। यूक्रेन-रूस युद्ध को लम्बा खिंचते देख भारत ने भी अपने पसंदीदा हथियार आपूर्तिकर्ता मास्को से अलग सैन्य हार्डवेयर खरीदने के लिए नए रास्ते तलाशने शुरू कर दिए हैं। दक्षिण एशियाई देशों में जर्मनी और भारत डीजल पनडुब्बियों के निर्माण के लिए एक समझौते पर पहुंच रहे हैं। मंगलवार को दो दिवसीय यात्रा पर नई दिल्ली पहुंचे जर्मनी के रक्षा मंत्री बोरिस पिस्टोरियस की उपस्थिति में प्रारंभिक समझौते पर हस्ताक्षर होने की संभावना है।
जर्मन बहुराष्ट्रीय समूह थिसेनक्रुप एजी की समुद्री शाखा और भारत की मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड के बीच भारतीय नौसेना के लिए छह पनडुब्बियों का निर्माण करने के लिए सौदा अंतिम चरण में है। अनुमानित 5.2 बिलियन डॉलर की इस परियोजना के लिए दिल्ली पहुंचे जर्मनी के रक्षा मंत्री पिस्टोरियस की उपस्थिति में प्रारंभिक समझौते पर हस्ताक्षर किए जाएंगे। पिस्टोरियस ने भारत आने से पहले जकार्ता में कहा था कि रूसी हथियारों पर भारत की निरंतर निर्भरता जर्मनी के हित में नहीं है। भारत यात्रा के दौरान जब वह बुधवार को मुंबई जाएंगे, तो पनडुब्बी सौदा एजेंडे में होगा।
जर्मनी के रक्षा मंत्री 7 जून को मुंबई जाएंगे, जहां पश्चिमी नौसेना कमान मुख्यालय और मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड का दौरा करेंगे। दो साल पहले जब निविदा की घोषणा की थी, तब जर्मन कंपनी ने भारत में संयुक्त रूप से पनडुब्बियों के निर्माण में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई थी। अब यूक्रेन में युद्ध अपने दूसरे वर्ष में है और चीन युद्ध में रूस के साथ आगे बढ़ रहा है, तो पश्चिम और विशेष रूप से जर्मनी, बीजिंग की बढ़ती कूटनीतिक और सैन्य मुखरता के खिलाफ भारत पर अपना दांव लगा रहा है।
भारत ने डीजल संचालित हमला करने वाली पनडुब्बियों के निर्माण के लिए विदेशी रक्षा कंपनियों के साथ गठजोड़ करने के लिए मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स और लार्सन एंड टुब्रो की पहचान की है। साझेदारी के लिए एक प्रमुख लक्ष्य थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम्स है, जो पनडुब्बी निर्माताओं में से विश्व स्तर पर दूसरे नंबर पर है। जर्मन कंपनी के पास वायु स्वतंत्र प्रणोदन की ऐसी तकनीक है, जो पारंपरिक पनडुब्बियों को लंबे समय तक पानी के नीचे रहने में मदद करती है।
भारतीय नौसेना को हिंद महासागर में प्रभावी ढंग से गश्त करने के लिए कम से कम 24 पारंपरिक पनडुब्बियों की आवश्यकता है, लेकिन वर्तमान में केवल 16 ही हैं। इस बेड़े में से हाल ही में निर्मित छह जहाजों के अलावा बाकी 30 साल से अधिक पुराने हैं और आने वाले वर्षों में सेवामुक्त होने की संभावना है। भारत क्वाड ग्रुप का हिस्सा है, जिसमें जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया भी हैं। इन देशों और यूरोपीय सहयोगियों पर पनडुब्बियों के निर्माण के लिए प्रौद्योगिकी साझा करने पर जोर दिया जा रहा है।
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