भारत

जेल से सरकार चलाना लोकतंत्र के लिए अपमानजनक: केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह

नई दिल्ली- 25 अगस्त। केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने सोमवार को कहा कि जेल से सरकार चलाना लोकतंत्र के लिए अपमानजनक है। देश में लोकतंत्र की गरिमा बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि कोई भी प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री जेल में रहकर शासन न चलाए। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वयं इस प्रावधान को 130वें संविधान संशोधन में शामिल कराया है, जिससे यह स्पष्ट हो गया है कि सत्ता का कोई भी पद कानून से ऊपर नहीं है।

गृह मंत्रालय के मुताबिक, अमित शाह ने एक मीडिया संस्थान को दिए साक्षात्कार में विपक्ष द्वारा उठाए जा रहे सवालों का जवाब देते हुए कहा कि 130वें संविधान संशोधन विधेयक में यह प्रावधान किया गया है कि यदि प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री किसी गंभीर आरोप में गिरफ्तार होते हैं और उन्हें 30 दिनों तक जमानत नहीं मिलती है, तो वे स्वतः पदमुक्त हो जाएंगे। यदि बाद में जमानत मिलती है, तो वे पुनः शपथ लेकर पदभार संभाल सकते हैं। इस कानून का उद्देश्य लोकतांत्रिक मर्यादा और शासन की नैतिकता को बनाए रखना है।

गृहमंत्री ने कहा कि संसद में किसी विधेयक या संविधान संशोधन पर असहमति दर्ज कराने का पूरा अधिकार विपक्ष को है, किंतु उसे सदन की कार्यवाही बाधित करने का अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा, “हमने इस विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेजने का प्रस्ताव दिया है, ताकि सभी दल अपने विचार और सुझाव रख सकें, लेकिन विपक्ष का रवैया यही रहा है कि स्वस्थ बहस ही न होने दी जाए। जनता यह सब देख रही है।”

शाह ने कहा कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में कई नेता आरोप लगने पर नैतिकता के आधार पर इस्तीफ़ा देते रहे हैं। लालकृष्ण आडवाणी, जॉर्ज फर्नांडिस, येदियुरप्पा, ईश्वरप्पा और हाल ही में हेमंत सोरेन जैसे नेताओं ने यही परंपरा निभाई, लेकिन हाल के वर्षों में कुछ नेताओं ने जेल में रहते हुए भी इस्तीफ़ा न देकर लोकतांत्रिक परंपरा को आघात पहुंचाया है। उन्होंने सवाल उठाया, “क्या सचिव, मुख्य सचिव या डीजीपी जेल में जाकर आदेश लेंगे? क्या यह लोकतंत्र के लिए उचित होगा?”

उन्होंने स्पष्ट किया कि यह कानून किसी एक दल या व्यक्ति के खिलाफ नहीं बल्कि सभी पर समान रूप से लागू होगा। विपक्ष का आरोप है कि यह विधेयक ‘राजनीतिक हत्या’ का औज़ार है। शाह ने जवाब दिया कि अदालतों की निगरानी में हर प्रक्रिया होती है और यदि आरोप फ़र्ज़ी होंगे तो उच्च न्यायालय या सुप्रीम कोर्ट राहत देंगे। उन्होंने कहा, “अगर कोई गहरे भ्रष्टाचार में फंसा है और 30 दिन तक जमानत नहीं मिलती, तो वह व्यक्ति पद से क्यों चिपका रहे? बाद में बेल मिल जाए तो वह फिर से पद संभाल सकता है।”

उन्होंने कांग्रेस और राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए कहा कि जब मनमोहन सिंह सरकार ने लालू यादव को बचाने के लिए अध्यादेश लाया था, तब राहुल गांधी ने सार्वजनिक रूप से उसे फाड़ दिया और नैतिकता की दुहाई दी, लेकिन आज वही राहुल गांधी लालू यादव के साथ सत्ता में साझेदारी कर रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया, “क्या यह दोहरा मापदंड नहीं है? कांग्रेस की नैतिकता चुनावी लाभ-हानि पर आधारित है।”

गृहमंत्री ने विपक्ष के इस आरोप को भी खारिज किया कि भाजपा शासित राज्यों के नेताओं पर कार्रवाई नहीं होगी। उन्होंने कहा कि न्यायालय की निगरानी में कोई भी नागरिक जनहित याचिका दाखिल कर सकता है और यदि आरोप सही होंगे, तो कार्रवाई अवश्य होगी। उन्होंने कहा, “हमारे शासनकाल में भी अदालतों के आदेश पर कई मामले दर्ज हुए हैं। यह कहना कि भाजपा केवल विपक्षी दलों को निशाना बनाती है, जनता को गुमराह करने का प्रयास है।”

शाह ने विपक्ष द्वारा जेपीसी के बहिष्कार पर कहा कि यदि विपक्ष इस प्रक्रिया से बाहर होता है, तो यह सीधा-सीधा संवैधानिक व्यवस्था को नकारने जैसा है। उन्होंने कहा, “जेपीसी का काम बिना विपक्ष के भी चलेगा, लेकिन देश की जनता गवाह है कि कौन लोकतंत्र को मजबूत कर रहा है और कौन अवरोध पैदा कर रहा है।”

अपने ऊपर विपक्ष के आरोपों पर शाह ने कहा कि जब उन पर केस दर्ज हुआ था, तो उन्होंने तुरंत इस्तीफ़ा दे दिया और अदालत से निर्दोष साबित होने तक कोई पद स्वीकार नहीं किया। उन्होंने कहा, “कांग्रेस मुझे नैतिकता न सिखाए। मैंने खुद को न्यायिक प्रक्रिया के सामने प्रस्तुत किया और अदालत से बरी हुआ। जबकि आज विपक्ष सत्ता बचाने के लिए जेल से सरकार चलाने की संस्कृति को वैध ठहराना चाहता है।”

गृहमंत्री शाह ने कहा कि यह कानून अदालतों को भी त्वरित निर्णय लेने के लिए प्रेरित करेगा। शाह ने कहा, “यदि किसी का पद दांव पर हो, तो अदालतें निश्चित रूप से संवेदनशील होकर समय पर जमानत पर निर्णय देंगी। इससे न्यायिक प्रक्रिया तेज़ होगी।” उन्होंने कहा कि भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी का स्पष्ट मत है कि कोई भी मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री या मंत्री जेल में रहकर सरकार नहीं चला सकता। यह कानून लोकतंत्र की गरिमा और नैतिक मूल्यों को मज़बूत करेगा।

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