
मुंबई तक में पसंद की जाती है कुरुद की सूखी मछली
धमतरी, 9 नवंबर। कुरुद की सूखी मछली के शौकीन स्थानीय लोगों के साथ अन्य राज्यों तक में है। मंगलवार को लगने वाले साप्ताहिक बाजार सूखी मछली (सुकसी ) का बहुत बड़ा बाजार क्षेत्र में काफी मशहूर है। यह बाजार जगदलपुर रायपुर छत्तीसगढ़ प्रदेश के साथ-साथ खासकर पड़ोसी राज्यों में भी विख्यात है। आंध्र प्रदेश, ओडिशा, विशाखापट्टनम, मुंबई जैसे स्थानों से व्यापारी कुरुद मंगलवार बाजार को सूखी मछली की खरीददारी करने मंगलवार को पहुंचते हैं। इन्हीं सब कारणों से कुरुद बाजार काफी प्रसिद्धि हासिल की है।
इससे पहले कुरूद में क्षेत्र का सबसे बड़ा पशु बाजार लगता था, जो आज समय के साथ बदलाव के चलते बंद हो गया। पशु बाजार के नाम से कुरुद नगर का मंगलवार बाजार काफी प्रसिद्ध था। आज कुरुद का बाजार सूखी मछली के व्यापार का सबसे बड़ा खरीदी केंद्र बन गया है। यहां लगने वाले सूखी मछली बाजार में लंबे समय से महिला व्यापारी जगदलपुर से पित्र पक्ष के पहले खरीदारी करने आते हैं और सूखी मछली खरीद कर ट्रक में भरकर ले जाते हैं। कुरुद बाजार में खरीदी करने आए महिला व्यापारियों में दया बाई नायडू, लक्ष्मीबाई नायडू, यशोदाबाई नायडू, गौरी बाई नायडू ने बताया हम कुरुद बाजार से सूखी मछली ले जाकर जगदलपुर के बाजार अतिरिक्त आसपास बाजारों में पसरा लगाकर सालभर बेचते हैं। कुरुद क्षेत्र में बांध नदी नाले और खेत खार तालाबों से मछली मारते हैं। इसीलिये मछली की आवक अच्छी होती है। यहां के बाजार में मछली विक्रेता मछली को अच्छा सुखाकर सुकसी बनाते हैं और बेचने को आते हैं।

सालों से चल रहा सूखी मछली का व्यवसाय—
यहां के बाजार में व्यापारियों की सबसे प्रसिद्ध मछली के किस्म में सूखा कोतरी, डड़ाई, टेंगना, बांबी चिंगरी, रुदाई, खोकसी, बाबर, कोतरा, गाढ़ा पाचा सहित अन्य मछलियों की आवक होती है। 10 से 15 वर्ष पहले कम रेट में मिलता था। आज कई गुना रेट बढ़ गया है। वहीं कुरुद क्षेत्र के बैलगाड़ी संघ के गाड़ीवान नंदू साहू ने बताया 30-40 साल पहले जगदलपुर के मछली व्यापारियों द्वारा मछली खरीद कर रेल गाड़ी से धमतरी ले जाते थे। वहां से ट्रक में भरकर जगदलपुर ले जाते थे। हमारे पूर्वज भी सूखी मछली को बैलगाड़ी में भरकर कुरुद रेलवे स्टेशन पहुंचाते थे। इससे बैलगाड़ी का धंधा अच्छा हो जाता था। कमाई भी अच्छी होती थी। समय के साथ परिवर्तन होते गया। पिकअप, मेटाडोर, सुकसी, व्यापारी, सुखसी को भरकर ले जाते हैं। जिससे बैलगाड़ी का कमाई खत्म हो गया।



