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‘मन की बात’ में बोले PM मोदी-‘आस्था के महापर्व छठ को यूनेस्को की धरोहर में शामिल कराने का भारत सरकार कर रही प्रयास’

नई दिल्ली- 28 सितंबर। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज ‘मन की बात’ में कहा कि छठ महापर्व भारतीय संस्कृति की गहरी आस्था और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है। यह पर्व अब वैश्विक स्तर पर भी पहचान बना रहा है। उन्होंने बताया कि भारत सरकार इसे यूनेस्को की ‘इनटेंजिबल कल्चरल हेरिटेज लिस्ट’ में शामिल कराने का प्रयास कर रही है, जिससे इसकी गरिमा और बढ़ेगी।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘मन की बात’ के 126वें एपिसोड में आज शहीद भगत सिंह और लता मंगेशकर को श्रद्धांजलि दी। उन्होंने देश में महिला सशक्तिकरण के उदाहरण दिए, सांस्कृतिक धरोहरों को वैश्विक पहचान दिलाने के प्रयासों का उल्लेख किया और आत्मनिर्भर भारत के संकल्प पर जोर दिया। उन्होंने देशवासियों को आगामी त्योहारों की शुभकामनाएं दी और इस बात का विशेष उल्लेख किया कि संग अपने 100 वर्ष पूरे करने जा रहा है।

प्रधानमंत्री ने रविवार को आकाशवाणी के मासिक कार्यक्रम ‘मन की बात’ के 125 कड़ियों की यात्रा पार करने का जिक्र किया और कहा कि यह जनता से जुड़ने का प्रेरणादायी माध्यम बन चुका है। प्रधानमंत्री ने कहा कि 28 सितंबर को दो महान विभूतियों की जयंती है। शहीद भगत सिंह को उन्होंने युवाओं के लिए प्रेरणा बताया और उनके साहसिक पत्र का उल्लेख किया, जिसमें उन्होंने अंग्रेजों से अपने साथ युद्धबंदी जैसा व्यवहार करने का आग्रह किया था। उन्होंने कहा कि भगत सिंह की निर्भीकता और सेवा भावना हर भारतीय को मार्गदर्शन देती है।

उन्होंने लता मंगेशकर को भारतीय संस्कृति का अमूल्य स्वर बताया। उन्होंने कहा कि उनके गीतों ने देशभक्ति और संवेदनाओं को जीवंत किया। उन्होंने बताया कि लता मंगेशकर से उनका व्यक्तिगत स्नेह रहा और वे हर वर्ष उन्हें राखी भेजती थीं। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि लता मंगेशकर स्वातंत्र्य वीर सावरकर से प्रेरित रही है। उन्होंने कहा, “लता दीदी जिन महान विभूतियों से प्रेरित थीं उनमें वीर सावरकर भी एक हैं, जिन्हें वो तात्या कहती थीं। उन्होंने वीर सावरकर जी के कई गीतों को भी अपने सुरों में पिरोया।”

प्रधानमंत्री ने नवरात्रि के अवसर पर नारी शक्ति की उपलब्धियों को रेखांकित किया। उन्होंने नौसेना की लेफ्टिनेंट कमांडर दिलना और रूपा के साहसिक “नाविका सागर परिक्रमा” का उल्लेख किया। इन दोनों अधिकारियों ने 238 दिनों तक 47,500 किलोमीटर की समुद्री यात्रा पूरी की। प्रधानमंत्री ने उनके अनुभव सुनाए। इनमें उन्होंने बताया कि यात्रा में तूफानों का सामना,अत्यधिक तापमान और सीमित संसाधनों के बावजूद धैर्य और टीमवर्क ने हमें सफलता दिलाई। प्रधानमंत्री ने इसे देश की बेटियों के साहस और संकल्प का अद्वितीय उदाहरण बताया।

प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत सरकार छठ महापर्व को यूनेस्को की ‘इनटेंजिबल कल्चरल हेरिटेज लिस्ट’ में शामिल कराने का प्रयास कर रही है। उन्होंने कोलकाता की दुर्गा पूजा को पहले से इस सूची में शामिल होने का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि छठ पर्व का महत्व आज वैश्विक स्तर पर बढ़ रहा है और यह न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में आस्था का प्रतीक बन चुका है। गांधी जयंती का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने स्वदेशी के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि पिछले 11 वर्षों में खादी की बिक्री कई गुना बढ़ी है। उन्होंने लोगों से आग्रह किया कि 02 अक्टूबर को खादी उत्पाद अवश्य खरीदें और “वोकल फॉर लोकल” को जीवन मंत्र बनाएं।

उन्होंने तमिलनाडु, झारखंड और बिहार के उदाहरण दिए, जहां उद्यमियों और महिलाओं ने परंपरा और नवाचार को जोड़कर रोजगार और आत्मनिर्भरता के नए रास्ते बनाए। उन्होंने कहा, “सफलता की ये सभी गाथाएं हमें सिखाती हैं कि हमारी परंपराओं में आय के कितने ही साधन छिपे हुए हैं। अगर इरादा पक्का हो, तो सफलता हमसे दूर नहीं जा सकती।” प्रधानमंत्री ने कहा कि इस वर्ष की विजयादशमी विशेष महत्व रखती है, क्योंकि 1925 में इसी दिन नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना हुई थी। उन्होंने कहा कि डॉ. हेडगेवार और गुरुजी गोलवलकर के नेतृत्व ने संगठन को राष्ट्र सेवा की दिशा दी।

उन्होंने कहा, “सदियों की गुलामी ने हमारे स्वाभिमान और आत्मविश्वास को गहरी चोट पहुंचाई थी। विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता के सामने पहचान का संकट खड़ा किया जा रहा था। देशवासी हीन-भावना का शिकार होने लगे थे। इसलिए देश की आजादी के साथ-साथ ये भी महत्वपूर्ण था कि देश वैचारिक गुलामी से भी आजाद हो। ऐसे में,परम पूज्य डॉ. हेडगेवार जी ने इस विषय में मंथन करना शुरू किया और फिर इसी भगीरथ कार्य के लिए उन्होंने 1925 में विजयादशमी के पावन अवसर पर ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ की स्थापना की।”

उन्होंने गुरुजी के वाक्य “राष्ट्राय स्वाहा,इदं राष्ट्राय इदं न मम” को उद्धृत करते हुए कहा कि यह संघ की सेवा भावना का आधार है। उन्होंने बताया कि स्वयंसेवक आपदा के समय सबसे पहले राहत कार्य में पहुँचते हैं और हर कार्य में “राष्ट्र प्रथम” की भावना सर्वोपरि रहती है।

प्रधानमंत्री ने आगामी 7 अक्टूबर को महर्षि वाल्मीकि जयंती का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि वाल्मीकिजी ने मानवता को रामायण जैसा अद्भुत ग्रंथ दिया। उन्होंने आग्रह किया कि अयोध्या में रामलला के दर्शन करने वाले लोग वाल्मीकि और निषादराज मंदिर के दर्शन भी करें।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि कला, साहित्य और संस्कृति किसी एक दायरे में बंधे नहीं रहते। इनकी सुगंध सभी सीमाओं को पारकर लोगों के मन को छूती है। उन्होंने इस सन्दर्भ में पेरिस के “सौन्त्ख मंडप” की उपलब्धियों का उल्लेख किया, जिसने भारतीय नृत्य को विश्व स्तर पर लोकप्रिय बनाया। इसकी स्थापना मिलेना सालविनी ने की थी। कुछ वर्ष पहले उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।

प्रधानमंत्री ने कुछ गीतों की प्रस्तुति करते हुए जानकारी दी कि भूपेन हजारिका के गीतों को श्रीलंकाई कलाकारों ने सिंहली और तमिल में अनुवाद किया है, जिससे सांस्कृतिक जुड़ाव बढ़ा है। उन्होंने असम के गायक जुबीन गर्ग और विचारक एसएल भैरप्पा को श्रद्धांजलि दी। उन्होंने कहा, “जुबीन गर्ग एक मशहूर गायक थे, जिन्होंने देशभर में अपनी पहचान बनाई। असम की संस्कृति से उनका बहुत गहरा लगाव था। जुबीन गर्ग हमारी यादों में हमेशा बने रहेंगे और उनका संगीत आने वाली पीढ़ियों को मंत्रमुग्ध करता रहेगा।”

त्योहारों के संदर्भ में प्रधानमंत्री ने कहा कि खरीदारी के समय स्वदेशी उत्पादों को प्राथमिकता दें और हर उत्सव को ‘वोकल फॉर लोकल’ का अवसर बनाएं। उन्होंने स्वच्छता को घर से बाहर समाज तक ले जाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा, “आने वाले दिनों में एक के बाद एक त्योहार और खुशियां आने वाली हैं। हर पर्व पर हम खरीदारी भी खूब करते हैं। और इस बार तो ‘जीएसटी बचत उत्सव’ भी चल रहा है। एक संकल्प लेकर आप अपने त्योहारों को और खास बना सकते हैं। अगर हम ठान लें कि इस बार त्योहार सिर्फ स्वदेशी चीजों से ही मनाएंगे, तो देखिएगा, हमारे उत्सव की रौनक कई गुना बढ़ जाएगी। कार्यक्रम के अंत में प्रधानमंत्री ने देशवासियों को त्योहार विशेष कर दीपावली की शुभकामनाएं दी और आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को दोहराया।

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