
आलू की फसल में झुलसा रोग से रहें सावधान: कृषि वैज्ञानिक
कटिहार- 19 जनवरी। जिले में 7,980 हेक्टेयर में आलू की खेती की जाती है। इस दौरान तापमान गिरने और लगातार मौसम में बदलाव से इस समय आलू की फसल में कई तरह के रोग लगने की संभावना बनी रहती हैं। अगर समय रहते इनका प्रबंधन नही किया गया तो आलू की खेती करने वाले किसानों को नुकसान उठाना पड़ सकता है। इस संदर्भ में कटिहार कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि वैज्ञानिक पंकज कुमार ने हिन्दुस्थान समाचार को बताया कि अभी तक कटिहार क्षेत्र में आलू की फसल में कोई रोग लगने की जानकारी नहीं आयी है। लेकिन मौसम के आकलन के आधार पर आलू की फसल में पछेती झुलसा एवं पूर्ण कुंचन बीमारी निकट भविष्य में आने की संम्भावना है।
उन्होंने बताया कि पछेती झुलसा आलू के लिए ज्यादा नुकसानदायक होता है। इस बीमारी में पत्तियाँ किनारे व शिरे से झुलसना प्रारम्भ होती है जिसके कारण पूरा पौधा झुलस झुलसा रोग लग सकता है। पछेती झुलसा आलू के लिए ज्यादा नुकसानदायक होता है। है। इस बीमारी में पत्तियाँ किनारे व शिरे से झुलसना प्रारम्भ होती है जिसके कारण पूरा पौधा झुलस जाता है। पौधो के ऊपर काले-काले चकत्ते दिखाई देते हैं जो बाद में बढ़ जाते हैं। जिससे कंद भी प्रभावित होता है। बदली के मौसम एवं वातावरण में नमी होने पर यह रोग उग्र रूप धारण कर लेता है तथा दो से तीन दिन में पूरी पत्ती झुलस जाती है और आलू की फसल बिल्कुल नष्ट होने लगता है।
कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि झुलसा बीमारी के प्रबंधन के लिये मौसम एवं फसल की निगरानी करते रहना चाहिये। पिछेती झुलसा बीमारी की लक्षण दिखने पर मैकोजेल दो किलोग्राम या कॉपर-ऑक्साइड तीन किलोग्राम की मात्रा एक हजार लीटर पानी मे घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से 10 दिनों के अंतराल पर दो बार छिड़काव करना चाहिए। उन्होंने बताया कि अगर आकाश बादलों से घीरे हुए हो और रुक-रुककर बारिश हो रही हो तो मैटालेक्लिक्सल 8% मैकोजेब 64% की 2.5 ग्राम की मात्रा प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर फसलों पर छिड़काव करनी चाहिए। पंकज कुमार ने बताया कि आलू की फसल में अगर पूर्ण कुंचन बीमारी की चपेट में आ जाती है तो ऐसी स्थिति में इमिडाक्लोप्रीड 17.8 एसएल की 01 मिलीलीटर की मात्रा प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करना चाहिए।



