भारत

पत्रकारिता को दोहरे मानदंडों और अनैतिक आचरण से निपटना चाहिए: धनखड़

नई दिल्ली- 18 जुलाई। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने देश में जिम्मेदार पत्रकारिता का आह्वान करते हुए कहा कि पत्रकारिता को दोहरे मानदंडों और अनैतिक आचरण से निपटना चाहिए। एक हिंदी दैनिक द्वारा आयोजित जूनियर एडिटर प्रतियोगिता में श्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले बच्चों से गुरुवार को संसद में बातचीत करते हुए उपराष्ट्रपति धनखड़ ने मीडिया से आत्मनिरीक्षण का आह्वान किया और मीडिया से भारत की विकास गाथा पर ध्यान देने की अपील की। उपराष्ट्रपति ने मीडिया द्वारा सीमित प्रभाव वाली घटनाओं को दिए जाने वाले असंगत कवरेज पर चिंता व्यक्त की, जिससे ठोस और दीर्घकालिक पहलों पर असर पड़ता है।

उपराष्ट्रपति ने भारत की 5000 वर्षों की सांस्कृतिक विरासत का शानदार ढंग से वर्णन किया और इसकी लोकतांत्रिक संस्थाओं की मजबूती को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि हमारी प्रजातांत्रिक व्यवस्था कितनी स्वस्थ है। हमारे यहां शासन परिवर्तन कितना आसानी से होता है। हर चुनाव दर्शाता है। हाल का चुनाव कितना जबरदस्त रूप से संपन्न हुआ। पर नतीजा आपके पक्ष में आए तो हर्षोल्लास हो, नतीजा आपके विरुद्ध में आए तो आप खामियां निकालते हो। उपराष्ट्रपति ने जिम्मेदार पत्रकारिता का आह्वान करते हुए कहा कि ऐसे दोहरे मापदंड पर पत्रकारिता का एक योगदान होना चाहिए।

उपराष्ट्रपति ने मीडिया से आग्रह किया कि वह दुनिया के सामने भारत की सही छवि पेश करने में अपनी जिम्मेदारी निभाए। उन्होंने कहा, “भारत का आकलन बाहर के लोग नहीं कर सकते, वे अपनी दृष्टि से ऐसा करते हैं। ऐसे बहुत से लोग हैं, जो देश में कम और बाहर ज़्यादा हैं, जो हमारी अप्रत्याशित और अकल्पनीय प्रगति को पचा नहीं पा रहे हैं कि हम एक महाशक्ति बन रहे हैं।”

मीडिया के व्यावसायीकरण और प्रेरित आख्यानों के लिए उसके नियंत्रण पर दुख जताते हुए धनखड़ ने लोकतंत्र को बनाए रखने में पत्रकारिता की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार किया। उन्होंने मीडिया से पक्षपातपूर्ण विचारों से ऊपर उठने और राजनीतिक एजेंडों या राष्ट्रीय हितों के खिलाफ ताकतों के साथ जुड़ने से बचने का आह्वान किया।

उन्होंने कहा, “यह आत्ममंथन का समय है। मैं मीडिया से पूरी विनम्रता और ईमानदारी से अपील करता हूं कि वे विकास में भागीदार बनें। वे अच्छे कार्यों को उजागर करके गलत स्थितियों और कमियों की आलोचना करके ऐसा कर सकते हैं।”

उपराष्ट्रपति ने संसदीय कार्यवाही में व्यवधानों और सनसनीखेजता की बढ़ती प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा, “संविधान सभा लोकतंत्र का मंदिर थी, जहां हर सत्र ने बिना किसी व्यवधान या गड़बड़ी के हमारे राष्ट्रवाद की नींव रखने में योगदान दिया।” उन्होंने कहा कि व्यवधान और गड़बड़ी दुर्भाग्य से अपवादों के बजाय राजनीतिक उपकरण बन गए हैं।

मीडिया में व्यवधान को महिमामंडित करने की प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त करते हुए धनखड़ ने मीडिया से संसदीय कार्यवाही को कवर करने में अपनी प्राथमिकताओं का पुनर्मूल्यांकन करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि जब व्यवधान सुर्खियां बन जाते हैं और व्यवधान पैदा करने वालों को नायक के रूप में सम्मानित किया जाता है, तो पत्रकारिता लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखने के अपने कर्तव्य में विफल हो जाती है।

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