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M.S विश्वविद्यालय के लीडरशिप कॉनक्लेव में शामिल हुए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, बोले- लोकतंत्र में नेतृत्वशीलता की विशेष भूमिका

उदयपुर- 11 जुलाई। लोकतंत्र में नेतृत्वशीलता की विशेष भूमिका है। सिर्फ राजनीतिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक, आर्थिक से लेकर सभी क्षेत्रों में नेतृत्वशीलता की भूमिका महत्वपूर्ण है। जहां भी नेतृत्वशीलता में कुशलता, दूरदर्शिता, समय पर निर्णय लेने की क्षमता के गुण हैं, वहां कार्य की सफलता निश्चित है। यह विचार लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने व्यक्त किए। वे मंगलवार शाम को उदयपुर के मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय में आयोजित लीडरशिप कॉनक्लेव – 2023 में मुख्य अतिथि के तौर पर संबोधित कर रहे थे।

उन्होंने आधुनिक तकनीक आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) का जिक्र करते हुए कहा कि तकनीक नेतृत्वशीलता में सहायक हो सकती है, लेकिन तकनीक नेतृत्व नहीं कर सकती, क्योंकि तकनीक के पास जानकारी हो सकती है, परन्तु ज्ञान, अनुभव और संवेदना नहीं हो सकती। जानकारी आधारित नेतृत्व लम्बे समय तक नहीं चल सकता, जबकि ज्ञान और अनुभव की परिपक्वता के गुणों वाला नेतृत्व लम्बे समय तक प्रभावी रहता है। उन्होंने युवा पीढ़ी को आह्वान किया कि एआई जैसी तकनीक से जानकारी तो मिल जाएगी, लेकिन ज्ञान और अनुभव नहीं। नेतृत्वशीलता ज्ञान और अनुभव से ही सशक्त होगी। लोकसभा अध्यक्ष ने उद्धृत किया कि प्राचीन काल में भी भारत में लोकतंत्र सशक्त था और नेतृत्वशीलता भी सशक्त थी। सामूहिक चर्चा के बाद लिया गया निर्णय सर्वमान्य होता था।

लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि भारत के स्वभाव में ही चिंतन समाहित है। भारत के व्यक्ति में स्वाभाविक संवेदनशीलता व आध्यात्मिक चेतना का संचार है। यही कारण है कि भले ही भौतिक व आर्थिक संसाधनों में भारत किसी से तुलनात्मक रूप में कमतर हो सकता है, लेकिन बौद्धिक क्षमता, आध्यात्मिक चिंतन, विचारशीलता, संवेदनशीलता का धनी है। उन्होंने युवाओं का आह्वान किया कि वे मन में संवेदनशीलता विकसित करें और अपने हर कार्य में देश और समाज के हित का विचार सामने रखकर निर्णय करे।

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी नेतृत्व क्षमता से दुनिया में भारत की शक्ति, सम्मान को बढ़ाया है। नौजवानों के सामर्थ्य का उपयोग किया है। आने वाले समय में भारत विश्व का नेतृत्व करेगा तो उसकी सबसे बड़ी ताकत भारत के नौजवानों की होगी।

इससे पूर्व, राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी ने सदन अध्यक्षों (स्पीकर) की भूमिका को सशक्त करने की दिशा में कार्य करने की आवश्यकता जताई, ताकि सदनों में सकारात्मक, निष्पक्ष, गुणवत्तापूर्ण चर्चा-परिचर्चा का मार्ग प्रशस्त हो सके। उन्होंने कहा कि सदन के अध्यक्ष सत्तारूढ़ दल से जुड़ा व्यक्ति होता है और उसे ऐसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जाती है, जहां उसे दोनों पक्षों के अधिकारों का संरक्षण करना होता है। ऐसे में स्पीकर की भूमिका में रहने वालों को आदर्श बनना होगा।

कार्यक्रम में सुविवि के कुलपति प्रो. आईवी त्रिवेदी ने कहा कि पूर्व के छात्रनेता ऐसे थे जिनके पीछे मास भागता था, आज के छात्रनेताओं को देखते हैं तो वे मास के पीछे भागते नजर आते हैं। उन्होंने कहा कि लीडर एक आशा की तरह होता है। सही मायने में लीडर वह है, जो देश और समाज के विजन को रियलिटी में कन्वर्ट करें।

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