
देश के हर विद्यालय में संस्कृत भाषा के शिक्षण की सुविधा उपलब्ध हो: संस्कृत भारती
आम लोगों तक संस्कृत को पहुंचाने के लिए हो रहे कार्य : शिरीष
मेरठ- 20 नवम्बर। संस्कृत भारती के अखिल भारतीय सम्मेलन के दूसरे दिन शनिवार को पिछले वर्ष संस्कृत के प्रचार-प्रसार के लिए किए गए प्रयासों की समीक्षा की गई। इसके अलावा आगामी वर्ष के लिए कार्य योजना और लक्ष्य तय किए गए। संस्कृत भारती के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख पुणे के शिरीष ने बताया कि संस्कृत भाषा को आम लोगों तक विस्तारित करने के लिए पूरे देश में बड़े पैमाने पर कार्य किए जा रहे हैं।
भारत समेत 40 देशों में ऑनलाइन संस्कृत शिक्षण और प्रशिक्षण की है व्यवस्था—
चौधरी चरण सिंह विवि के नेताजी सुभाष चंद्र बोस प्रेक्षागृह में संस्कृत भारती के सम्मेलन के दूसरे दिन शनिवार को प्रगति आख्या में बताया गया कि कोरोना महामारी के दौरान भारत समेत 40 देशों में ऑनलाइन संस्कृत शिक्षण और प्रशिक्षण के लिए व्यवस्था की गई। अमेरिका, रूस, जापान, ऑस्ट्रेलिया, यूरोप और खाड़ी देशों में संयुक्त अरब अमीरात, ओमान, कतर आदि से भी संस्कृत सीखने के लिए लोग ऑनलाइन माध्यम से जुड़े।
एक लाख संस्कृत प्रेमियों को सिखाया जायेगा संस्कृत भाषा—
ऑनलाइन माध्यम से संस्कृत संभाषण का प्राथमिक प्रशिक्षण लेने वाले करीब एक लाख संस्कृत प्रेमियों को निरंतर संस्कृत से जोड़े रखने और उन्हें प्राथमिक संभाषण से आगे संस्कृत भाषा सिखाने का प्रयास किया जाएगा।
देश के 550 जिलों में संस्कृत प्रेमियों के समूह का गठन—
बताया कि इसके लिए 03 वर्षीय योजना बनाई गई है। योजना के तहत देश के 550 जिलों में संस्कृत प्रेमियों के समूह का गठन किया गया है। इन समूहों में 05 से 06 कार्यकर्ता संस्कृत सिखाने का बीड़ा उठा रहे हैं और इसका विस्तार आने वाले वर्षों में तहसील स्तर तक किया जाएगा।
प्रत्येक प्रांत में आयोजित होंगे संस्कृत सम्मेलन—
संस्कृत भारती ने अपनी योजना को मूर्त रूप देने के लिए आगामी वर्ष देश के हर प्रांत में संस्कृत सम्मेलन आयोजित किए जाएंगे। इन सम्मेलनों में विशेष रूप से शिक्षण प्रमुखों से आग्रह किया जाएगा कि वह संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार को आगे बढ़ाएं और आम लोगों कभी संस्कृत पहुंचाएं। इसके लिए सभी 39 प्रांतों में शिक्षण प्रमुख तय कर दिए गए हैं। संस्कृत का प्रशिक्षण निशुल्क दिया जा रहा है। संस्कृत के प्रशिक्षण का कार्य ऑफलाइन और ऑनलाइन दोनों माध्यमों से किया जा रहा है। लोग अपनी सुविधा के अनुसार प्रशिक्षण माध्यम का चयन कर सकते हैं।
13 भाषाओं में संस्कृत के प्रशिक्षण की व्यवस्था—
बताया कि संस्कृत भारती की ओर से 13 भाषाओं में संस्कृत के प्रशिक्षण की सुविधा प्रदान की जा रही है। हिंदी, अंग्रेजी, तमिल, तेलगु, कन्नड़, मलयालम, अड़िया, असमी, बांग्ला आदि भाषाएं भी शामिल है। संस्कृत भारती का प्रयास है कि लोग अपनी मातृभाषा में संस्कृत सीख सकें।
देश के हर विद्यालय में संस्कृत भाषा के शिक्षण की सुविधा उपलब्ध हो
वक्ताओं ने कहा कि संस्कृत ज्ञान की भाषा है और इसे समाज के हर प्रकार के लोगों तक पहुंचाना है। संस्कृत भारती का प्रयास है कि देश के हर विद्यालय में संस्कृत भाषा के शिक्षण की सुविधा उपलब्ध हो। संस्कृत आमजन के लिए भी बहुत उपयोगी है क्योंकि हमारे प्राचीन ग्रंथ संस्कृत भाषा में ही है।
पाराशर संहिता किसानों के लिए बहुत उपयोगी—
चीन में कृषि कार्य से संबंधित पाराशर मुनि की पाराशर संहिता किसानों के लिए बहुत उपयोगी है। ऐसे में यदि किसान संस्कृत सीखेगा तो वह किस ग्रंथ से कृषि से संबंधित प्राचीन ज्ञान विज्ञान से परिचित हो सकेगा। इसी तरह कौटिल्य का अर्थशास्त्र और भरद्वाज मुनि के समरांगण सूत्रधार जैसे प्रमुख ग्रंथ संस्कृत भाषा में है और इनमें वर्णित उपयोगी ज्ञान संस्कृत भाषा समझने से ही मिल सकता है। इसलिए संस्कृत भारती संस्कृत भाषा को समाज के हर प्रकार के लोगों तक ले जाने के लिए कार्य कर रही है।
कोरोना काल में गीता शिक्षण केंद्रों का संचालन—
कोरोना काल में गीता को पढ़ने और जानने के इच्छुक लोगों के लिए संस्कृत भारती की ओर से गीता शिक्षण केंद्रों का संचालन किया गया। इसी तरह संस्कृत सीखने के इच्छुक बच्चों के लिए बाल केंद्र संचालित किए गए। संस्कृत भारती का उद्देश्य संस्कृत भाषा के माध्यम से भारतीय संस्कृति से परिचित कराना और देश में एकात्मकता लाना है।
सम्मेलन में देशभर से आए प्रतिभागियों ने प्रांत के अनुसार अलग-अलग बैठकें करके संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार में तेजी लाने पर मंथन किया। सम्मेलन में संस्कृत भारती के अखिल भारतीय अध्यक्ष गोपबंधु मिश्र, उपाध्यक्ष श्रीनिवास बरखेड़ी, राष्ट्रीय संगठन मंत्री दिनेश कामत, राष्ट्रीय महामंत्री श्रीश देवपुजारी, राष्ट्रीय मंत्री सत्यनारायण ने संस्कृत के प्रचार-प्रसार पर विचार रखें। इस अवसर पर सुरेश सोनी, अजीत अग्रवाल, डॉ.नरेंद्र पांडे आदि उपस्थित रहे।



