बिहार

MADHUBANI: रांटी की शालिनी को मिला संस्कृति मंत्रालय का फेलोशिप,तांत्रिक आर्ट पर करेंगी शोध

मधुबनी-21 जनवरी। केन्द्र सरकार के संस्कृति मंत्रालय की ओर से सीनियर एवं जूनियर फेलोशिप की घोषणा कर दी गई है। यह फेलोशिप देशभर के 400 कलाकारों को दिया जाता है। जिले के रांटी गांव की शालिनी कर्ण को भी यह फेलोशिप मिलने जा रही है। इसके तहत वह तांत्रिक पेंटिंग पर रिसर्च करेंगी। शालिनी ने बताया कि,साल 2019 में ही इस फेलोशिप के लिए उन्होंने आवेदन दिया था। परंतू कोविड के कारण इसकी चयन प्रक्रिया काफी देरी से शुरू हुई. बीते साल सितंबर माह में इसके लिए साक्षात्कार लिया गया था। इस साल जनवरी में सफल प्रत्याशियों की घोषणा की गई है। बकौल शालिनी मैं तांत्रिक पेंटिंग पर रिसर्च करना चाहती हूं। यह मिथिला पेंटिंग का ही एक रूप है। हरिनगर गांव के कृष्णानंद झा इस विधा के बेहतरीन कलाकार थे। उन्होंने तांत्रिक विधा में बहुत प्रशंसनीय काम किया है। लेकिन किसी कारणवश वह विधा बहुत प्रचलित नहीं हो सकी। ऐसे में मैंने तय किया कि इस विधा को दुनिया के सामने लाऊंगी। वो बताती हैं,इस विधा में बहुत गिने चुने कलाकार ही हुए हैं। संजय जायसवाल,बटोही झा,सुखरू झा,हनुमान झा,गोलू झा जैसे कुछ कलाकार ही इस विधा में काम करते रहे हैं।


पहले भी हो चुकी है सम्मानित—

शालिनी को इससे पहले साल 2013-15 के लिए मिनिस्ट्री ऑफ कल्चर की तरफ से स्कॉलरशिप भी मिल चुका है. इसके अलावा उनके पेंटिंग की प्रदर्शनी भारत के विभिन्न आर्ट गैलरी के साथ अमेरिका,फ्रांस,नेपाल में भी लग चुकी है। जानकारी के मुताबिक इस फेलोशिप के तहत दो साल तक प्रति माह 10 हजार रुपए की राशि कलाकारों को मिलती है। वहीं सीनियर कैटेगरी में प्रतिमाह 20 हजार रुपए चयनित कलाकारों को मिलते हैं। शालिनी के अलावा रवि वर्मा को फोक थियेटर,शीतल कुमारी को मैथिली गीत,सुकन्या को मूर्तिकला कैटेगरी में यह फेलोशिल मिली है।


क्या है तांत्रिक आर्ट—

तांत्रिक आर्ट मिथिला पेंटिंग का स्वरूप है। इसमें यंत्र-तंत्र को उकेरा जाता है। साथ ही ग्रहों को भी पेंटिंग में स्थान दिया जाता है। इसमें बहुत अधिक रंगों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। हिन्दू धर्म में तंत्र के अभ्यास की परंपरा रही है। जाहिर है इसके लिए कई सारी कलाकृति भी पूर्व में बनाई गई है। देश के कई हिस्सों में इसका अभ्यास किया जाता है। बकौल शालिनी,विश्वास या अंधविश्वास के बजाये इसे एक कला के तौर पर दुनिया के सामने रखना प्रमुख चोनती होगी। कोशिश ये भी रहेगी की यह पेंटिंग जाति विशेष के खांचे से भी बाहर आए।

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