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हापुड़ लाठीचार्ज मामला: हाईकोर्ट ने पूछा-जब वकीलों ने क्षति नहीं पहुंचाई, तो किस आदेश पर किया गया लाठीचार्ज

प्रयागराज- 18 सितम्बर। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हापुड़ में अधिवक्ताओं पर हुए लाठी चार्ज के मामले में जांच कर रही विशेष जांच कमेटी (एसआईटी) की रिपोर्ट पर सवाल खड़े किए हैं। कोर्ट ने कहा कि प्रारंभिक तौर पर एसआईटी की ओर से दाखिल जांच रिपोर्ट स्वीकार्य नहीं है। कोर्ट ने कहा कि जब अधिवक्ताओं ने निजी संपत्ति, व्यक्ति को क्षति नहीं पहुंचाई और उनके पास कोई अवैध वस्तु नहीं थी तो किसके आदेश पर लाठीचार्ज हुआ।

कोर्ट को इन बातों का जवाब न मिलने पर उसने सुनवाई के लिए अगली तिथि 12 अक्टूबर निर्धारित करने का आदेश दिया और उस तिथि पर पूरी रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है। कोर्ट ने कहा कि एसआईटी ने जांच में कई पहलुओं को छोड़ दिया है। यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी की खंडपीठ ने स्वतः संज्ञान जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है।

इसके पहले सुनवाई शुरू होते ही अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने सीलबंद लिफाफे में रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस पर कोर्ट ने आपत्तियां उठाई और प्राथमिकी से जुड़ी कई जानकारियां मांगी।

कोर्ट के आदेश पर शासकीय अधिवक्ता एके संड ने हापुड़ पुलिस अफसरों से जानकारी लेकर बताया कि मामले में 22 अधिवक्ताओं की शिकायतें मिली थीं। जिसमें एक प्राथमिकी दर्ज कर सभी 22 प्राथमिकियों को संबद्ध कर दिया गया था। इस पर हापुड़ बार एसोसिएशन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल तिवारी ने कहा कि घटना की शुरूआत जिस अधिवक्ता प्रियंका त्यागी से हुई, पुलिस ने उसकी शिकायत नहीं नहीं दर्ज की। प्रियंका ने सीएम से पुलिस वाले की शिकायत की तो पुलिस ने प्रियंका त्यागी और उनके बुजुर्ग पिता के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर रात में कस्टडी ले लिया। बाद में जब अधिवक्ता पहुंचे और प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की तो दर्ज नहीं किया।

अधिवक्ताओं ने 48 घंटे का समय दिया लेकिन पुलिस मानी नहीं। इसके बाद अधिवक्ताओं ने शांतिपूर्वक प्रदर्शन किया। उसके बाद जब वे अपने घर जाने की तैयारी में थे तभी पुलिस अचानक पहुंची और पहुंचकर लाठीचार्ज कर दिया। इस पर कोर्ट ने घटना से जुड़ी जानकारी मांगी।

कोर्ट ने यह भी पूछा कि क्या कोई पुलिस ऑफिसर आए हैं। इसका जवाब नहीं में दिया गया। कहा गया कि केस को जांच के लिए मेरठ स्थानांतरित कर दिया गया है। एसपी क्राइम की अध्यक्षता में पुलिस घटना की जांच कर रहे हैं। इस मामले में छह सितम्बर को प्राथमिकी दर्ज की गई। सात सितम्बर को पहला पर्चा काटा गया। कोर्ट ने कहा कि केस डायरी में कितने अधिवक्ताओं को चोटें आईं है। कितने का 161 का बयान लिया गया। कोर्ट ने पुलिस रिपोर्ट पर भरोसा करने पर भी सवाल खड़े किए। जवाब दिया गया कि इंस्पेक्टर का स्थानांतरण कर दिया गया। सीओ सहित कई अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की गई है। इस पर अधिवक्ता अनिल तिवारी ने इंस्पेक्टर को किसी दूसरे जिले में स्थानांतरित करने की मांग की। कहा कि इंस्पेक्टर मेरठ पुलिस लाइन में है और उसे एसएसपी मेरठ को रिपोर्ट करना है। ऐसे में सही जांच की उम्मीद नहीं की जा सकती है।

अधिवक्ता ने कहा कि निलंबन और बर्खास्तगी का मामला नहीं बल्कि पुलिस की मनः स्थिति को बदलने की जरूरत है। क्योंकि, पुलिस के कानून कोलोनियल जमाने के हैं। उनकी मनः स्थिति ऐसी बनी हुई है। इसके पहले भी कई बार ऐसा हो चुका है। लिहाजा, पुलिस के सबसे बड़े अफसर को यहां तलब किया जाए और उससे घटना की सारी जानकारी मांगी जाए। कोर्ट ने सवालों को देखते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता बीपी श्रीवास्तव और वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल स्वरूप चतुर्वेदी को भी सहयोग करने को कहा। दोनों अधिवक्ताओं ने कोर्ट को कई कानूनी जानकारियों से अवगत कराया। बार कौंसिल की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राधाकांत ओझा, वरिष्ठ अधिवक्ता अमरेंद्र नाथ सिंह ने कई तर्क दिए। इसके बाद कोर्ट ने सुनवाई के लिए तिथि निर्धारित कर दी।

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