भारत

देश में UAPA के दुरुपयोग से जेलों में वर्षो से बंद मुस्लिम नौजवानों के न्याय में हो रही देरी पर बोले AIMBK के राष्ट्रीय अध्यक्ष नजरे आलम, कहा- सरकार की बेरुख़ी का नतीजा

नई दिल्ली- 28 सितंबर। भारत का लोकतंत्र और संविधान समानता और न्याय की गारंटी देता हैं, लेकिन वास्तविकता इसके उलट दिखाई देती है। पिछले एक दशक में मुस्लिम नौजवानों पर झूठे मुकदमों और लंबी जाँच-हिरासत का जाल तेज़ी से फैलता जा रहा है। उक्त बातें ऑल इंडिया मुस्लिम बेदारी कारवाँ के राष्ट्रीय अध्यक्ष नजरे आलम ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कही।

उन्होंने कहा कि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2021 में देश के जेलों में कुल क़ैदियों में मुसलमानों की संख्या 18.7 प्रतिशत थी, जबकि उनकी आबादी में हिस्सेदारी केवल 14 प्रतिशत है। यह आँकड़ा साफ़ दर्शाता है कि मुस्लिम नौजवानों को न्यायिक प्रक्रिया में असमान रूप से निशाना बनाया जा रहा है।

सबसे गंभीर पहलू यह है कि UAPA (गैरकानूनी गतिविधि निरोधक अधिनियम)। वर्ष 2014 से 2020 के बीच 10,552 लोगों को इस कानून के तहत गिरफ़्तार किया गया, लेकिन सज़ा केवल 253 लोगों को ही हुई। यानी 97 प्रतिशत से अधिक लोग वर्षों जेल में रहने के बाद बरी हो गए। यह केवल कानूनी नाकामी नहीं, बल्कि मानवीय त्रासदी है। जिसने अल्पसंख्यक परिवारों को तबाह कर दिया।

दिल्ली दंगों से जुड़े मामलों में कई बार अदालतों ने सबूतों को संदिग्ध माना, लेकिन इसके बावजूद छात्र नेता उमर ख़ालिद, शरजील इमाम, गुलफ़िशा फ़ातिमा,ख़ालिद सैफ़ी व अन्य कई नौजवान आज भी वर्षों से जेल में बंद हैं और न्याय की प्रतीक्षा कर रहे हैं। यह बड़ा सवाल खड़ा करता है कि क्या अब विचारधारा से असहमति जताना या शैक्षणिक एवं सामाजिक गतिविधियों में भाग लेना अपराध माना जाएगा?

ऑल इंडिया मुस्लिम बेदारी कारवाँ के राष्ट्रीय अध्यक्ष नजरे आलम ने कहा कि “सरकार और न्यायपालिका को तत्काल कदम उठाने चाहिए। UAPA के दुरुपयोग पर पुनर्विचार किया जाए, लंबी हिरासत में बंद निर्दोष कैदियों के लिए फ़ास्ट-ट्रैक अदालतें बनाई जाएँ और ज़मानत की प्रक्रिया को मानवीय व पारदर्शी बनाया जाए। इसके अलावा,हर साल धर्म और सामाजिक आधार पर गिरफ्तारी और बरी होने के आँकड़े जनता के सामने पेश किए जाएँ।”

उन्होंने आगे कहा कि यदि न्याय केवल कागज़ों तक सीमित रह गया और नागरिकों को बराबरी का दर्ज़ा न दिया गया, तो भारत का लोकतांत्रिक ढाँचा खोखला हो जाएगा।

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