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अलविदा 2022: झारखंड की राजनीतिक में बंद लिफाफे ने मचाया तहलका

रांची- 31 दिसंबर। झारखंड की राजनीति में गुजर रहे वर्ष 2022 ने ऐसी कई नई कहानियां गढ़ दी हैं, जो आने वाले वर्षों में याद रखा जायेगा। यह साल राजनीतिक उठापटक, हलचल और रोमांच वाला रहा। राज्य में बहुमत वाली हेमंत सोरेन सरकार को लेकर अटकलें लगती रहीं। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के मामले में कभी घिरे, तो कभी निकले।

झारखंड की राजनीति में लिफाफे का हाई वोल्टेज ड्रामा लम्बे समय तक चला। पक्ष और विपक्ष दोनों चुनाव आयोग से गवर्नर को आये एक लिफाफे के खुलने का इंतजार करते रहे कि इसमें से कौन जा जिन्न निकलने वाला है लेकिन बंद लिफाफा खुला ही नहीं और राज राज ही रह गया। इस दौरान राजनीतिक गलियारे और मीडिया में इस लिफाफे को लेकर तरह-तरह के कयास लगते रहे।

इस लिफाफे ने ऐसा राजनीतिक उफान पैदा कर दिया कि सरकार के अंदर बेचैनी रही। राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी एक मंजे हुए राजनीतिक खिलाड़ी की तरह डटे रहे। कोई कोर कसर नहीं छोड़ा। सरकार के अंदर कोई सेंधमारी ना हो, इससे बचने के लिए पूरा यूपीए कुनबा रायपुर के रिसॉर्ट जा पहुंचा। इस रिसॉर्ट की वादियों में यूपीए के विधायक बंद रहे, तो सरकार ने राहत की सांस ली। दूसरी ओर उन्होंने विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर बहुमत भी साबित कर दिया। इसका असर यह हुआ कि लिफाफे की हवा ही निकल गई।

इसके बाद मुख्यमंत्री के लाभ के पद का एक नया मामला सुर्खियां बना, जो अब भी चल ही रहा है। इस मामले में 17 नवंबर को हेमंत सोरेन से 1000 करोड़ के अवैध खनन से अर्जित राशि की मनी लांड्रिंग से जुड़े केस में ईडी ने उनसे 9 घंटे तक पूछताछ की। मुख्यमंत्री पूछताछ के दौरान शुरूआत में तनाव में रहे लेकिन बाद में उन्होंने पूरे आत्मविश्वास के साथ ईडी के सवालों का जवाब दिया।

इस बीच हेमंत सरकार झारखंड की नियोजन नीति में फंस गयी। हेमंत सोरेन की सरकार ने नियोजन नीति-2021 बनायी थी। इसमें यह प्रावधान था कि थर्ड और फोर्थ ग्रेड की नौकरियों में सामान्य वर्ग के उन्हीं लोगों की नियुक्ति हो सकेगी, जिन्होंने 10वीं और 12वीं की परीक्षा झारखंड से पास की हो। हाई कोर्ट ने इसे असंवैधानिक माना है और कहा है कि यह समानता के अधिकार के अधिकार के खिलाफ बताकर निरस्त कर दिया। इसका विपक्षी दलों ने सदन से सड़क तक विरोध किया।

हेमंत सोरेन की उपलब्धियों की बात करें तो इसमें 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीयता नीति बनाने का प्रस्ताव विधानसभा से पास कराना एक बढ़ा कदम है। सबसे दिलचस्प यह कि 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीयता नीति तो बन जाएगी लेकिन केंद्र की नौंवीं अनुसूची में इसे शामिल करना होगा। दूसरा कि इसी साल विधानसभा में खुद हेमंत सोरेन ने स्वीकार किया था कि 1932 के आधार पर स्थानीयता नीति बनती भी है तो उसके कोर्ट में खारिज हो जाने का खतरा है। इसीलिए उन्होंने केंद्र की नौवीं अनुसूची का पेंच फंसा दिया। सांप भी मर जाय और लाठी भी न टूटे वाले अंदाज में।

इसी साल 14 सितंबर को स्थानीयता नीति के प्रस्ताव को मंजूरी दी है। प्रस्ताव के मुताबिक झारखंड की भौगोलिक सीमा में जो रहता हो और स्वयं अथवा उसके पूर्वज के नाम 1932 या उसके पूर्व के सर्वे के खतियान में दर्ज हों, वह झारखंडी माना जाएगा। भूमिहीन के मामले में उसकी पहचान ग्राम सभा करेगी, जिसका आधार झारखंड में प्रचलित भाषा, रहन-सहन, वेश-भूषा, संस्कृति और परंपरा होगी।

हेमंत सरकार की सारथी योजना के तहत युवाओं को रोजगार नहीं मिलने की स्थिति में 1000 रुपये की प्रोत्साहन राशि मिलेगी। इस योजना के तहत छात्रों और युवाओं का कौशल विकास किया जाएगा। इसके तहत प्रशिक्षण केंद्रों की प्रखंड स्तर पर कमी थी जिसके लिए खाली पड़े सरकारी भवनों और स्कूलों के इस्तेमाल की अनुमति दी गई है। गैर आवासीय प्रशिक्षण लेनेवाले युवाओं को प्रतिमाह एक हजार रुपये ट्रांसपोर्ट अलाउंस दिया जाएगा और कौशल प्रशिक्षण प्राप्त करने के तीन महीने के अंदर रोजगार नहीं मिला तो रोजगार मिलने तक अथवा एक वर्ष तक एक हजार रुपये प्रति माह को बेरोजगारी भत्ता दिया जाएगा जो एक वर्ष के लिए प्रभावी होगा।

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