
उर्दू इसी मुल्क की भाषा है, इसे बचाने के लिए संगठित प्रयास की जरूरत: गुलाम नबी आज़ाद
लखनऊ में अंतरराष्ट्रीय उर्दू कांफ्रेंस का आयोजन
लखनऊ- 01 दिसंबर। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व संसदीय कार्य मंत्री गुलाम नबी आज़ाद ने आज लखनऊ में कहा कि उर्दू इसी मुल्क की भाषा है और इसका मान सम्मान बनाए रखने के लिए संगठित प्रयास की जरूरत है। हिंदी और उर्दू भाषाएं भारत की संस्कृति का आइना हैं। इसलिए शिक्षा, साहित्य और समाज में व्यापक प्रोत्साहन मिलना चाहिए।
पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आज़ाद साेमवार काे लखनऊ में एरा विश्वविद्यालय में आयोजित पांचवीं अंतरराष्ट्रीय उर्दू कांफ्रेंस काे संबाेधित कर रहे थे। उर्दू कांफ्रेंस में डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी (डीपीएपी) के अध्यक्ष गुलाम नबी आजाद ने कहा कि यही उपयुक्त समय है, जब हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं के संरक्षण के लिए संगठित मुहिम चलानी चाहिए, क्योंकि दोनों भाषाओं के भविष्य की बात करें तो सच यह है कि हिंदी जिंदा रहेगी तभी उर्दू जिंदा रहेगी। उन्होंने कहा कि देश की गंगा-जमुनी संस्कृति का सबसे बड़ा आधार हमारी जुबानें हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि उर्दू मीठी जुबान है और यह बाहर से नहीं आई है बल्कि इसी मुल्क की पैदाइश है।
उर्दू के समक्ष कई चुनौतियां
पूर्व मुख्यमंत्री आज़ाद ने उर्दू भाषा के विकास पर अपनी राय रखते हुए कहा कि सच कहूं ताे उर्दू का असली सुनहरा दौर मिर्ज़ा ग़ालिब के समय में था और तभी से उर्दू ने साहित्य, कविता, शायरी दुनियाभर में पहचान बनाई। उन्होंने कहा कि आज उर्दू की हालत पहले जैसी नहीं है, लेकिन हम सब मिलकर उसे पहले की तरह उंचे मुकाम पर स्थापित कर सकते हैं। उन्होंने नेताओं का जिक्र किए बिना कहा कि उर्दू की हिमायत सिर्फ वोट लेने का तरीका बनकर रह गया है। उन्हाेंने कहा कि उर्दू पढ़ने और सीखने वालाें की संख्या बहुत अधिक है और अगर जरूरत के हिसाब से उर्दू शिक्षकों की नियुक्ति कर दी जाए ताे लाखों बच्चे इसे सीखने के लिए आगे आ सकते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी की सराहना
पूर्व केंद्रीय मंत्री आजाद ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विदेश यात्राओं में हिंदी में भाषण देने की सराहना की। उन्होंने कहा कि रूस और चीन के नेता हमेशा अपनी- अपनी भाषाओं में बोलते हैं, अनुवाद में चाहे कितना भी समय लग जाए। ऐसे में जब भारत का प्रधानमंत्री अपनी भाषा में बोलता है तो इससे देश की प्रतिष्ठा बढ़ती है और इसकी सराहना करनी चाहिए।
सदन का वाकआउट समाधान नहीं
उन्होंने कहा कि सदन से जब विपक्ष वॉकआउट करता है तो एक तरह से विपक्ष सरकार की मदद करता है, क्योंकि जब विपक्ष चला जाता है तो सत्ता पक्ष आसानी से बिल पास करा लेता है। काेई विराेध करने वाला नहीं हाेता है। उन्होंने कहा कि सदन का बिना किसी अड़चन के चलने देना चाहिए ताकि लोगों की समस्याओं पर चर्चा हो अन्यथा सदन न चलने की स्थिति में लोगों काे निराशा होती है।
कांफ्रेंस की अध्यक्षता कर रहीं पूर्व सांसद डॉ. रीता बहुगुणा जोशी ने कई प्रख्यात उर्दू साहित्यकाराें और शायराें का जिक्र करते हुए कहा कि सिर्फ भाषा नहीं अपितु लोकतंत्र की जुबान बन चुकी है। इस अवसर पर कांफ्रेंस के अध्यक्ष पूर्व मंत्री डा. अम्मार रिजवी, विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अब्बास अली मेहदी, अटल बिहारी वाजपेई चिकित्सा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. संजीव मिश्रा, पूर्व विधायक खान मोहम्मद आतिफ ने भी विचार साझा किए।
कार्यक्रम में खान मोहम्मद आतिफ, डाॅ. प्रभा श्रीवास्तव, नाजिश जैदी, डाॅ. तबरेज जाफर और डाॅ. रीता बहुगुणा जोशी ने गुलाम नबी आजाद, प्रो. संजीव मिश्रा, प्रो. अब्बास अली मेंहदी और डाॅ. अम्मार रिजवी को शाल ओढ़ा कर और स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया। कार्यक्रम में प्रो. मेंहदी हसन को मरणोपरांत एलेक्जेंडर फ्लेमिंग पुरस्कार उनके पुत्र प्रो. अब्बास अली मेंहदी ने ग्रहण किया। लखनऊ पहुंचने पर पूर्व केंद्रीय मंत्री आजाद से कई पुराने नेताओं और बुद्धिजीवियाें ने भेंट की। इनमें कई कांग्रेस के पुराने नेता भी शामिल रहे।



