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मध्य प्रदेश को सिंचाई में हासिल हुई विशेष उपलब्धियां

भोपाल- 07 जनवरी। मध्यप्रदेश में जल-संसाधन विभाग ने बीते वर्षों में सिंचाई के क्षेत्र में अनेक उपलब्धियां हासिल की है, जिससे प्रदेश की गिनती अब देश के तेजी से विकसित होने वाले राज्यों में की जाने लगी है। कोरोना काल से उबरने के बाद मध्यप्रदेश ने हर क्षेत्र में विकास किया है। इसमें सिंचाई भी शामिल है। जल-संसाधन मंत्री तुलसीराम सिलावट ने कहा कि सिंचाई क्षमता में बीते दो साल में 3 लाख 48 हजार हेक्टेयर क्षेत्र की वृद्धि हुई है।

जनसम्पर्क अधिकारी अरुण राठौर ने शुक्रवार को बताया कि विभाग द्वारा वर्तमान में 37 लाख 7 हजार हेक्टेयर सिंचाई क्षमता विकसित की जा चुकी है। तवा परियोजना के कमाण्ड में जायद फसल के लिए किसानों को 89 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुविधा मिल रही है। प्रदेश में दो साल में 126 नयी सिंचाई परियोजनाएँ शुरू की गई हैं। वर्ष 2020-21 एवं 2021-22 में 840.3 करोड़ रूपये के राजस्व की वसूली की गई है। वहीं 2022-23 में सितम्बर तक 266.11 करोड़ रुपये राजस्व की वसूली की जा चुकी है। जल-संसाधन विभाग ने वर्ष 2020-21 में एक लाख 15 हजार हेक्टेयर सिंचाई क्षमता विकसित करने के लक्ष्य के विरूद्ध एक लाख 16 हजार हेक्टेयर सिंचाई क्षमता विकसित की। वहीं 2021-22 के लक्ष्य एक लाख 70 हजार हेक्टेयर के विरूद्ध एक लाख 71 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में नवीन सिंचाई क्षमता विकसित की गई। कुल सिंचाई क्षमता बढ़ा कर 40 लाख हेक्टेयर करने के लक्ष्य को 31 दिसम्बर 2023 तक पूर्ण कर लिया जाएगा।

प्रदेश में 126 नवीन सिंचाई परियोजनाएँ शुरू—

विभाग द्वारा मध्यप्रदेश में बीते दो वर्ष में कुल 126 नयी वृहद, मध्यम और लघु सिंचाई परियोजनाएँ शुरू की गईं। इनमें चार वृहद्, 10 मध्यम और 112 लघु परियोजनाएँ शामिल हैं। इन सभी 126 सिंचाई परियोजनाओं की लागत 6 हजार 700 करोड़ रूपए है। इन नयी सिंचाई परियोजनाओं से 3 लाख 34 हजार हेक्टेयर सिंचाई क्षमता विकसित होगी।

केन-बेतवा लिंक राष्ट्रीय परियोजना से 41 लाख आबादी को मिलेगा पेयजल—

मध्यप्रदेश में बहुप्रतीक्षित केन-बेतवा लिंक राष्ट्रीय परियोजना का कार्य जल्द शुरू किया जाएगा। 44 हजार 605 करोड़ रुपये लागत की इस राष्ट्रीय परियोजना से प्रदेश के सूखाग्रस्त बुन्देलखण्ड क्षेत्र के 8 लाख 11 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुविधा उपलब्ध होगी। साथ ही लगभग 41 लाख आबादी को पेयजल की सुगम आपूर्ति होगी। परियोजना से 103 मेगावॉट बिजली का उत्पादन होगा, जिसका पूर्ण उपयोग मध्यप्रदेश करेगा। केन-बेतवा लिंक परियोजना से राज्य के 10 जिलों की 28 तहसील के 2040 ग्राम लाभांवित होंगे।

बुन्देलखंड के लिए अटल भू-जल योजना—

प्रदेश के बुन्देलखंड क्षेत्र में भू-जल स्तर को बढ़ाने, पेयजल संकट को दूर करने और सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से ‘‘अटल भू-जल योजना’’ प्रारंभ की गई है। करीब 314 करोड़ 54 लाख रुपये लागत की इस परियोजना में प्रदेश के 6 जिलों के 9 विकासखण्ड के 678 ग्राम में जन-भागीदारी से जल-संवर्धन एवं भू-जल स्तर में सुधार के कार्य किए जा रहे हैं।

श्रीमंत माधवराव सिंधिया वृहद् सिंचाई परियोजना—

ग्वालियर और चंबल अंचल में सिंचाई एवं पेयजल आपूर्ति के लिए 6,601 करोड़ की श्रीमंत माधवराव सिंधिया नवीन बहुउद्देश्यीय सिंचाई परियोजना प्रारंभ की जा रही है। परियोजना से प्रदेश के गुना, शिवपुरी और श्योपुर जिले में 2 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुविधा उपलब्ध होगी और 6 जलाशय का निर्माण होगा। साथ ही सिंचाई, पेयजल, मछली पालन, पर्यटन एवं रोजगार के अवसर में वृद्धि होगी। क्षेत्र का भू-जल स्तर भी बढ़ेगा।

माइक्रो इरीगेशन—

सूक्ष्म सिंचाई पद्धति पर आधारित योजनाओं का निर्माण करने वाला मध्यप्रदेश देश का अग्रणी राज्य है। विभाग की वर्तमान में निर्माणाधीन 55 वृहद् एवं मध्यम सिंचाई परियोजनाओं में आधुनिक दबाव युक्त पाइप आधारित सूक्ष्म सिंचाई पद्धति का उपयोग किया जा रहा है।

148 करोड़ की लागत से 25 बांध की मरम्मत—

जल-संसाधन विभाग बांधों की सुरक्षा के लिए भी सजग है। बांध सुरक्षा अधिनियम-2021 के प्रावधानों को लागू करने के लिये विशेषज्ञ समिति का गठन करने वाला मध्यप्रदेश देश का अग्रणी राज्य है। मध्यप्रदेश में ‘‘डेम सेफ्टी रिव्यू पैनल’’ गठित है। पैनल प्रतिवर्ष संवेदनशील बांधों का निरीक्षण कर अपनी रिपोर्ट देता है। बांध सुरक्षा के लिए बांध सुरक्षा संचालनालय भी स्थापित है। पिछले 5 वर्ष में 148 करोड़ रुपये की लागत से 25 बांध की मरम्मत का कार्य किया जा चुका है। आने वाले 5 वर्ष में 27 बांध की सुरक्षा एवं मरम्मत की जाएगी। इसके लिए विश्व बैंक के सहयोग से 551 करोड़ रुपये की स्वीकृति दी जा चुकी है।

क्षतिग्रस्त जल-संरचनाओं की मरम्मत—

पिछले वर्ष ग्वालियर और चंबल अंचल में अतिवृष्टि से बांधों एवं नहर प्रणालियों को बहुत ज्यादा क्षति हुई थी। एक माह की अवधि में ही क्षतिग्रस्त जल-संरचनाओं की मरम्मत कर कृषकों को समय पर रबी की फसल के लिए सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराई गई।

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