सीतामढ़ी- 18 नवंबर। छठ महापर्व के दूसरे दिन खरना मनाया गया है। इस दिन सुबह से लेकर शाम तक उपवास कर व्रतियो ने प्रसाद बनाया। जिसे शाम में भगवान चंद्र को अर्पण कर व्रतियों ने ग्रहण किया। इस प्रसाद को सभी परिजनों एवं पड़ोसियों के बीच वितरीत किया गया। पंडितों के अनुसार शास्त्रों में खरना का मतलब शुद्धिकरण बताया गया है। इस दिन छठ पूजा का प्रसाद बनाने की परंपरा है। खरना कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। मान्यता है कि जो लोग छठ माता का व्रत करते हैं। तथा छठ के नियमों का पालन करते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं छठ माता पूरी करती है। खरना वाले दिन महिलाएं पूरे दिन व्रत रख कर मन की शुद्धता के लिए अपने को पूर्ण रूप से तैयार की है। छठी मैया के लिए प्रसाद भी तैयार किया गया है। रिंकु झा ने बताया कि प्रसाद में शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है। खरना की शाम को गुड़ से बनी खीर का भोग लगाया गया। कुछ जगहों पर इस खीर को रसिया भी कहते हैं। खास बात यह है कि माता का पूरा प्रसाद मिट्टी के चूल्हे पर तैयार किया जाता है। प्रसाद जब बन जाता है, तो सबसे पहले व्रती को दिया जाता है। उसके बाद पूरे परिवार प्रसाद का आनंद लेता है। इस दिन भगवान सूर्य की भी पूजा अर्चना की जाती है और व्रती छठी मैया के गीत भी गाते हैं। खरना में खीर के साथ दूध और चावल से तैयार किया गया पिट्ठा और घी चुपड़ी रोटी भी तैयार की गयी। इसके साथ ही छठ का प्रमुख प्रसाद ठेकुआ भी तैयार किया गया है। शाम के समय खीर का प्रसाद ग्रहण करने के बाद ही व्रती का लगभग 36 घंटे किए जाने वाला निर्जला उपवास शुरू गया है और अंतिम दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रत का समापन होगा।