
MADHUBANI:- छठ व्रतीयों ने अस्त सूर्य को दी अर्ध
मधुबनी- 14 अप्रैल। जिले में कई जगह लोगों के द्वारा हर्षोल्लास के साथ चैती छठ पर्व मनाया जा रहा है। रविवार को व्रती ने नदी एवं तालाबों में अस्तलगामी यानी अस्त होते हुए सूर्य को अर्ध दिया। हिन्दू धर्म में पंचांग की मुताबिक,कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि और चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्य आराधना की जाती है। इस पर्व को सूर्य षष्ठी या डाला छठ के नाम से भी जाना जाता है। इस व्रत से पति, पुत्र को दीर्घायु और आरोग्य के साथ ही परिवार को धन धान्य और सुख समृद्धि प्राप्त होती है। तथा सभी संकटों से मुक्ति मिल जाती है। इस बार सूर्य षष्ठी व्रत शनिवार को है। सूर्य षष्ठी व्रत में तीन दिन के कठोर उपवास का विधान है। व्रत को करने बाले महिलाएं और पुरुष पंचमी के दिन सिर्फ एक बार नमक रहित भोजन करती हैं। तथा षष्ठी को निर्जला अर्थात बिना जल के रहते हैं। धार्मिक मान्यता है कि सूर्य षष्ठी को अस्त होते सूर्य को विधि पूर्वक पूजा करके अर्घ्य दिया जाता है। विधिपूर्वक बनाए गए पकवान,फल,मिष्ठान आदि का भोग लगाया जाता है। रात भर जागरण करते हुए भजन कीर्तन होता है और अगले दिन यानी सप्तमी को प्रातःकाल पुनः उगते हुए सूर्य को अर्घ देने के उपरांत ब्रती पारण करते है। स्टेशन चोक स्थित हनुमान प्रेम मंदिर के पुजारी पंडित पंकज झा शास्त्री ने बताया कि छठ व्रत का धार्मिक महत्व है। साथ ही इसका वैज्ञानिक महत्व भी है। षष्ठी तिथि यानी छठ एक विशेष खगोलीय परिवर्तन वाला दिन है। जिस समय सूर्य की पराबैगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं। उसके संभावित कुप्रभावों से मानव की यथासंभव रक्षा करने का सामर्थ्य इस छठ पूजा की परंपरा में है। जिसके माध्यम से पराबैगनी किरण के हानिकारक प्रभाव से जीवों की रक्षा संभव है। व्यक्ति को इससे बहुत लाभ मिल सकता है। अस्ताचलगामी और उगते सूर्य को अर्घ्य देने के दौरान इसकी रोशनी के प्रभाव में आने से कोई चर्म रोग नहीं होता और इंसान निरोगी रहता है।