भारत

भारत की पहचान सांस्कृतिक और आध्यात्मिक चेतना में निहित है : राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान

नई दिल्ली- 06 दिसंबर। बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने शनिवार को बताया कि भारत की पहचान केवल राजनीतिक एकता तक सीमित नहीं है बल्कि यह उसकी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक चेतना से बनी है।

आरिफ खान ने यह बात दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) में आज पुस्तक ‘भारत दैट इज़ इंडिया’ के विमोचन पर कही। इस पुस्तक के लेखक अभिजीत जोग हैं।

इस पुस्तक का उद्देश्य बौद्धिक आत्म-विश्वास का पुनरुद्धार करना, प्राचीन और वास्तविक पहचान को पुनः प्राप्त करना, सभ्यतागत यात्रा का अनावरण और भारत को ‘विश्व की पहली ज्ञान सोसायटी’ वाली पहचान के प्रति फिर से जागरूक करना है।

मुख्य अतिथि के रूप में राज्यपाल ने उपनिषदों के महावाक्यों का सार समझाते हुए कहा, ” परम सत्य हमारे अंदर ही ‘अहं’ की परतों के नीचे दबा है और इन परतों को हटाना ही तपस्या है।” उन्होंने ‘धर्म’ को केवल ‘रिलिजन’ के संकीर्ण अर्थ से परे, कर्तव्य, दायित्व और अपनी ज़िम्मेदारियों को निभाने के रूप में परिभाषित किया।

खान ने कहा, “हमें पश्चिमी देशों के ‘नेशन-स्टेट’ (राष्ट्र-राज्य) के ढाँचे में समाने की जरूरत नहीं है। हम राष्ट्र-राज्य नहीं हैं; हम तो एक ‘सांस्कृतिक राष्ट्र’ और ‘आध्यात्मिक राष्ट्र’ हैं।” उन्होंने कहा कि सामने से दिखने वाली विविधता के पीछे छुपी हुई जो वास्तविक एकता है, उसको देखने की अपने अंदर क्षमता पैदा करो। यह एकता ज्ञान चक्षु से नजर आती है, जिसके लिए तपस्या की आवश्यकता है.

आरिफ खान ने कहा कि कोई भी विचार तब तक प्रचार का माध्यम नहीं बन सकता, जब तक वह व्यवहार में न लाया जाए।

लेखक जोग ने कहा कि उनकी पुस्तक इसी औपनिवेशिक मानसिकता के बंधन को उतार फेंकने और ‘भारत की वास्तविक पहचान को पुनः प्राप्त करने’ का एक प्रयास है। उन्होंने कहा, “किसी भी समाज को खत्म करने का पहला कदम उसकी स्मृति को मिटाना है और भारत के साथ ठीक यही हुआ है. साम्राज्यवादी और वैचारिक शक्तियों ने हमारी सभ्यतागत स्मृति को मिटा दिया और हमारी पहचान को विकृत कर दिया।”

विशिष्ट अतिथि के रूप में, इंडिया फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. राम माधव ने बताया कि भारत को केवल कानून या संविधान से नहीं, बल्कि राष्ट्रत्व की अनुभूति और भावना से स्थापित करने की आवश्यकता है।

​आईजीएनसीए के अध्यक्ष राम बहादुर राय ने कहा कि यह पुस्तक कई गलत अवधारणाओं और भ्रांतियों को तोड़ने और नए विचारों को सामने रखने का प्रयास करती है।

​आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कहा, ” हमारे ऋषि, जो वैज्ञानिक और दार्शनिक दोनों थे, यह हजारों साल पहले जानते थे। इसीलिए उन्होंने एक ऐसे समाज का निर्माण किया जो आपस में जुड़ा हुआ और परस्पर निर्भर रहे।” उन्होंने बताया कि धर्म, जो कि स्व-लागू नैतिकता और धार्मिकता है, भारत की पहचान के मूल में था। जब उसने दुनिया को भाषाएं, सभ्यता, समृद्धि और सार्वभौमिक मानवीय मूल्य दिए। यह समय है कि भारत इस पहचान को वापस ले और अराजकता, अस्थिरता और लाचारी के वर्तमान दलदल से दुनिया को ऊपर उठाने की अपनी ऐतिहासिक जिम्मेदारी को निभाए और उसे शांति और समृद्धि के एक स्थायी भविष्य का मार्ग दिखाए। यह हमारी पहचान का सार है जो मानव सभ्यता में कई महान योगदानों में प्रकट होता है।

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