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संसदीय समितियों को सहयोग और समावेशिता की भावना से काम करना चाहिए: ओम बिरला

मुंबई- 27 जनवरी। लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला ने शनिवार को कहा कि संसदीय समितियों को सहयोग और समावेशिता की भावना से काम करना चाहिए। उन्होंने आज महाराष्ट्र विधानमंडल परिसर, मुंबई में 84वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन (एआईपीओसी) का उद्घाटन किया। इस अवसर पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री,एकनाथ शिंदे,राज्य सभा के उपसभापति, श्री हरिवंश; महाराष्ट्र विधान सभा के अध्यक्ष राहुल नार्वेकर, महाराष्ट्र विधान परिषद की उप सभापति डॉ. नीलम गोरहे और महाराष्ट्र विधान सभा के उपाध्यक्ष नरहरि सीताराम झिरवाल उपस्थित थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वीडियो संदेश के माध्यम से सम्मेलन में शामिल हुए।

उद्घाटन सत्र में 26 पीठासीन अधिकारियों ने भाग लिया। सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला ने विधानमंडलों में अनुशासनहीनता,कार्यवाही में व्यवधान और असंसदीय आचरण की घटनाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि इससे विधानमंडलों की विश्वसनीयता प्रभावित हो रही है। उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में असहमति व्यक्त करने के लिए गुंजाइश है, इसलिए व्यवधान के माध्यम से विरोध और असहमति नहीं जताई जानी चाहिए। ओम बिरला ने कहा कि विधानमंडलों की प्रतिष्ठा और गरिमा को बनाए रखना और विधानमंडलों में मर्यादापूर्ण आचरण को बनाए रखना सर्वोपरि है। यह चिंता का विषय है कि इन मुद्दों पर आम सहमति होने के बावजूद हम अभी तक सदन के सुचारू कामकाज के लिए अपनी प्रतिबद्धताओं को लागू नहीं कर पाए हैं।

उन्होंने कहा कि जन प्रतिनिधियों का आचरण संसदीय मर्यादाओं के अनुरूप होना चाहिए। उन्होंने सदस्यों से सदन में अपना समय रचनात्मक कार्यों में लगाने का आग्रह किया। यदि आवश्यक हो तो नियमों में बदलाव करते हुए ठोस और निश्चित कार्य योजना तैयार की जानी चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि विधानमंडल बिना किसी व्यवधान के कार्य करें। नवाचार पर जोर देते हुए बिरला ने सुझाव दिया कि विधानमंडलों में काम करने के नए तौर-तरीकों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए ताकि लोकतांत्रिक संस्थाएं कार्यपालिका की निगरानी की अपनी जिम्मेदारी को बेहतर ढंग से निभा सकें और लोगों का इन संस्थाओं में विश्वास बढ़े । सामाजिक-आर्थिक क्षेत्रों में राज्य विधानमंडलों द्वारा किए जा रहे अच्छे कार्यों पर सदन में चर्चा की जानी चाहिए, सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा किया जाना चाहिए, क्योंकि ऐसे उपायों से जनता के बीच विधानमंडलों और जन प्रतिनिधियों दोनों की विश्वसनीयता बढ़ेगी।

विधायी कार्यों में प्रौद्योगिकी के उपयोग पर जोर देते हुए बिरला ने सुझाव दिया कि जन प्रतिनिधियों को प्रौद्योगिकी में दक्ष होना चाहिए और जनता से जुड़ने के लिए इसका उपयोग करना चाहिए। प्रौद्योगिकी के अधिक से अधिक उपयोग से सदस्यों की दक्षता में वृद्धि होगी। विधानमंडल में सदस्यों की क्षमता निर्माण को गंभीरता से लिया जाना चाहिए और सदस्यों के लिए विधानमंडल के नियमों, विधायी साधनों और प्रौद्योगिकी के उपयोग के बारे नियमित प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए। ओम बिरला ने राज्य विधानमंडलों से समयबद्ध तरीके से वाद-विवाद के डिजिटलीकरण का आग्रह किया ताकि ‘एक राष्ट्र, एक विधायी मंच की संकल्पना को शीघ्र ही वास्तविक रूप दिया जा सके।’

लोकतंत्र में संसदीय समितियों की भूमिका का उल्लेख करते हुए ओम बिरला ने कहा कि संसदीय समितियाँ वर्तमान परिप्रेक्ष्य में कानूनों और नीतियों को तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। उन्होंने कहा कि संसदीय समितियां वास्तव में ‘मिनी संसद’ हैं और वे संसद की ओर से इन कानूनों, नीतियों और कार्यक्रमों की समीक्षा करती हैं और उन्हें जनता के लिए अधिक उपयोगी बनाती हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि संसदीय समितियां सहयोग और समावेशिता की भावना से काम करें, सभी पक्षों के सामूहिक ज्ञान का उपयोग करते हुए रचनात्मक चर्चा संवाद करें और परिणाममूलक बनें।

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